ओलम्पिक नहीं तो कॉमनवेल्थ ही सही!
- भारतीय ओलम्पिक संघ और भारतीय खेलों के कर्णधारों का यू (U) टर्न, 2036 के ओलम्पिक आयोजन से पहले 2030 के कॉमनवेल्थ खेल आयोजन का दावा ठोकेंगे
- ओलम्पिक आयोजन का दावा उछालने के बाद कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी के लिए मैदान में उतरने का फैसला कुछ लोगों को हास्यास्पद लग रहा है
- कुछ आलोचक के अनुसार, ओलम्पिक मेजबानी मिलना आसान नहीं है क्योंकि अमेरिका, चीन और रूस जैसे शक्तिशाली देशों की दादागिरी और राजनीति से ओलम्पिक तय होते हैं और उनसे हमारे रिश्ते बुरी तरह उलझें हुए हैं
- लिहाजा, जगहंसाई से बचने के लिए कॉमनवेल्थ आयोजन सुरक्षा कवच का काम कर सकता है
राजेंद्र सजवान
देर से ही सही, भारतीय ओलम्पिक संघ और भारतीय खेलों के कर्णधारों ने यू (U) टर्न लेते हुए 2036 के ओलम्पिक आयोजन से पहले 2030 के कॉमनवेल्थ खेल आयोजन का दावा ठोकने का मूड बनाया है। इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देश के खेलों के जानकार और खेल जगत में भारतीय पहचान और प्रतिष्ठा का ज्ञान रखने वाले कह रहे हैं कि बेहतर होता कि पहले ही समझदारी से काम लिया जाता और एशियाड और कॉमनवेल्थ जैसे आयोजनों के बाद ही ओलम्पिक के बारे में सोचते। यही कारण है कि ओलम्पिक आयोजन का दावा उछालने के बाद कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी के लिए मैदान में उतरने का फैसला कुछ लोगों को हास्यास्पद लग रहा है।
ओलम्पिक आयोजन के लिए ताल ठोकते- ठोकते कॉमनवेल्थ खेलों की तरफ लौटना मज़ाक जरूर लगता है। लेकिन आईओए का एक बड़ा वर्ग कह रहा है कि बड़े आयोजन से पहले भारतीय खिलाड़ियों को तैयारी और खुद को आंकने के लिए अपने घर पर अच्छा प्लेटफॉर्म मिलेगा। वैसे भी लंबे समय से देश में कोई बड़ा खेल आयोजन नहीं हो पाया है। भारत ने 1951 और 1982 के एशियाड के अलावा 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी कर खूब नाम कमाया था। यह सब पिछली सरकार के प्रयासों से संभव हो पाया था। भले ही कॉमनवेल्थ खेल आयोजन पर उंगलियां उठी, आयोजकों पर भ्र्ष्टाचार के आरोप लगे, कुछ एक जेल भी गए लेकिन मेजबान खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन कर खेल प्रेमियों को रोमांचित किया। तत्पश्चात सिर्फ दावे हुए, कोई बड़ा खेल आयोजन नहीं हो पाया है।
भारतीय खेलों से करीबी जुड़ाव रखने वाले और अंतर्राष्ट्रीय खेल जगत में भारतीय हैसियत के ज्ञाता ओलम्पिक से पहले कॉमनवेल्थ खेल आयोजन के फैसले पर हैरान हैं। कुछ आलोचक तो यहां तक कह रहे हैं कि ओलम्पिक मेजबानी मिलना आसान नहीं है। कारण, अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों की दादागिरी और राजनीति से ओलम्पिक तय होते हैं, जिनसे हमारे रिश्ते बुरी तरह उलझें हुए हैं। जगहंसाई से बचने के लिए कॉमनवेल्थ आयोजन सुरक्षा कवच का काम कर सकता है। लेकिन यदि ओलम्पिक मेजबानी नहीं मिल पाती (जो कि शायद नहीं मिलने वाली) तो कॉमनवेल्थ की मेजबानी से डीग हांकने का मसाला तो मिल ही जाएगा। वैसे, कॉमनवेल्थ खेल एशियाड से भी हलके दर्जे के खेल हैं जिनमे पदक लूटना आसान होगा। इन खेलों को पैसे की बर्बादी भी कहा जाता है। लेकिन हम देशवासियों के खून पसीने की कमाई को बर्बाद करने के लिए एक और कॉमनवेल्थ रचाना चाहेंगे।