June 15, 2025

sajwansports

sajwansports पर पड़े latest sports news, India vs England test series news, local sports and special featured clean bold article.

…ऐसी सरकार चाहते हैं खिलाड़ी!

  • लाखों खिलाड़ी करोड़ों खेल प्रेमी और अन्य की राय में उन्हें ऐसी सरकार चाहिए, जो कि देश के खेलों को गंभीरता से ले और देश का अपना एक सर्वमान्य खेल बिल और खेल संविधान हो
  • कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार, खेल मंत्रालय का जिम्मा ऐसे नेताओं और अधिकारियों को सौंपा जाना चाहिए जो कि खेल और खिलाड़ियों का अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल ना करें
  • ऐसी सरकार चाहिए जो कि अर्जुन, ध्यानचंद, खेल रत्न, पद्मश्री, अन्य पद्म पुरस्कार की बंदरबाट ना करे। ऐसी सरकार चाहिए जो कि अपने कोचों की कद्र करे और उन्हें भरपूर सम्मान दे

राजेंद्र सजवान

जब से भारत आजाद हुआ है, बहुत सी सरकारें आईं और खिलाड़ी समाज के लिए कुछ किए बिना ही चली गईं। ऐसा नहीं है कि सभी सरकारें खिलाड़ियों, खेल जानकारों और खिलाड़ियों की कसौटी पर नकारा साबित हुई। कुछ सरकारों, उनके खेल मंत्रियों, खेल मंत्रालयों, भारतीय खेल प्राधिकरण और अन्य जिम्मेदार इकाइयों ने समय-समय पर खेलों और खिलाड़ियों के लिए लीक से हटकर काम किए और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मुंह छुपाने से बचाया।

  1947 में देश के आजाद होने पर भारत सिर्फ हॉकी का बादशाह रहा। तब तक हम तीन ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीत चुके थे और तत्पश्चात जीते गए कुल स्वर्ण पदकों मिला दें तो आठ बार हम ओलम्पिक चैम्पियन रहे। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गरीबी और बदहाली से निकलकर हमारे खिलाड़ी साधन-संपन्न जीवन जी रहे हैं। सुविधाएं लगातार बढ़ी हैं। साथ ही भ्रष्टाचार, व्यभिचार और गुटबाजी भी बढ़ी है। इस बीच भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के गठन और खेल संघों पर पैसे की बरसात भी हुई। लेकिन खेल संघों में बैठे गुंडे और खिलाड़ियों से खिलवाड़ करने वाले नेता, सांसद और अधिकारियों ने देश के खेलों की प्रगति की रफ्तार पर अंकुश भी लगाया।

 

   भले ही खेल बजट साल दर साल बढ़ रहा है। अपने कोचों को हराकर विदेशियों को नियुक्त किया गया, जिसका बहुत कम फायदा हुआ। सालों-साल ओलम्पिक से खाली हाथ लौटते रहे तत्पश्चात् एक-दो और ज्यादा से ज्यादा छह पदक जीत कर देश को खेल महाशक्ति बनाने की राजनीति शुरू हो गई। लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और आबादी की दृष्टि से चीन को पछाड़कर पहला नंबर पाने वाला हमारा भारत महान आज भी पिछली कतार में खड़ा है। सौ साल में मात्र दो व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले देश के खेलों और खेल आकाओं को आईना दिखाने की जरूरत नहीं है। आठ से दस खेलों में यदा-कदा ओलम्पिक पदक जीतने वाले देश को दाल-रोटी, नौकरी, जीवन यापन, प्रगति और अन्य सुविधाओं के साथ खेलों में कुछ कर गुजरना होगा।

   लाखों खिलाड़ी करोड़ों खेल प्रेमी और अन्य की राय में उन्हें ऐसी सरकार चाहिए, जो कि देश के खेलों को गंभीरता से ले। देश का अपना एक सर्वमान्य खेल बिल और खेल संविधान हो। खिलाड़ी स्वच्छंद होकर खेलें और खिलाड़ियों के माता-पिता अपने बेटे-बेटियों को खेल मैदान और खेल आयोजनों में बे-रोक-टोक भेज सके। अर्थात उनकी सुरक्षा की गारंटी हो।

   कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार, खेल मंत्रालय का जिम्मा ऐसे नेताओं और अधिकारियों को सौंपा जाना चाहिए जो कि खेल और खिलाड़ियों का अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल ना करें। ऐसी सरकार चाहिए जो कि अर्जुन, ध्यानचंद, खेल रत्न, पद्मश्री, अन्य पद्म पुरस्कार की बंदरबाट ना करे। ऐसी सरकार चाहिए जो कि अपने कोचों की कद्र करे और उन्हें भरपूर सम्मान दे। क्या देश के खेल प्रेमी, खिलाड़ी, खेल प्रशासक और खेलों को बढ़ावा देने वाले पब्लिक एवं प्राइवेट सेक्टर, उद्द्योपति ऐसी सरकार चुनने जा रहे हैं…?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *