ओलम्पिक भारत: उम्मीदों का बोझ सबसे बड़ी चुनौती!

  • पदकों का अंबार लगाने वाले अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान, फ्रांस आदि देशों ने आधिकाधिक पदक लूटने के लिए ने कमर कस ली है
  • भारत की पदक की संभावनाओं की सच्चाई यह है कि हमारे पास घटा-जोड़ के लिए ज्यादा कुछ नहीं है क्योंकि पिछले सौ सालों से हम देश के खेल ढांचे को दुरुस्त नहीं कर पाए हैं और नतीजन हर ओलम्पिक से पहले हमारी उम्मीदें दो-चार खेलों तक सिमट कर रह जाती हैं
  • जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा, वेटलिफ्टर मीराबाई चानू, बैडमिंटन जोड़ी सात्विक साईराज और चिराग शेट्टी, मुक्केबाज निकहत जरीन, पुरुष हॉकी टीम पेरिस में भारतीय संभावनाए और उम्मीदों का बोझ उन पर भारी पड़ रहा है
  • निशानेबाजों, तीरंदाजों, मुक्केबाजों, पहलवानों और अन्य पर भी देश के लिए पदक जीतने का जुनून जरूर सवार होगा
  • भारत के लिए कभी भी कोई अन्य खिलाड़ी किसी भी खेल में पदक जीत सकता है लेकिन उक्त खिलाड़ियों से कुछ ज्यादा ही उम्मीद की जा रही है और जाहिर हैं कि उन पर श्रेष्ठ करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है, जो कि शुभ लक्षण नहीं है

राजेंद्र सजवान

पेरिस ओलम्पिक बस चंद घंटों और कुछ कदम की दूरी पर खड़ा है। बिगुल बजने को है और पदकों का अंबार लगाने वाले देशों ने कमर कस ली है। अमेरिका, चीन, जर्मनी, जापान, फ्रांस आदि देश आधिकाधिक पदक लूटने की योजनाओं को अंतिम रूप दे चुके हैं। इधर, भारत में भी देर से ही सही पदक की संभावनाओं पर विचार शुरू हो चुका है। सच्चाई यह है कि हमारे पास घटा-जोड़ के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। पिछले सौ सालों से हम देश के खेल ढांचे को दुरुस्त नहीं कर पाए हैं। नतीजन हर ओलम्पिक से पहले हमारी उम्मीदें दो-चार खेलों तक सिमट कर रह जाती हैं।

   पेरिस में भारतीय संभावनाओं की बात करें तो जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा, वेटलिफ्टर मीराबाई चानू, बैडमिंटन जोड़ी सात्विक साईराज और चिराग शेट्टी, मुक्केबाज निकहत जरीन, पुरुष हॉकी टीम सर्वाधिक चर्चा में हैं और उम्मीदों का बोझ उन पर भारी पड़ रहा है। हालांकि भारत के लिए कभी भी कोई अन्य खिलाड़ी किसी भी खेल में पदक जीत सकता है लेकिन उक्त खिलाड़ियों से कुछ ज्यादा ही उम्मीद की जा रही है। जाहिर हैं कि उन पर श्रेष्ठ करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है, जो कि शुभ लक्षण नहीं है।

   नीरज चोपड़ा और मीराबाई चानू टोक्यो ओलम्पिक में शान के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। क्रमश: स्वर्ण और रजत पदक जीतने वाले खिलाड़ियों ने एक बार फिर कमाल करने की ठानी है। लेकिन बीच-बीच में उनकी चोट भारतीय खेल प्रेमियों की पीड़ा को बढ़ाती रही है। हालांकि नीरज और मीरा फिलहाल पूरी तरह फिट बताए जा रहे हैं लेकिन उनका दिल ही जानता है कि देश की गरिमा और अपनी उपलब्धि को लेकर वे किस कदर दबाव में हो सकते हैं।

   हमेशा की तरह हॉकी टीम बड़बोलेपन के साथ ओलम्पिक में गई है। देश का मीडिया, हॉकी प्रेमी और हॉकी इंडिया के कर्ताधर्ता अपनी टीम को ऐसे एक्सपोज कर रहे हैं, जैसे कि उनके लिए थाली में गोल्ड सजा कर रखा है। जाहिर है कि खिलाड़ियों पर अंदर ही अंदर कुछ दबाव होना स्वाभाविक है। देखते हैं कैसे दबाव काट कर गोल्ड जीत लाते हैं। निशानेबाजों, तीरंदाजों, मुक्केबाजों, पहलवानों और अन्य पर भी देश के लिए पदक जीतने का जुनून जरूर सवार होगा लेकिन दबाव तब सिर चढ़कर बोलता है जब सात्विक साईराज और चिराग शेट्टी की बैडमिंटन जोड़ी से पदक पक्का माना जा रहा है। विश्व नंबर एक जोड़ी अनेक उपलब्धियां हासिल कर चुकी है। अब सिर्फ ओलम्पिक पदक बाकी है, जो कि पीले रंग का होना चाहिए!

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