August 24, 2025

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बस सुनील अब और नहीं!

  • हाल फिलहाल जिन 35 खिलाड़ियों को संभावितों में शामिल किया गया हैं उनमें स्टार स्ट्राइकर सुनील छेत्री का नाम शामिल नहीं है
  • इस पर हो-हल्ला मचाने वाले छेत्री के प्रशंसक भूल गए हैं कि एक दिन पेले व माराडोना को भी बूट टांगने पड़े थे और अब रोनाल्डो और मेस्सी भी खेल को अलविदा कहने वाले हैं
  • फुटबॉल की गहरी समझ रखने वाले और खुद छेत्री के प्रशंसक मानते हैं कि उसे अब बूट टांग कर मैदान के बाहर की गतिविधियों से भारतीय फुटबॉल को गौरवान्वित करना चाहिए

राजेंद्र सजवान  

स्टार स्ट्राइकर सुनील छेत्री ने शायद ही कभी सोचा होगा कि उसे अपने ही कोच के हाथों भारतीय फुटबॉल टीम से इस कदर बेदखल कर दिया जाएगा। चौदह साल के बनवास के बाद खालिद जमील के रूप में कोई भारतीय राष्ट्रीय टीम का हेड कोच बनाया गया है। इस बीच ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) और गोरे कोच मिलीभगत कर भारतीय फुटबॉल को बर्बाद करते रहे। हाल फिलहाल जिन 35 खिलाड़ियों को संभावितों में शामिल किया गया हैं उनमें छेत्री का नाम शामिल नहीं है। यह देख कर छेत्री के प्रशंसकों ने हो हुल्लड़ मचाना शुरू कर दिया है। शायद वे भूल गए हैं कि एक दिन पेले और माराडोना को भी बूट टांगने पड़े थे और अब रोनाल्डो और मेस्सी भी खेल को अलविदा कहने वाले हैं।

   फुटबॉल की गहरी समझ रखने वाले और खुद छेत्री के प्रशंसक मानते हैं कि उसे अब बूट टांग कर मैदान के बाहर की गतिविधियों से भारतीय फुटबॉल को गौरवान्वित करना चाहिए। भले ही क्लब स्तरीय फुटबॉल से जुड़े रहें लेकिन फिर से वापसी की भूल ना करें। फेडरेशन को भी चाहिए की उसके नेम-फेम का भरपूर लाभ उठाए, उसे कदापि नज़र अंदाज ना करें। हो सके तो उसे भारतीय फुटबॉल का ब्रांड एम्बेसडर बना दिया जाए।

   इसमें दो राय नहीं कि सुनील एक प्रतिभवान और उपयोगी खिलाड़ी रहे हैं और पिछले बीस सालों में भारतीय फुटबॉल को जब कभी गोल की जरूरत पड़ी उसने टीम को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। लेकिन यह भी सच है कि उसने अधिकांश गोल बेहद कमजोर और फीफा रैकिंग की पिछड़ी रैकिंग वाले देशों के विरुद्ध जमाए फिर भी भारतीय फुटबाल प्रेमियों ने उसे रोनाल्डो और मेस्सी के समतुल्य बताया और सम्मान दिया।

   हालांकि कुछ चाटुकार विशेषज्ञों ने उसे भारत का सर्वश्रेष्ठ फॉरवर्ड करार दिया लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जिन फुटबॉल प्रेमियों ने पीके बनर्जी, बलराम,  इन्दर सिंह, मगन सिंह, भूपिंदर रावत, सुरजीत सेन गुप्ता, शाबिर अली, नरेंदर गुरंग, हरजिन्दर और यहां तक कि विजयन को खेलते देखा है उन्हें इक्कीसवीं सदी का कोई भी खिलाड़ी शायद ही रास आए। नतीजा सामने है आज भारतीय फुटबॉल की दुनिया भर में हंसी उड़ रही है। 150 करोड़ की जनसंख्या वाले देश के पास एक भी विश्वसनीय खिलाड़ी नहीं है। ऐसे में सुनील के गोलों ने उसे कमाल का खिलाड़ी बना दिया है। इस पत्रकार ने उसे एयर फ़ोर्स और ममता मॉडर्न स्कूल के लिए खेलते हुए करीब  से देखा और परखा है और पाया है कि पिछले दो दशकों में वह देश का श्रेष्ठ फॉरवर्ड रहा है। लेकिन उसके अधिकांश गोल 133वीं रैकिंग की भारतीय फुटबाल से भी फिसड्डी टीमों के विरुद्ध रहे हैं। फ़िर भी वह हमेशा छोटे कद के बड़े खिलाड़ियों में शुमार किया जाता रहेगा।

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