- 114वें रैंक भारतीय टीम 179वें नंबर के मॉरिशियस से हारते-हारते बची तो फीफा रैंकिंग में 93वें स्थान के सीरिया ने तीन गोलों से पीट डाला
- इंटरकॉन्टिनेंटल कप में बतौर मेजबान फिसड्डी रहकर भारत ने शर्मनाक नतीजा झेला, क्योंकि दोनों मैचों में फॉरवर्ड कोई गोल नहीं निकाल पाए, डिफेंडर्स पर प्रतिद्वंद्वी फॉरवर्ड हावी रहे और मिडफील्ड पूरी तरह फ्लॉप रहा जबकि गोलकीपर गुरप्रीत संधू अब बुढ़ा गया लगता है
- पिछले कुछ सालों में भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के प्रदर्शन में भारी गिरावट आई है
- कुछ फुटबॉल प्रेमियों के अनुसार जो टाइगर अपनी मांद में भी ना गुर्रा सके और जिसमें कमजोर टीमों से निपटने का दमखम नहीं उसकी दहाड़ मिट्टी के शेर जैसी तो हो सकती है
- लेकिन जब-जब भारतीय फुटबॉल के मुंह लगे कमेंटेटर अपनी टीम को टाइगर संबोधित करते हैं, अपने फुटबॉल प्रेमियों की त्यौरियां चढ़ना स्वाभाविक है
राजेंद्र सजवान
“मानसिक दृढ़ता की कमी भारतीय खिलाड़ियों की सबसे बड़ी कमजोरी है,” पिछले कोच इगोर स्टीमक के स्थान पर भारतीय चीफ कोच का दायित्व संभालने वाले मैनोलो मार्कुएज ने मीडिया से अपने पहले साक्षात्कार में यह बयान दिया था। बेशक, यह कमी तो भारतीय फुटबॉल के हर क्षेत्र में है। फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ), उसकी सदस्य इकाइयां, बड़े-छोटे क्लब और उनके खिलाड़ी मानसिक ही नहीं शारीरिक तौर पर भी लगातार कमजोर पड़ रहे हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो इंटरकॉन्टिनेंटल कप का नतीजा शर्मनाक क्यों होता। 114वें रैंक भारतीय टीम 179वें नंबर के मॉरिशियस से हारते-हारते बची तो फीफा रैंकिंग में 93वें स्थान के सीरिया ने तीन गोलों से पीट डाला। इस प्रकार मेजबान फिसड्डी रहे।
सवाल हार-जीत का नहीं है। लेकिन जो टीम लगातार दस मैचों में जीत दर्ज नहीं कर पाई और अपनी से कम रैंकिंग वाली टीम के सामने हथियार डाल दे उसको ‘ब्लू टाइगर्स’ कहना कहां तक ठीक है? पिछले कुछ सालों में भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के प्रदर्शन में भारी गिरावट आई है। कुछ फुटबॉल प्रेमियों के अनुसार जो टाइगर अपनी मांद में भी ना गुर्रा सके और जिसमें कमजोर टीमों से निपटने का दमखम नहीं उसकी दहाड़ मिट्टी के शेर जैसी तो हो सकती है लेकिन जब-जब भारतीय फुटबॉल के मुंह लगे कमेंटेटर अपनी टीम को टाइगर संबोधित करते हैं, अपने फुटबॉल प्रेमियों की त्यौरियां चढ़ना स्वाभाविक है। जो टीम और खिलाड़ी अपने मैदान, अपने दर्शकों और अपने माहौल में फिसड्डी टीमों से पिट जाए उसके गुणगान करने वालों को भला कौन पसंद कर सकता है!
विदेशी कोचों की लाडली टीम का आलम यह है कि दोनों मैचों में फॉरवर्ड कोई गोल नहीं निकाल पाए। डिफेंडर्स पर प्रतिद्वंद्वी फॉरवर्ड हावी रहे और मिडफील्ड पूरी तरह फ्लॉप रहा। रही गोलकीपर की बात तो गुरप्रीत संधू अब बुढ़ा गया लगता है। लेकिन अकेला गोलकीपर भी कब तक हमलावरों को रोक सकता है। सीरिया के विरुद्ध भारतीय टीम की तमाम कमियां साफ नजर आईं। तालमेल की कमी, बॉल कंट्रोल, पास देना, पोजीशनिंग, दमखम की कमी और गोल भेदने में नाकामी ने भारतीय टीम को उपहास का पात्र बनाया। दोनों ही मैचों में मेजबान किसी स्कूल-कॉलेज स्तर का नजर आया। देश के फुटबॉल प्रेमी सालों से कह रहे हैं कि ‘ब्लू टाइगर्स’ नहीं भारतीय टीम भीगी बिल्ली जैसी है।