ऐज फ्रॉड: भारतीय खेलों का नासूर

  • कुछ पूर्व खिलाड़ियों का कहना था कि अपने देश में स्कूल स्तर पर ही छोटे आयु वर्ग में बड़े खिलाड़ियों की परंपरा वर्षों से चली आ रही है
  • उनका आरोप है कि सरकार, खेल मंत्रालय और खेल महासंघों को पदक चाहिए, लेकिन उन्होंने कभी भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि क्यों हमारे खिलाड़ी प्रमुख खेल राष्ट्रों के बहुत कम उम्र के खिलाड़ियों के सामने हथियार डाल देते हैं
  • इस कुप्रथा के लिए अधिकांश ने देश में स्कूली खेलों के ठेकेदार, विभिन्न खेल अकादमियों और खासकर स्कूल गेम्स फेडरेशन को दोषी माना है
  • 14, 17 व 19 साल के आयु वर्ग में दो से चार साल बड़े खिलाड़ी उतारना एसजीएफआई का चरित्र रहा है और यहीं से ऐज फ्रॉड का खेल शुरू हो जाता है और उभरती खेल प्रतिभाएं खेल मैदान छोड़ने के लिए विवश कर दी जाती हैं

राजेंद्र सजवान

देर से ही सही लेकिन देश में उम्र की धोखाधड़ी को लेकर आवाज उठने लगी है। हाल ही में फुटबॉल, हॉकी, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, कबड्डी, एथलेटिक्स, तमाम मार्शल आर्ट्स खेलों, तैराकी, जिम्नास्टिक आदि में कुछ पूर्व खिलाड़ियों, कोचों और अभिभावकों की अंतरआत्मा जागती नजर आई है। हालांकि पानी सिर से ऊपर आ गया है और सैकड़ों-हजारों प्रतिभाओं को ‘ऐज फ्रॉड’ निगल चुका है। लेकिन यदि सचमुच भारतीय खेल भूल सुधारना चाहते हैं तो यह अच्छी खबर है।

  सालों साल बीत जाने के बाद भी भारतीय खेल श्रेष्ठता की दौड़ में क्यों पीछे रह गए और क्यों हमारे खिलाड़ी अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन के शिखर पर पहुंचने से पहले ही धड़ाम से गिर पड़ते हैं, इस लाइलाज बीमारी को सीधे-सीधे उम्र की धोखाधड़ी के साथ जोड़ा जा रहा है। इस संवाददाता ने कुछ पूर्व खिलाड़ियों से जब इस बारे में जानना चाहा तो ज्यादातर का कहना था कि अपने देश में स्कूल स्तर पर ही छोटे आयु वर्ग में बड़े खिलाड़ियों की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। ज्यादातर ने आरोप लगाया कि सरकार, खेल मंत्रालय और खेल महासंघों को पदक चाहिए, लेकिन उन्होंने कभी भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि क्यों हमारे खिलाड़ी प्रमुख खेल राष्ट्रों के बहुत कम उम्र के खिलाड़ियों के सामने हथियार डाल देते हैं। इस कुप्रथा के लिए अधिकांश ने देश में स्कूली खेलों के ठेकेदार, विभिन्न खेल अकादमियों और खासकर स्कूल गेम्स फेडरेशन को दोषी माना है। 14, 17 व 19 साल के आयु वर्ग में दो से चार साल बड़े खिलाड़ी उतारना एसजीएफआई का चरित्र रहा है। बस यहीं से ऐज फ्रॉड का खेल शुरू हो जाता है और उभरती खेल प्रतिभाएं खेल मैदान छोड़ने के लिए विवश कर दी जाती हैं।

   सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट और नेहरू हॉकी सोसाइटी के उदाहरण सामने हैं जहां स्कूल स्तर के आयोजनों में दर्जनों बड़ी उम्र के खिलाड़ी आज भी पकड़े जा रहे हैं। इसी प्रकार तैराकी, एथलेटिक्स और जिम्नास्टिक जैसे खेलों में सैकड़ों बड़ी उम्र के घुसपैठिये प्रतिभाओं को रौंद रहे हैं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार स्कूल प्रबंधन, कोच और माता-पिता की मिली-जुली साजिश से प्रतिभाओं को कुचला जा रहा है। वरना क्या कारण है कि जिस उम्र में चीन, अमेरिका, रोमानिया, फ्रांस, स्पेन आदि देशों के खिलाड़ी ओलम्पिक गेम्स और विश्व चैम्पियनिशप बन रहे हैं, आम भारतीय खिलाड़ी खेल का पहला अध्याय भी ठीक से नहीं पढ़ पाते। इसलिए क्योंकि ज्यादातर उम्र घटा कर आगे बढ़ रहे हैं। यही कारण है कि खेल विशेषज्ञ डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक भी उम्र के फर्जीवाड़े को भारतीय खेलों की सबसे बड़ी बीमारी बता रहे हैं।

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