आईओए: हर शाख पे उल्लू बैठा है!

  • आईओए अध्यक्ष महान धाविका पीटी उषा आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह चोर दरवाजे से आईओए की शीर्ष कुर्सी पर बैठी हैं और अपनी प्रतिष्ठा और कुर्सी का बिल्कुल भी बचाव नहीं कर पाई हैं
  • हो सकता है कि इस लेख के छपने तक ओलम्पिक में चौथा स्थान और एशियाड में ढेरों पदक जीतने वाली उषा के भाग्य का फैसला हो जाए, अर्थात् रहेंगी या जाएंगी
  • चूंकि उषा ‘स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ मेरिट कोटा’ के रास्ते अध्यक्ष बनाई गई थी इसलिए उनका जाना तय माना जा रहा है
  • आरोप तो यह भी लगाया जा रहा है कि ज्यादातर बोर्ड सदस्य भी चोर दरवाजे से अंदर दाखिल हुए हैं
  • गुटबाजी, अंतर्कलह, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और व्यभिचार आईओए का चरित्र बन गया है

राजेंद्र सजवान

भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) के ताजा विवाद ने एक बात साफ कर दी है कि भारतीय खेलों की हार शाख पर उल्लू बैठे हैं। देश की शीर्ष खेल संस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है। रोज कोई न कोई विवाद मुंह बाए खड़ा होता है। लेकिन हाल फिलहाल जो चल रहा है उसे देखते हुए आम भारतीय खेल प्रेमी का न सिर्फ आईओए से विश्वास उठ गया है अपितु यह जग जाहिर हो गया है कि भारतीय खेल भ्रष्ट और अवसरवादियों से घिर गए हैं। हालांकि यह सिलसिला सालों से चल रहा है लेकिन हाल के प्रकरण से पूरा देश हैरान परेशान है और अब तो यहां तक कहा जाने लगा है कि भारतीय खेलों के हमाम में सब नंगे है।

   आईओए अध्यक्ष बनीं महान धाविका पीटी उषा का कद जगजाहिर है। ओलम्पिक में चौथा स्थान और एशियाड में ढेरों पदक जीतने वाली उषा पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह चोर दरवाजे से आईओए की शीर्ष कुर्सी पर बैठी हैं और अपनी प्रतिष्ठा और कुर्सी का बिल्कुल भी बचाव नहीं कर पाई हैं। हो सकता है कि इस लेख के छपने तक उषा के भाग्य का फैसला हो जाए, अर्थात् रहेंगी या जाएंगी। इतना सच है कि उड़न परी पिछले कुछ समय से तेज उड़ान भरती रही है। बृजभूषण शरण सिंह और महिला पहलवानों के बीच विवाद पर उनका रवैया ज्यादातर को पसंद नहीं आया। संभवतया जिस राजनीति के चलते उन्हें आईओए अध्यक्ष बनाया गया, उसकी लाज बचाने के लिए विनेश को दरकिनार कर दिया हो।

   आईओए के इतिहास में नजर डालें तो सर दोराबजी टाटा 1927-28 में पहले अध्यक्ष रहे। तत्पश्चात महाराजाओं का जमाना शुरू हुआ और 1928 से 1975 तक क्रमश: महाराजा भुपिंदर सिंह, यादवेंद्र सिंह, भालिंदर सिंह शीर्ष पद रहे। महाराजा यादवेंद्र सबसे ज्यादा 22 सालों तक (1938 से 1960 तक) अध्यक्ष रहे। ओमप्रकाश मेहरा के बाद राजा भालिंदर, विद्याचरण शुक्ल, शिवंधी आदित्यन, सुरेश कलमाड़ी, अभय सिंह चौटाला, नारायण रामचंद्रन और नरेंद्र ध्रुव बत्रा ने अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। हालांकि विवादों के कारण विजय कुमार मल्होत्रा, अनिल खन्ना और आदिल सुमारीवाला को एक्टिंग अध्यक्ष भी बनाया गया लेकिन 10 दिसम्बर 2022 को पीटी उषा ने 13वें अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। शायद 13 आंकड़ा उषा को रास नहीं आ रहा है।

   लेकिन दोष उषा का नहीं है। देश की गोदी राजनीति आईओए की नस-नस में समाई है। चूंकि उषा ‘स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ मेरिट कोटा’ के रास्ते अध्यक्ष बनाई गई थी। इसलिए उनका जाना तय माना जा रहा है। आरोप तो यह भी लगाया जा रहा है कि ज्यादातर बोर्ड सदस्य भी चोर दरवाजे से अंदर दाखिल हुए हैं। गुटबाजी, अंतर्कलह, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और व्यभिचार आईओए का चरित्र बन गया है। लेकिन जिनके पास हर समस्या का हल है, वो भी आईओए को सुधारने की गारंटी क्यों नहीं दे पा रहे हैं?

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