उसकी डीपीएल हमारी डीपीएल से चमकदार क्यों है
- डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम में ‘डीपीएल’ नाम से फुटबॉल लीग का आयोजन होता है जबकि बगल में डीपीएल क्रिकेट लीग अरुण जेटली स्टेडियम में खेली जाती है
- क्रिकेट (डीडीसीए) ने तमाम कानूनी दांवपेच अपनाकर अपनी लीग को मान्यता दिलाई है लेकिन फुटबॉल लीग (डीएसए) इस होड़ में पीछे रह गई है लिहाजा डीपीएल पर क्रिकेट की मुहर लग गई है
- क्रिकेट डीपीएल की बात है तो उसके खिलाड़ियों से लाखों के अनुबंध किए जाते हैं लेकिन फुटबॉल की डीपीएल में भाग लेने वाले क्लब खिलाड़ियों पर कुछ एक हजार खर्च करने की स्थिति में भी नहीं हैं
राजेंद्र सजवान
इसमें कोई दो राय नहीं कि क्रिकेट अपने देश का सबसे लोकप्रिय खेल है। यह भी सच है कि पूरी दुनिया में फुटबॉल नंबर एक खेल है, जिसमें भारत पूरी तरह फेल है। फुटबॉल को कुछ और कोसते हुए यह भी बता दें कि इस खेल में पैसा कम है लेकिन क्रिकेट में इसलिए दम है, क्योंकि क्रिकेट प्रशासन चलाने वाले हाथ मजबूत हैं। बीसीसीआई और एआईएफएफ का उदाहरण सामने है। एक करोड़ों-अरबों की संस्था है तो दूसरी सरकारी भीख पर चल रही है। यहां तक कहा जाता है कि देश के तमाम खेलों का कुल बजट उस से भी कम है, जितना क्रिकेट बोर्ड बोर्ड टैक्स देता है।
पूरे मामले को एक दीवार के आर-पार खेली जाने वाली एक नाम की दो लीग के स्तर से समझने का प्रयास करते हैं। एक तरफ डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम है, जो कि एमसीडी की प्रॉपर्टी है। दूसरी तरफ अरुण जेटली स्टेडियम है, जिसे कल तक फिरोजशाह कोटला मैदान के नाम से जाना जाता था। डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम में ‘डीपीएल’ नाम से फुटबॉल लीग का आयोजन होता है जबकि बगल में डीपीएल क्रिकेट लीग खेली जाती है। फर्क सिर्फ इतना है कि क्रिकेट ने तमाम कानूनी दांवपेच अपनाकर अपनी लीग को मान्यता दिलाई है लेकिन फुटबॉल लीग इस होड़ में पीछे रह गई है। अर्थात् डीपीएल पर क्रिकेट की मुहर लग गई है।
हाल ही में दिल्ली जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के अध्यक्ष रोहन जेटली ने एक बयान में कहा कि डीडीसीए ने डीपीएल की कमाई का 50 फीसदी क्रिकेट डेवलपमेंट पर खर्च करने का फैसला किया है। लेकिन दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) लाचार है उसके पास लीग के खर्चे उठाने और पुरस्कार राशि देने तक के पैसे नहीं है। फुटबॉल का डेवलपमेंट तो दूर की बात है।
जहां तक क्रिकेट की बात है तो खिलाड़ियों से लाखों-करोड़ों के अनुबंध किए जाते हैं लेकिन फुटबॉल लीग में भाग लेने वाले क्लब खिलाड़ियों पर कुछ एक हजार खर्च करने की स्थिति में भी नहीं हैं। फिर भी सवाल यह किया जाता है कि उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यों है? क्यों क्रिकेट की डीपीएल फुटबॉल से ज्यादा शानदार और जानदार है? क्रिकेट पर भले ही सट्टेबाजी और फिक्सिंग के गंभीर आरोप लगते आए हैं लेकिन फुटबॉल पर भी तो दाग लग चुका है।