…और हम सुपर पॉवर बन गए

  • यह जान लें कि दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या और सबसे बड़े लोकतंत्र के हिस्से एक सिल्वर और पांच ब्रॉन्ज मेडल आएं हैं
  • टोक्यो ओलम्पिक की तुलना में बेहद घटिया प्रदर्शन रहा, क्योंकि टोक्यो में नीरज चोपड़ा के गोल्ड से इज्जत बच गई थी और पदक तालिका में सम्मानजनक स्थान मिल गया था
  • इस बार भी नीरज ने अपना राष्ट्रधर्म बखूबी निभाया और भले ही वह गोल्ड नहीं जीत पाए लेकिन वह बेहतर खिलाड़ी के विरुद्ध अपना श्रेष्ठ देने में सफल रहे
  • निशानेबाजी में तीन, कुश्ती में एक और एक कांस्य पदक हॉकी के नाम रहा जबकि खिलाड़ियों ने निराश किया
  • हमारी सरकार और उसके जी हुजूर क्यों बार-बार देश को खेल महाशक्ति बनाने का दम भरते हैं और देशवासियों और खासकर खेल प्रेमियों को गुमराह करते हैं

राजेंद्र सजवान

पेरिस ओलम्पिक का बिगुल बजने से पहले ही भारतीय खेल आकाओं, खेल महासंघों, खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण के अवसरवादियों ने ढोल नगाड़े पीटकर चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया था। हर किसी की जुबान पर था कि भारत खेल मैदान की सुपर पॉवर बनने जा रहा है। दावा किया जा रहा था कि तमाम खेलों में भारतीय खिलाड़ी विश्व स्तर के हैं और किसी को भी टक्कर देने में सक्षम हैं।

   अब जरा यह भी जान लें कि दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या और सबसे बड़े लोकतंत्र के हिस्से एक सिल्वर और पांच ब्रॉन्ज मेडल आएं हैं। अर्थात टोक्यो ओलम्पिक की तुलना में बेहद घटिया प्रदर्शन रहा। इसलिए चूंकि टोक्यो में नीरज चोपड़ा के गोल्ड से इज्जत बच गई थी और पदक तालिका में सम्मानजनक स्थान मिल गया था। इस बार भी नीरज ने अपना राष्ट्रधर्म बखूबी निभाया। भले ही वह गोल्ड नहीं जीत पाए लेकिन वह बेहतर खिलाड़ी के विरुद्ध अपना श्रेष्ठ देने में सफल रहे। निशानेबाजी में तीन, कुश्ती में एक और एक पदक हॉकी के नाम रहा। बाकी खिलाड़ियों ने निराश किया। सवाल यह पैदा होता है कि हमारी सरकार और उसके जी हुजूर क्यों बार-बार देश को खेल महाशक्ति बनाने का दम भरते हैं? क्यों देशवासियों और खासकर खेल प्रेमियों को गुमराह किया जा रहा है?

   इसमें कोई दो राय नहीं है कि खिलाड़ी को अधिकाधिक सुविधाएं दी जा रही है। मंत्री और प्रधानमंत्री पदक विजेताओं से बतिया रहे हैं। लेकिन क्या यह सब करने से उनका प्रदर्शन सुधर जाएगा? अक्सर हम दावा करते हैं कि हमारे पास दुनिया के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर, खेल वैज्ञानिक और खेल जानकार हैं। झूठे नारे देने वाले बताएं कि उनकी श्रेष्ठता कहां गई? क्यों भारत पदक तालिका में शर्मनाक स्थान पर जा गिरा है? सीधा सा मतलब है कि ओलम्पिक आंदोलन और उसकी भावना का सही से पालन नहीं हो रहा है। खेल की आड़ में तमाशे, सैर-सपाटे और देशवासियों के खून-पसीने की कमाई को बर्बाद किया जा रहा है।

   नीरज के अलावा एथलेटिक्स मृतवत पड़ी है। तैराकी और जिम्नास्टिक में गहराई तक डूबे हैं। ‘तीर’ तुक्के साबित हो रहे हैं, तो मुक्केबाजी आत्मघाती। 40 में से चार खेलों में झुनझुने जीतकर सुपर पॉवर तो बन नहीं सकते। प्रधानमंत्री पदक विजेताओं का हालचाल पूछ रहे हैं, उनका उत्साह बढ़ा रहे हैं लेकिन भ्रष्ट तंत्र देश के खिलाड़ियों और खेलों के लिए बाधा बना है उसकी खबर कौन लेगा? इतना तय है कि जब तक भारतीय खेल पदक तालिका में सम्मानजनक स्थान अर्जित नहीं कर पाते तब तक हम खेल महाशक्ति नहीं बन सकते।

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