- अनेक पूर्व ओलम्पियन और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इस बात को लेकर हैरान हैं कि पेरिस ओलम्पिक सिर पर है लेकिन देश के टीवी चैनलों, सोशल मीडिया और समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कुछ और ही चल रहा है
- देश की सरकार, राज्य सरकारें, खेल मंत्रालय, आईओए और खेल महासंघों के लिए ओलम्पिक सिर्फ चार सालों में आयोजित होने वाला मेला है और यही कारण है कि मीडिया गंभीर नहीं है
- सानिया मिर्जा और मोहम्मद शमी का निकाह होगा या नहीं? यूरो कप कौन जीतेगा? वर्ल्ड कप विजेता पुरुष टीम और भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ियों को कितने करोड़ मिलेंगे? इन सब रहस्यों को कुरेदने में हमारा मीडिया कुछ ज्यादा ही सर खपाई कर रहा है
- कुछ साल पहले तक ओलम्पिक खेलों पर चर्चा, परिचर्चा, लेखन और टीवी कवरेज महीनों पहले शुरू हो जाते थे लेकिन आगामी ओलम्पिक के लिए तीन सप्ताह से भी कम समय बचा है
राजेंद्र सजवान
मीडिया यदि खेलों के प्रचार-प्रसार और उत्थान-पतन में भूमिका निभाता है तो यह मान लेना पड़ेगा कि भारतीय प्रचार माध्यम आगामी ओलम्पिक गेम्स को लेकर कदापि गंभीर नहीं है। ऐसी राय रखने वाले देश के अनेक पूर्व ओलम्पियन और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इस बात को लेकर हैरान हैं कि पेरिस ओलम्पिक सिर पर है लेकिन देश के टीवी चैनलों, सोशल मीडिया और समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कुछ और ही चल रहा है।
सानिया मिर्जा और मोहम्मद शमी का निकाह होगा या नहीं? यूरो कप कौन जीतेगा? वर्ल्ड कप विजेता पुरुष टीम और भारतीय महिला क्रिकेट टीम की खिलाड़ियों को कितने करोड़ मिलेंगे? इन सब रहस्यों को कुरेदने में हमारा मीडिया कुछ ज्यादा ही सर खपाई कर रहा है। उसे इतना भी पता नहीं कि देश की सरकार ओलम्पिक में रिकॉर्ड पदक जीतने का सपना देख रही है। भले ही सरकारी मशीनरी आम चुनावों के बाद अब अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर नजरें गड़ाए है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि जिन देशों ने खेलों में बड़ा नाम व सम्मान कमाया है, जिनके पास ओलम्पिक व विश्व चैम्पियन हैं उनका कद व पहचान भी बड़ी है। इस सच को हमारी सरकार भी समझ गई है। यही कारण है कि देश को खेल महाशक्ति बनाने के दावे उछाले जा रहे हैं।
अमेरिका, चीन, जापान, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों के खिलाड़ी ओलम्पिक खेलों में ढेरों पदक जीत ले जाते हैं। बेशक, उनकी तैयारियां सालों-साल चलती हैं। जहां तक भारतीय खिलाड़ियों की बात है तो उन पर भी सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। उन्हें विदेश में ट्रेनिंग के लिए भेजा जा रहा है। लेकिन यूरो कप और टी-20 वर्ल्ड कप के चलते जैसे पेरिस ओलम्पिक को भुला दिया गया। तैयारियां जैसे ठिठक गई हैं। देश के छोटे-बड़े समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में ओलम्पिक की कोई चर्चा नहीं है। ऐसा क्यों है? इसलिए क्योंकि देश की सरकार, राज्य सरकारें, खेल मंत्रालय, आईओए और खेल महासंघों के लिए ओलम्पिक सिर्फ चार सालों में आयोजित होने वाला मेला है। यही कारण है कि मीडिया गंभीर नहीं है।
कुछ साल पहले तक ओलम्पिक खेलों पर चर्चा, परिचर्चा, लेखन और टीवी कवरेज महीनों पहले शुरू हो जाते थे लेकिन आगामी ओलम्पिक के लिए तीन सप्ताह से भी कम समय बचा है। पेरिस में क्या होगा, वक्त बताएगा। फिलहाल यूरो कप पूरी दुनिया पर छाया है और वर्ल्ड कप जीतने के बाद भी क्रिकेट का नशा सिर चढ़कर बोल रहा है। ओलम्पिक खेलों की खबर कोई नहीं लेना चाहता है। तो क्या ऐसे हम खेल महाशक्ति बन पाएंगे?