June 16, 2025

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अब नीरज की लड़ाई खुद से है!

राजेंद्र सजवान

इसमें कोई दो राय नहीं है कि नीरज चोपड़ा भारत के सर्वकालिक श्रेष्ठ एथलीट हैं और व्यक्तिगत कौशल वाले खेलों में क्रमश: ओलम्पिक स्वर्ण (टोक्यो में) और रजत (पेरिस में) पदक जीतकर उन्होंने अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। यह कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य में यदि कोई खिलाड़ी भारत को ओलम्पिक पदक तालिका में स्थान दिला सकता है तो वह निसंदेह नीरज ही हो सकता है। पिछले कुछ सालों में एक सवाल बार-बार पूछा जाता रहा है कि नीरज कब 90 मीटर की थ्रो फेंकेगा? उसने दोहा डायमंड लीग में कर दिखाया लेकिन हाल ही में संपन्न हुई जानुश कुशोचिस्की मेमोरियल मीट में 84.14 मीटर की थ्रो कर पाए और दूसरे स्थान पर रहे। पहला स्थान जर्मनी के जूलियन वेबर को मिला, जो कि दोहा में भी चैम्पियन रहा था। 

   हाल के प्रदर्शन पर नजर डालें तो फिलहाल नीरज चोपड़ा पहले तीन-चार थ्रोअरों में शामिल हैं। भले ही उसने नब्बे मीटर के लक्ष्य को पार कर लिया है लेकिन जूनियर वेबर और ग्रेनेडा के एंडरसन पीटर्स उसे घेरे हुए हैं। और इन सब से ऊपर पाकिस्तानी थ्रोअर नदीम है। एंडरसन दो बार के विश्व विजेता है और ओलम्पिक चैम्पियन नदीम तो बहुत आगे चल रहे हैं। पेरिस ओलम्पिक में नदीम ने 92.97 मीटर की थ्रो के साथ गोल्ड मेडल जीता था। नीरज दूसरे स्थान पर रहे।

   हालांकि यह माना जा रहा था कि नीरज 90 मीटर फेंकने के बाद कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ अन्य थ्रोअरों को चुनौती दे सकते हैं। लेकिन सप्ताह भर पहले 90.23 मीटर फेंकने के बाद लगभग छह मीटर कम फेंकने का सीधा मतलब है कि अभी नीरज के प्रदर्शन में स्थिरता की कमी है और उसकी पहली चुनौती खुद का प्रदर्शन हो सकता है।    जाहिर है कि डगर आसान नहीं है। लेकिन उसकी जैसी स्थिति और चुनौती का सामना पहले चार से छह थ्रोअरों को करना पड़ा है। कारण जेवलिन थ्रो में श्रेष्ठता को लंबे समय तक बरकरार रखना आसान नहीं है। अर्थात नब्बे पार के बाद भी नीरज सहित तमाम थ्रोअर सुरक्षित नहीं हैं। उनकी कामयाबी व्यक्तिगत श्रेष्ठता पर निर्भर है।

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