उम्र का फर्जीवाड़ा राष्ट्रीय आपदा!
राजेंद्र सजवान
सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट में उम्र की धोखाधड़ी प्रकरण से भारतीय खेलों में हड़कंप मच गया है और तमाम खेलों को बेईमानी और निहित स्वार्थो से चलाने वाली खेल फेडरेशन और उनकी सदस्य इकाईयां चाक चौबंद हो गई हैं। बड़ी उम्र के खिलाड़ियों का विभिन्न खेलों में भाग लेना आम बात है। सिर्फ फुटबॉल में ही नहीं, क्रिकेट, बैडमिंटन, हॉकी, जिम्नास्टिक, तैराकी, जूड़ो, कुश्ती और लगभग सभी खेलों में इस प्रकार के मामले प्रकाश में आते रहे हैं। लेकिन सरकार, खेल प्रशासन, खेल महासंघों, स्कूलों एवम खेल अकादमियों के कर्ता-धर्ता अब तक नहीं जागे हैं। जब कभी कोई बड़ा मामला पकड़ में आता है अधिकारियों में भगदड़ मचती है और कुछ समय बाद सब कुछ शांत हो जाता है। लेकिन अब पानी सर से ऊपर हो गया है। दुनिया भर में भारतीय खिलाड़ी अपयश कमा रहे हैं। जहां एक तरफ चीन, जापान, कोरिया, अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, रोमनिया आदि देशों के 15 से 20 साल के खिलाड़ी वर्ल्ड और ओलम्पिक रिकॉर्ड बना बिगाड़ रहे हैं तो भारतीय खिलाड़ी चार-पांच साल की धोखाधड़ी के बावजूद भी बड़े मंच पर शर्मसार हो रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है?
पिछले कई सालों से उम्र की धोखाधड़ी का खेल चल रहा है। देश के नामी स्कूली फुटबॉल टूर्नामेंट में 70 फीसदी खिलाड़ियों को उम्र घटाने का दोषी पाया गया है, जिसे लेकर हड़कंप मचा है। इस पाप में स्कूल और अकादमियों के फर्जी कोच भी शामिल बताए जाते हैं। कई पकड़ में आते हैं लेकिन धोखाधड़ी नहीं रुक रही। इसलिए क्योंकि मामले रफा दफा कर दिए जाते हैं l इस संवाददाता ने पिछले 40 सालों से स्कूली खेलों की खोज खबर लेने के बाद पाया है कि हर एक स्कूल के प्रत्येक खेल में गड़बड़ झाला है। बेशक़, स्कूल गेम्स फेडरेशन, स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों ने मिल कर निहित स्वार्थो के लिए यह मक्कड़ जाल बुना है, जिसमें तमाम भारतीय खेल उलझ कर रह गए हैं।
ऐसा नहीं है कि देश में समर्पित और खेल का ज्ञान रखने वाले कोचों की कमी है लेकिन उम्र घटा कर बेहतर रिजल्ट पाने की लालसा खिलाड़ियों का भविष्य चौपट कर रही है। भ्रष्ट कोच, लालची अभिभावक और प्रसिद्धि पाने के लिए कुख्यात स्कूल इस खेल में लिप्त हैं, जिनमे सेना, वायुसेना और बड़े नाम वाले कई स्कूल भी शामिल बताए जाते हैं। पिछले पचास सालों से यह रोना रोया जा रहा है कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी भारतीय फुटबॉल सीधी चाल क्यों नहीं चल पा रही। क्यों मैच दर मैच और हार दर हार देश का नाम खराब कर रही है? हालांकि भारतीय फुटबॉल ने विश्व स्तर पर या ओलम्पिक में कोई बड़ा तीर नहीं चलाया लेकिन कभी हम एशियाड में विजेता थे और ओलम्पिक में भी भाग लिया लेकिन आज आलम यह है कि भारतीय फुटबॉल पदक या खिताब जीतने की बजाय अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है।