- 1988 के सियोल ओलम्पिक में भारत ने पहली बार भाग लिया और चार साल बाद 1992 के बार्सिलोना ओलम्पिक में लिम्बा राम पदक के एकदम करीब पहुंचे लेकिन चूक गए जो कि अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन है
- इस बार छह भारतीय तीरंदाज ओलम्पिक में खाता खोलने के इरादे से पेरिस जा रहे हैं और उनका जोश हमेशा की तरह सातवें आसमान पर है
- पुरुष तीरंदाजों में तरुणदीप राय, धीरज और प्रवीण जाधव जबकि महिला वर्ग में दीपिका, भजन कौर और अंकिता चौधरी भारत की चुनौती पेश करेंगे
- देखना यह होगा कि दक्षिण कोरिया, अमेरिका, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, मैक्सिको, चीनी ताइपे आदि देशों के सामने हमारे तीरंदाज कब तक टिक पाते हैं
- वैसे भारतीय मीडिया, तीरंदाजी महासंघ, उसके कोच और तमाम एक्सपर्ट बड़ी-बड़ी हांक रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है
- बार-बार दावे किए जाते हैं और हेकड़ी हांकी जाती है लेकिन हर बार ओलम्पिक से खाली हाथ लौट आते हैं
राजेंद्र सजवान
पिछले सालों की तुलना में भारतीय तीरंदाज इस बार कुछ ज्यादा ही उत्साहित और ऊर्जा से भरे हुए हैं। उनके जोश को देखते हुए यह माना जा रहा है कि पेरिस ओलम्पिक में भारत को तीरंदाजी में दो-तीन पदक मिल सकते हैं। विश्व कप और एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिषेक वर्मा ने एक साक्षात्कार में यहां तक कहा कि पेरिस ओलम्पिक एक बार खाता खुला तो हमारे तीरंदाज पदकों की झड़ी लगा देंगे।
जी हां, आप ठीक फरमा रहे हैं अभिषेक जी। बस बात खाता खुलने की ही है जो कि 36 साल से खुल नहीं रहा। 1988 के सियोल ओलम्पिक में भारत ने पहली बार भाग लिया और चार साल बाद 1992 के बार्सिलोना ओलम्पिक में लिम्बा राम पदक के एकदम करीब पहुंचे लेकिन चूक गए। यही अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन है। आगे भी लिम्बा ने प्रयास किए पर कामयाबी नहीं मिल पाई। उनके बाद की पीढ़ी के तीरंदाजों ने विश्व और एशियाई स्तर पर खूब पदक जीते लेकिन ओलम्पिक खेलों में नाकाम रहे।
एक बार फिर छह भारतीय तीरंदाज ओलम्पिक में खाता खोलने के इरादे से जा रहे हैं। उनका जोश हमेशा की तरह सातवें आसमान पर है। तरुणदीप राय और दीपिका कुमारी चौथी बार ओलम्पियन कहलाएंगे लेकिन एक बार भी उनके तीर निशाने पर नहीं रहे। संभवतया यह उनका आखिरी ओलम्पिक होना चाहिए। उन पर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किए हैं लेकिन पदक पर निशाना नहीं लगा पाए। पुरुष तीरंदाजों में तरुणदीप राय, धीरज और प्रवीण जाधव जबकि महिला वर्ग में दीपिका, भजन कौर और अंकिता चौधरी चुनौती पेश करेंगे। देखना यह होगा कि दक्षिण कोरिया, अमेरिका, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, मैक्सिको, चीनी ताइपे आदि देशों के सामने हमारे तीरंदाज कब तक टिक पाते हैं।
हालांकि भारतीय मीडिया, तीरंदाजी महासंघ, उसके कोच और तमाम एक्सपर्ट बड़ी-बड़ी हांक रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। बार-बार दावे किए जाते हैं और हेकड़ी हांकी जाती है लेकिन हर बार ओलम्पिक से खाली हाथ लौट आते हैं। अब तो कुछ लोग यह भी कहने लगे हैं कि भारतीय तीरंदाजी को उसके दीन-हीन आदिवासी चैम्पियन लिम्बा राम की ‘हाय’ लगी है जो कि पिछले कई सालों से बिस्तर पकड़े हुए है। लेकिन उनकी खैर-ख्वाह पूछने वाले कम ही हैं। वह कुछ साल पहले तक राष्ट्रीय कोच भी रहे और अपने जीते जी भारत की झोली में ओलम्पिक गोल्ड देखने की तमन्ना रखते हैं।