- चार ओलम्पिक खेलने के बाद नोवाक जोकोविच ने पेरिस में पहली बार जीता ओलम्पिक गोल्ड
- स्वर्ण जीतने वाले सबसे ज्यादा उम्र के टेनिस खिलाड़ी बने 37वर्षीय नोवाक ने जीत के बाद कहा, “मेरे जीवन का सबसे बड़ा खिताब और सबसे बड़ी कामयाबी ओलम्पिक गोल्ड है”
- नोवाक ने पुरुष एकल टेनिस फाइनल में स्पेन के उभरते युवा स्टार कार्लोस अलकारेज को परास्त किया था
- सर्बियाई स्टार गोल्डन ग्रैंड स्लैम पूरा करने वाले पांचवें टेनिस खिलाड़ी बन गया है
- भारत के अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा महानतम इसलिए बने क्योंकि उन्होंने अपने-अपने खेल का ओलम्पिक गोल्ड जीता
- कई खिलाड़ियों ने सिल्वर और ब्रॉन्ज जीते है लेकिन ओलम्पिक गोल्ड जीतने के लिए हर खिलाड़ी जान की बाजी लगा देता है, क्योंकि ओलम्पिक में जीता गया गोल्ड खिलाड़ी को दुनिया जहान में पहचान दिलाता है
राजेंद्र सजवान
ओलम्पिक गोल्ड के क्या मायने और महत्व है यह कोई सर्बिया के महान चैम्पियन नोवाक से पूछे, जिसने पेरिस ओलम्पिक में स्पेन के उभरते युवा स्टार कार्लोस अलकारेज को परास्त करके अपना पहला गोल्ड मेडल जीता और बयान दिया, “मेरे जीवन का सबसे बड़ा खिताब और सबसे बड़ी कामयाबी ओलम्पिक गोल्ड है।” तारीफ की बात यह है कि 37वर्षीय नोवाक ओलम्पिक टेनिस गोल्ड जीतने वाला सबसे बड़ी उम्र का खिलाड़ी है। नोवाक ने 2008 में ओलम्पिक कांस्य जीता था। अन्य दो ओलम्पिक में विफल रहने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और अंतत: 21 वर्षीय कार्लोस को मात देकर एकमात्र बची हसरत को पूरा कर लिया। उसने खिताब जीतने के बाद बताया कि ओलम्पिक गोल्ड जीतने के लिए कड़ी मेहनत और लंबा इंतजार किया और अब कोई लालसा बाकी नहीं रही।
दुनियाभर में कई खिलाड़ी बड़ी उम्र के बावजूद ना सिर्फ मैदान में डटे हुए है बल्कि अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन भी कर रहे हैं। क्रिस्टियानो रोनाल्डो, लियोनेल मेसी, रोहन बोपन्ना और कई चैम्पियन गवाह हैं कि उम्र कभी ऊंचे इरादे वालों को डिगा नहीं सकती है। नोवाक का दृढ़ निश्चय ओलम्पिक पदक की गरिमा को भी दर्शाता है। भले ही उसने 24 ग्रैंड स्लैम खिताब जीते, लेकिन बिना ओलम्पिक गोल्ड के वह खुद को सम्पूर्ण नहीं मानता था। अंतत: वह ओलम्पिक गोल्ड के साथ महान खिलाड़ी बन गया।
ओलम्पिक में भारत के दो व्यक्तिगत गोल्ड जीतने वाले अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा महानतम इसलिए बने क्योंकि उनके पास अपने-अपने खेल का ओलम्पिक गोल्ड है। कई खिलाड़ियों ने सिल्वर और ब्रॉन्ज जीते है लेकिन ओलम्पिक गोल्ड जीतने के लिए हर खिलाड़ी जान की बाजी लगा देता है। इसलिए क्योंकि ओलम्पिक में जीता गया गोल्ड खिलाड़ी को दुनिया जहान में पहचान दिलाता है। भारतीय हॉकी ने आठ ओलम्पिक गोल्ड जीतकर देश को गौरवान्वित किया। उसी गोल्ड की वापसी के लिए हमारे खिलाड़ी संघर्षरत हैं।
ओलम्पिक गोल्ड की ताकत को प्रत्येक ओलम्पिक की पदक तालिका से जांचा जा सकता है। एक गोल्ड किसी भी देश को बहुत पीछे से आगे बढ़ा देता है। जैसा कि टोक्यो ओलम्पिक में नीरज चोपड़ा के पदक भारत को तालिका में ऊंची उछाल मिली थी। हालांकि ओलम्पिक में सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल जीतना भी गौरव की बात है लेकिन गोल्ड की महिमा के क्या कहने। यही कारण है कि नोवाक अब खुद को सम्पूर्ण खिलाड़ी मानता है।