- पिछले कुछ सालों में खेल कमेंटरी करने वालों में कुछ ऐसे लोग शामिल हो गए हैं, जिनका खेल ज्ञान, उनका भावना में बहना, रोना-पीटना, खिलाड़ियों और अधिकारियों का स्तुतिगान करना और जरूरत पड़ने पर सड़क छाप भाषा और भाषण का प्रयोग करना उनका चरित्र सा बन गया है
- फुटबॉल में रुचि रखने वाले जानते हैं कि कैसे जी-हुजूरी करने वाले कमेंटेटरों ने नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे पिछड़े हुए फुटबॉल राष्ट्रों के हाथों पिटने वाले भारतीय खिलाड़ियों को ‘ब्लू टाइगर्स’ और ‘ब्लू टाइगरेस’ का संबोधन दिया है
- खेल कमेंटरी और खासकर, हॉकी का वृतांत सुनाने में अद्वितीय जसदेव सिंह हमेशा कहते थे कि रेडियो और टीवी की कमेंटरी का फर्क समझने की जरूरत है
- जसदेव कहा करते थे कि एक कमेंटेटर को हमेशा निष्पक्ष होना चाहिए और जो कुछ हो रहा है वही सुनाना और दिखाना चाहिए
- उनके अनुसार, जो होना चाहिए या जो हो सकता था, कमेंटरी की परिधि में नहीं आता लेकिन हां जरूरी हो तो किसी जाने-माने खिलाड़ी को विशेषज्ञ के रूप में रखा जा सकता है
- उनके अलावा रवि चतुर्वेदी, सुशील दोषी, हर्षा भोगले, राजन बाला, और दर्जनों अन्य कमेंटेटर भी सालों-साल क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल जैसे खेलों से जुड़े रहे
राजेंद्र सजवान
मूल विषय पर जाने से पहले आपको कुछ झलकियों से रूबरू कराते हैं, “भारत को आठवां पेनल्टी कॉर्नर मिला है… सरपंच जी अब तो गोल करना ही पड़ेगा… भारत की लाज आपके मजबूत हाथों में है…करिश्मा कर दो मेरे प्रभु…! और भारतीय हॉकी टीम ने विजयी गोल दाग दिया…” ये कमेंटेटर महाशय रो रहे हैं, बगल में बैठे अपने साथी को भी रुला रहे हैं। “पाजी तुस्सी ग्रेट हो… भारत की जय… आप भारत की शान हैं…” यह कहते-कहते ओलम्पिक हॉकी मैच का विवरण सुनाने वाले महाश्य फिर रोते हैं। टीम हार जाएं तो रोएंगे और जीत जाए तो भावुक हो जाते हैं और साथी कमेंटेटर को आंसू बहाने के लिए मजबूर कर देते हैं।
पिछले कुछ सालों में हॉकी, फुटबॉल, कबड्डी, क्रिकेट आदि कुछ तेज-तर्रार खेलों की कमेंटरी करने वालों में कुछ ऐसे ज्ञानी लोग शामिल हो गए हैं, जिनका खेल ज्ञान, उनका भावना में बहना, रोना-पीटना, खिलाड़ियों और अधिकारियों का स्तुतिगान करना और जरूरत पड़ने पर सड़क छाप भाषा और भाषण का प्रयोग करना उनका चरित्र सा बन गया है।
खेल कमेंटरी और खासकर, हॉकी का वृतांत सुनाने में जसदेव सिंह अद्वितीय थे। लगभग दो दशक तक उनके करीब रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह हमेशा कहते थे कि रेडियो और टीवी की कमेंटरी का फर्क समझने की जरूरत है। उनके अलावा रवि चतुर्वेदी, सुशील दोषी, हर्षा भोगले, राजन बाला, और दर्जनों अन्य कमेंटेटर भी सालों-साल क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल जैसे खेलों से जुड़े रहे। जसदेव हमेशा कहते थे, “एक कमेंटेटर को हमेशा निष्पक्ष होना चाहिए। जो कुछ हो रहा है वही सुनाना और दिखाना चाहिए। जो होना चाहिए या जो हो सकता था, कमेंटरी की परिधि में नहीं आता। हां जरूरी हो तो किसी जाने-माने खिलाड़ी को विशेषज्ञ के रूप में रखा जा सकता है।”
क्रिकेट, फुटबॉल और हॉकी के कमेंटेटर रहे राजन बाला ने कई किताबें लिखी हैं। वे भी मानते हैं कि कमेंटरी का स्तर लगातार गिर रहा है। कुछ अवसरवादी और खेल प्रशासकों के मुंह लगे लोग रेडियो और टीवी कमेंटरी का अंतर नहीं समझते हैं। उन्हें बस खेल प्रमुखों, टीवी चैनल आकाओं और चालबाज खिलाड़ियों को खुश करना होता है। फुटबॉल में रुचि रखने वाले जानते हैं कि कैसे जी-हुजूरी करने वाले कमेंटेटरों ने नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार जैसे पिछड़े हुए फुटबॉल राष्ट्रों के हाथों पिटने वाले भारतीय खिलाड़ियों को ‘ब्लू टाइगर्स’ और ‘ब्लू टाइगरेस’ का संबोधन दिया है। इसे वे बार-बार रिपीट करते हैं। देश के जाने-माने खिलाड़ी और ओलम्पिक पदक विजेता मानते हैं कि खेलों की कमेंटरी में शालीनता और सुधार की जरूरत है। उनके अनुसार, खिलाड़ियों की चाकरी करने वाले कमेंटेटर नहीं चाहिए।