क्रिकेट के सामने घुटने क्यों टेके? पूछता है भारत!
- संसद के दोनों सदनों में ‘नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल’ बिना किसी हो-हल्ले के पास कर दिया गया और अंतत: राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह बिल कानून बन चुका है
- अब चूंकि पास हो गया है इसलिए उम्मीद है कि भारतीय खेलों की बदनामी, उठा-पटक, गंदी राजनीति और खेमेबाजी से निकल कर सही राह पकड़ लेंगे
- बिल की एक खास बात यह है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) आसानी से पकड़ से बाहर हो गया है
- लाख प्रयासों के बाद भी बीसीसीआई को नियमों से नहीं बांधा जा सका है जबकि बाकी खेलों पर सरकारी नियंत्रण बना रहेगा
राजेंद्र सजवान
खेल बिल अब ‘एक्ट’ बन गया है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि भारतीय खेल अब सही ट्रैक पर आ गए हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि भारतीय खेलों में ‘एक्टर’ भरे पड़े हैं जो कि खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण (साई), खेल फेडरेशनों और खेलों से जुड़ी तमाम संस्थाओं में बहुमत में हैं। देश के कुछ जाने माने खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और खेल जानकारों का ऐसा मानना है।
हालांकि दोनों सदनों में ‘नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल’ बिना किसी हो-हल्ले के पास कर दिया गया और अंतत: राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह बिल कानून बन चुका है। अर्थात अन्य बिलों की तुलना में खेल बिल पर एक राय आसानी से बन गई और बिना किसी शोर- शराबे के पास कर दिया गया, जबकि अन्य बिल बिना धींगा-मुश्ती, आरोप-प्रत्यारोपों और गाली-गलौच के शायद ही पास हो पाते हैं।
भले ही नेशनल स्पोर्ट्स बिल 1975 से चर्चा में रहा है लेकिन राजनीतिक कारणों के चलते कभी भी संसद तक नहीं पहुंच पाया। अब चूंकि तमाम नियम-कानूनों और संवैधानिक शर्तों का अनुपालन करते हुए बिल पास हो गया है इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारतीय खेल बदनामी, उठा-पटक, गंदी राजनीति और खेमेबाजी से निकल कर सही राह पकड़ लेंगे।
बिल की एक खास बात यह है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) आसानी से पकड़ से बाहर हो गया है। लाख प्रयासों के बाद भी उसे नियमों से नहीं बांधा जा सका है। दूसरी तरफ बाकी खेलों पर सरकारी नियंत्रण बना रहेगा। हालांकि फिलहाल कोई दावा करना जल्दबाजी होगा लेकिन अनियंत्रित भ्रष्ट और नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले खेलों और उनके अधिकारियों को सबक सिखाने में आसानी होगी। लगभग 15-20 खेल वर्षों से मनमर्जी चला रहे हैं। लेकिन अब सरकारी पैसे पर चलने वाले इन खेल अधिकारियों को सरकार कभी भी कटघरे में खड़ा कर सकती है। डोप और ओवर ऐज खिलाड़ियों की बढ़ती बीमारी की रोकथाम भी जरूरी है।
लगता है 2036 के ओलम्पिक मेजबानी की दावेदारी को देखते हुए बिल आनन-फानन में पास तो हो गया लेकिन इसका अनुपालन आसान नहीं होगा। अन्य खेल महासंघ तो यहां तक कहने लगे हैं कि क्रिकेट के सामने घुटने टेकने पड़े हैं। ऐसा क्यों, पूछता है भारत।