ओलम्पिक हॉकी: रंग कोई भी हो, पदक चाहिए

  • 16 सदस्यीय टीम की बागडोर अनुभवी डिफेंडर व ड्रैग फ्लिक विशेषज्ञ हरमनप्रीत सिंह को सौंपी गई है और हार्दिक सिंह के उप-कप्तान बनाया गया है
  • टीम में सिर्फ पांच खिलाड़ी ऐसे हैं जो ओलम्पिक में पहली बार उतरेंगे अर्थात् टीम इंडिया अनुभव व युवा जोश से मिलकर बनी है
  • ओलम्पिक हॉकी के मुकाबले 27 जुलाई से 8 अगस्त तक खेले जाएंगे और पूल ‘बी’ में भारत अपने अभियान की शुरुआत मौजूदा चैम्पियन बेल्जियम से खेलकर करेगा
  • सबके अपने-अपने दावे हैं लेकिन चैम्पियन वही देश बनेगा, जिसके पास गोल जमाने वाले, पेनल्टी कॉर्नर पर कमाल करने वाले और दमखम के उस्ताद खिलाड़ी होंगे
  • यदि भारतीय टीम पिछले ओलम्पिक वाला प्रदर्शन बरकरार रख पाई तो सम्मानजनक रहेगा और गोल्ड-सिल्वर जीता तो पिछली नाकामियों पर पर्दा पड़ सकता है

राजेंद्र सजवान

पेरिस ओलम्पिक के लिए भारतीय हॉकी टीम की घोषणा के बाद एक ओर कुछ हॉकी विशेषज्ञ टीम की जीत को लेकर ज्ञान झाड़ रहे है और कह रहे हैं कि टीम में दम है और इस बार भारत टोक्यो ओलम्पिक से भी बेहतर प्रदर्शन करेगा। उल्लेखनीय है कि कोरोना प्रभावित पिछले ओलम्पिक गेम्स में भारतीय हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता था। दूसरी ओर कुछ पूर्व खिलाड़ी और हॉकी जानकार कह रहे हैं कि कुछ सीनियर खिलाड़ियों पर ज्यादा ही मेहरबानी की गई है। फिलहाल, किन-किन पर चयन समिति और हॉकी इंडिया ने जरूरत ज्यादा भरोसा दिखाया है उनके बारे में फिर कभी बात की सकती है।

 

  फिलहाल हॉकी प्रेमियों को बता दें कि 16 सदस्यीय टीम की बागडोर अनुभवी डिफेंडर व ड्रैग फ्लिक विशेषज्ञ हरमनप्रीत सिंह को सौंपी गई है और हार्दिक सिंह के उप-कप्तान बनाया गया है। कई ऐसे खिलाड़ी भी टीम में हैं जो वर्षों से खेल रहे हैं। सिर्फ पांच खिलाड़ी ऐसे हैं जो ओलम्पिक में पहली बार उतरेंगे। अर्थात् टीम इंडिया अनुभव व युवा जोश से मिलकर बनी है। ओलम्पिक हॉकी के मुकाबले 27 जुलाई से 8 अगस्त तक खेले जाएंगे।

भारत अपनी शुरुआत पूल ‘बी’ में मौजूदा चैम्पियन बेल्जियम से खेलकर करेगा। भारत के पूल में ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, न्यूजीलैंड और आयरलैंड जैसी टीमें हैं। पूल ‘ए’ में नीदरलैंड, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका और मेजबान फ्रांस को स्थान प्राप्त है। अर्थात दुनिया की श्रेष्ठ और उर्जावान टीमें ओलम्पिक में भाग ले रही हैं। सबके अपने-अपने दावे हैं लेकिन चैम्पियन वही देश बनेगा, जिसके पास गोल जमाने वाले, पेनल्टी कॉर्नर पर कमाल करने वाले और दमखम के उस्ताद खिलाड़ी होंगे।

सिर्फ खोखले दावों से ओलम्पिक खिताब नहीं जीते जा सकते। यदि भारतीय टीम पिछले ओलम्पिक वाला प्रदर्शन बरकरार रख पाई तो सम्मानजनक रहेगा और गोल्ड-सिल्वर जीता तो पिछली नाकामियों पर पर्दा पड़ सकता है। उम्मीद है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भारतीय हॉकी देशवासियों को निराश नहीं करेगी। यदि ऐसा नहीं हुआ तो कोई ठोस बहाना तैयार रखें। याद रहे सरकार देश को खेल महाशक्ति बनाने के लिए कटिबद्ध है।

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