- इगोर स्टीमक और फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे के बीच आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगी हुई है और मामला कोर्ट-कचहरी तक जा पहुंचा है
- क्रोएशिया के पूर्व फुटबॉलर और भारत के पूर्व हेड कोच इगोर स्टीमक भी उन विदेशी कोचों की जमात में शामिल हो गए हैं, जो कि लाख प्रयासों के बावजूद भारतीय फुटबॉल को बिल्कुल भी नहीं सुधार पाए
- विदेशी कोच तीन-चार साल तक एआईएफएफ के अधिकारियों की सोई उम्मीदों को जगाता है और ‘तू मुझे खुजा, मैं तुझे खुजूऊंगा’ की तर्ज पर फेडरेशन आकाओं, कप्तान और कुछ सीनियर खिलाड़ियों को अपनी गुड बुक से जोड़ लेता है
- प्रिय रंजन दासमुंशी और प्रफुल्ल पटेल ने भारतीय फुटबॉल को जिस गड्ढे में छोड़ा था वहां से लुढ़ककर भारतीय फुटबॉल गहरी खाई में जा गिरी है
राजेंद्र सजवान
यह जगजाहिर है कि जब भी कोई विदेशी गोरा कोच भारत की धरती पर कदम रखता है तो वह सबसे पहले भारत को महान देश बताता है और भारतीय फुटबॉल को ‘सोया शेर’ कह कर संबोधित करता है। वह तीन-चार साल तक भारतीय फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) के अधिकारियों की सोई उम्मीदों को जगाता है और ‘तू मुझे खुजा, मैं तुझे खुजूऊंगा’ की तर्ज पर फेडरेशन आकाओं, कप्तान और कुछ सीनियर खिलाड़ियों को अपनी गुड बुक से जोड़ लेता है।
भारतीय खेल मंत्रालय, एआईएफएफ खिलाड़ी, अधिकारी सभी कोच के नए-नए प्रयोगों में वशीभूत हो जाते हैं। गोरी चमड़ी के झांसे में आने वालों में कई हस्तियां भारतवासियों के खून-पसीने की कमाई को कोच की तीमारदारी, उसके मासिक वेतन, अनुबंध राशि, छोटे-बड़े खर्चों पर लुटाती हैं। कोच अधिकारियों में खूब छनती है। गोरी चमड़ी के तलवे चाटने वाली सरकारी मशीनरी मद मस्त हो जाती है और देश के फुटबॉल प्रेमियों को बता दिया जाता है कि अब भारतीय फुटबॉल के दिन बदल रहे हैं। यह देश दुनिया के सबसे लोकप्रिय और महान खेल में ऊंचा मुकाम पाने वाला है। लेकिन जैसे-जैसे कोच का अनुबंध समाप्त होने के दिन करीब आते हैं तो बोली-भाषा बदल जाती है।
एआईएफएफ और कोच के बीच घमासान शुरू हो जाता है, जैसे कि फिलहाल चल रहा है। क्रोएशिया के पूर्व फुटबॉलर और भारत के पूर्व हेड कोच इगोर स्टीमक भी उन विदेशी कोचों की जमात में शामिल हो गए हैं, जो कि लाख प्रयासों के बावजूद भारतीय फुटबॉल को बिल्कुल भी नहीं सुधार पाए। बल्कि कहना यह होगा कि जाते-जाते उनकी बोली, भाषा, दिल दिमाग का संतुलन बिगड़ गया है। फेडरेशन और उनके बीच घमासान मचा हुआ है। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप थोपे जा रहे हैं और अंतत: उन्हें भी कहना पड़ा, ‘‘भारतीय फुटबॉल कभी नहीं सुधर सकती।’’ यह सब पिछले कोच भी कहते आए हैं।
इगोर स्टीमक और फेडरेशन अध्यक्ष कल्याण चौबे के बीच आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगी हुई है और मामला कोर्ट-कचहरी तक जा पहुंचा है। लेकिन देश के आम फुटबॉलर और फुटबॉल के चाहने वालो को क्या मिला? प्रिय रंजन दासमुंशी और प्रफुल्ल पटेल ने भारतीय फुटबॉल को जिस गड्ढे में छोड़ा था वहां से लुढ़ककर भारतीय फुटबॉल गहरी खाई में जा गिरी है। हमेशा की तरह कोच कह रहा है कि फेडरेशन के पास कोई रोड मैप नहीं है तो फेडरेशन कोच पर खिलाड़ियों के बीच गुटबाजी के आरोप लगा रही है। लेकिन सच यह है कि एक और गोरा कोच जा रहा है और अब अगले कोच की तलाश की जा रही है।