- टोक्यो ओलम्पिक कांस्य पदक विजेता टीम पिछले महीने तीसरे से चौथे स्थान पर लुढ़क गई और अब धड़ाम गिर कर सातवें नंबर पर पहुंच गई है
- ओलम्पिक से ठीक पहले भारतीय पुरुष हॉकी टीम की रैंकिंग में गिरावट की खबर से खिलाड़ियों के मनोबल पर फर्क पड़ सकता है
- यह नहीं भूलना चाहिए कि इस कदर गिरी हुई रैंकिंग वाली भारतीय टीम का ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, बेल्जियम, हॉलैंड, जर्मनी जैसे प्रतिद्वंद्वी क्या हाल करेंगे
- इसमें कोई दो राय नहीं है कि रैंकिंग को दरकिनार करते हुए भारतीय हॉकी ने अनेक अवसरों पर बेहतर टीमों को परास्त किया है
- दोस्ताना या कम महत्व वाले आयोजन में भारतीय प्रदर्शन हमेशा बेहतर होता है लेकिन ओलम्पिक या वर्ल्ड कप जैसे बड़े आयोजनों की बात कुछ और होती है
- वरना क्या कारण है कि 1980 के मॉस्को ओलम्पिक और 1975 के वर्ल्ड के बाद से भारतीय हॉकी को बड़ी खुशी नसीब नहीं हो पाई
राजेंद्र सजवान
जैसे-जैसे पेरिस ओलम्पिक गेम्स नजदीक आ रहे हैं, भारतीय हॉकी टीम की विश्व रैंकिंग में गिरावट का सिलसिला जारी है। ओलम्पिक कांस्य पदक विजेता टीम कुछ महीने पहले तीसरे नंबर पर थी। फिर चौथे स्थान पर लुढ़क गई और अब धड़ाम गिर कर सातवें नंबर पर पहुंच गई है। यह हाल तब हुआ है जब ओलम्पिक सिर पर है। यह जरूरी नहीं है कि किसी भी खेल आयोजन में ऊंची रैंकिंग वाले देश बेहतर प्रदर्शन करते हैं। कभी कभार ऐसे देश और टीमें अप्रत्याशित परिणाम निकालते हैं, जो रैंकिंग में फिसड्डी होते हैं।
लेकिन ओलम्पिक से ठीक पहले भारतीय पुरुष हॉकी टीम की रैंकिंग में गिरावट की खबर से खिलाड़ियों के मनोबल पर फर्क पड़ सकता है। एफआईएच प्रो-लीग के 2023-24 सीजन के समापन पर और ओलम्पिक से ठीक पहले भारतीय टीम का सातवां स्थान भले ही एक खबर भर है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इस कदर गिरी हुई रैंकिंग वाली टीम का ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, बेल्जियम, हॉलैंड, जर्मनी जैसे प्रतिद्वंद्वी क्या हाल करेंगे। फिलहाल भारतीय टीम की घोषणा हो चुकी है। अनुभवी हरमनप्रीत सिंह टीम की बागडोर संभाले हुए हैं। हॉकी इंडिया, कप्तान, खिलाड़ी और हॉकी पंडित रैंकिंग को अनदेखा करते हुए पदक की उम्मीद कर रहे हैं। कुछ एक तो यहां तक कह रहे हैं कि इस बार टीम 44 सालों बाद गोल्ड लेकर आ रही है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि रैंकिंग को दरकिनार करते हुए भारतीय हॉकी ने अनेक अवसरों पर बेहतर टीमों को परास्त किया है। लेकिन उन टीमों का असली रंग ओलम्पिक में निखर कर आता है। दोस्ताना या कम महत्व वाले आयोजन में भारतीय प्रदर्शन हमेशा बेहतर होता है लेकिन ओलम्पिक या वर्ल्ड कप जैसे बड़े आयोजनों की बात कुछ और होती है। वरना क्या कारण है कि 1980 के मॉस्को ओलम्पिक और 1975 के वर्ल्ड के बाद से भारतीय हॉकी को बड़ी खुशी नसीब नहीं हो पाई। इस बार भी पुरुष हॉकी टीम को संभावित पदक विजेताओं में शामिल किया गया है। लेकिन पिछले कुछ सालों से भारतीय हॉकी में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा। हॉकी इंडिया की अंतर्कलह भले ही कुछ समय के लिए दब गई है लेकिन यह खामोशी सिर्फ ओलम्पिक तक रहने वाली है। पदक जीत पाए तो ठीक। वरना बगावत के सुर फिर से फूट सकते हैं। फिलहाल रैंकिंग गिरी है, भरोसा गिरना अभी बाकी है। लेकिन भारतीय खिलाड़ियों में दम है। उम्मीद है कि इस बार तमाम कयासों को दरकिनार करके गोल्ड जीत लाएंगे।