क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
इसमें दो राय नहीं कि पिछले कुछ सालों में जिस खेल ने देश का मान सम्मान बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है वह निसंदेह कुश्ती है। फिर चाहे एशियाड, कॉमनवेल्थ, ओलम्पिक या अन्य आयोजन हों पहलवान लगातार पदक जीत रहे हैं। यह भी सच है कि सबसे ज्यादा विवादास्पद और हिंसक खेल भी कुश्ती ही माना जा रहा है। कॉमनवेल्थ खेल 2022 की ट्रायल के दौरान पहलवान सतेंद्र मालिक और अंतर्राष्ट्रीय रेफरी जगबीर के बीच की हाथपाई ताज़ा मामला है।
चूँकि यह हादसा कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष सांसद ब्रज भूषण शरण सिंह के समक्ष घटित हुआ इसलिए अध्यक्ष महोदय ने आनन् फानन में ही सतेंद्र पर लाइफ बैन घोषित कर दिया, जिसे लेकर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। पहलवान सतेंद्र के पक्ष में कुश्ती से जुड़े लोग अनुनय विनय कर रहे हैं। वे चाहते हैं की सतेंद्र को माफ़ कर दिया जाए। एक बड़ा वर्ग कह रहा है कि पहलवान से बड़ा अपराध रेफरी और जूरी सदस्यों का है और फेडरेशन अध्यक्ष ने भी जल्दबाजी में फैसला लेकर मामले को और पेचीदा बना दिया है।
इसमें दो राय नहीं कि नेताजी जब से भारतीय कुश्ती के शीर्ष पद पर विराजमान हुए हैं प्रदर्शन में लगातार सुधार हुआ है। भले ही सरकार और कुछ औद्योगिक घराने कुश्ती पर बड़ा खर्च कर रहे हैं लेकिन ऐसा इसलिए भी संभव हुआ है क्योंकि तमाम विवादों और हिंसक घटनाओं के बावजूद भी कुश्ती अन्य खेलों कि तुलना में बेहतर परिणाम दे रही है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अध्यक्ष अपने स्तर पर फैसला सुना दे, ऐसा कुश्ती से जुड़े और कुश्ती के चाहने वालों का मानना है।
सतेंद्र और उसके पक्षधर कहते हैं कि रेफरी जगबीर ने पहले हाथ उठाया। ऐसे में मुकाबला हारने पर गुस्साए पहलवान का पलटवार स्वाभाविक है। एक तो उसके वर्षों की मेहनत पर पानी फिर गया दूसरे उसे लाइफ बैन की सजा मिली। वीडियो रिकार्डिंग से पता चलता है कि रेफरी ने पहले हाथ उठाया। ऐसे में बेहतर यह होता कि नेता जी अपनी टीम से विचार विमर्श करते, सतेंद्र को कारण बताओ नोटिस दिया जाता जिसका जवाब मिलने के बाद ही कोई कदम उठाना ठीक रहता।
नेताजी के करीबियों के अनुसार कुश्ती फेडरेशन का हर फैसला वे अपने स्तर पर लेते हैं और किसी की भी नहीं सुनते। लेकिन ताज़ा विवाद थोड़ा हटकर है क्योंकि एक अच्छे पहलवान के भविष्य का सवाल है। लगातार विवादों में घिर रही कुश्ती को यदि अपनी श्रेष्ठता बनाए रखनी है तो पहलवान, कोच, रेफरी -जजों और कुश्ती प्रेमियों कि भावनाओं को समझना भी जरूरी है। उन्हें पर्याप्त मान सम्मान दिया गया तो इस खेल में पदकों कि बरसात होती रहेगी। यह न भूलें कि पिछले दो तीन सालों में कुश्ती में हुई हिंसा, हत्याओं, डोप प्रकरण और मनमानी की सजा देश के लोकप्रिय खेल को भुगतनी पडी है। ताज़ा मामला खेल बिगाड़ने में आग में घी का काम कर सकता है। अतः सभी पक्षों को दूरदर्शिता दिखानी होगी।