ओलम्पिक 2036: भारत के दावे का दम
- ओलम्पिक खेलों की मेजबानी के लिए दक्षिण कोरिया का नॉर्थ जिओला, तुर्की का इस्तांबुल, चिली का सेंटियागो के अलावा इंडोनेशिया, मिस्र आदि देश दावा ठोक चुके हैं और इन को टक्कर देने के लिए भारत भी कमर कसे हुए है
- भारत का दावा कितना मजबूत है यह तो देश की सरकार, ओलम्पिक संघ और तमाम खेल संघ जानते होंगे लेकिन हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़े रिश्तों के कारण दावेदारी पर फर्क पड़ सकता है
- 1988 के सियोल ओलम्पिक की शानदार मेजबानी के करने वाला दक्षिण कोरिया दौड़ में बहुत आगे निकल गया है लेकिन भारत सहित अन्य देश भी पीछा नहीं छोड़ने वाले हैं
- अंतिम निर्णय साल 2026 तक हो पाएगा और भारत सरकार का सहयोग पाकर इंडियन ओलम्पिक एसोसिएशन (आईओए) ने पूरी ताकत झोंक दी है
- भारत 1951 और 1982 के एशियन गेम्स और 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी कर चुका है
- पहलगाम के आतंकी हमले के बाद जो तस्वीर उभर कर आई है उससे नहीं लगता कि चीन, अमेरिका जैसे गुटबाज और एकजुट मुस्लिम देश भारत की मेजबान का समर्थन करेंगे
- और तो और हमारा पैदा किया बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान भी भारत के हक में आवाज बुलंद नहीं करने वाले
राजेंद्र सजवान
हालांकि भारत फिलहाल खेल महाशक्तियों में शामिल नहीं है लेकिन एशियाड और ओलम्पिक गेम्स में पदक जीतने में भारतीय खिलाड़ियों को छुट-पुट सफलता मिल रही है। यही कारण है कि देश की सरकार ने 2036 के ओलम्पिक खेलों के लिए दावेदारी का मन बनाया है। फिलहाल, ओलम्पिक खेलों की मेजबानी के लिए दक्षिण कोरिया का नॉर्थ जिओला, तुर्की का इस्तांबुल, चिली का सेंटियागो के अलावा इंडोनेशिया, मिस्र आदि देश दावा ठोक चुके हैं। इन देशों को टक्कर देने के लिए भारत भी कमर कसे हुए है। तो क्या भारत पहली बार ओलम्पिक खेलों की मेजबानी पाने में सफल रहेगा? यह सवाल आम भारतीय के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है।
भारत का दावा कितना मजबूत है यह तो देश की सरकार, ओलम्पिक संघ और तमाम खेल संघ जानते होंगे। लेकिन हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़े रिश्तों के कारण दावेदारी पर फर्क पड़ सकता है। हालांकि खबर यह है कि 1988 के सियोल ओलम्पिक की शानदार मेजबानी के करने वाला दक्षिण कोरिया दौड़ में बहुत आगे निकल गया है लेकिन भारत सहित अन्य देश भी पीछा नहीं छोड़ने वाले हैं। अंतिम निर्णय 2026 तक हो पाएगा और भारत सरकार का सहयोग पाकर इंडियन ओलम्पिक एसोसिएशन (आईओए) ने पूरी ताकत झोंक दी है। लेकिन इस दौड़ में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने जाने मुकाबला खासा रोचक हो गया है और निसंदेह भारत को दुनिया के सबसे बड़े खेल मेले के आयोजन के लिए अभी कुछ और साल प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
जहां तक भारत की मेजबानी में हुए बड़े आयोजनों की बात है तो 1951 और 1982 के एशियन गेम्स और 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स अब तक उसकी बड़ी कमाई रहे हैं। लेकिन वर्तमान सरकार ऊंची छलांग लगाना चाह रही है और पहले ही प्रयास में खेल जगत को भारत की आयोजन क्षमता के दर्शन कराने का दम भर रही है। लेकिन यह ना भूलें कि पहलगाम के आतंकी हमले के बाद जो तस्वीर उभर कर आई है उससे नहीं लगता कि चीन, अमेरिका जैसे गुटबाज और एकजुट मुस्लिम देश भारत की मेजबान का समर्थन करेंगे। और तो और हमारा पैदा किया बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, अफगानिस्तान और पाकिस्तान भी भारत के हक में आवाज बुलंद नहीं करने वाले!