…कहां है दिल्ली के अपने खिलाड़ी!

  • यह सवाल कुछ विरोधाभासी जरूर है लेकिन यही सत्य है क्योंकि अधिकारी दिल्ली के, क्लब दिल्ली के, मैदान और तमाम व्यवस्थाएं भी राजधानी की स्थानीय इकाई की लेकिन दिल्ली की फुटबॉल में उसके अपने खिलाड़ी कहां हैं
  • दिल्ली के छोटे-बड़े क्लब नॉर्थईस्ट, कोलकाता, उत्तराखंड, हरियाणा, यूपी, पंजाब आदि प्रदेशों के खिलाड़ियों की शरणगाह बन चुके हैं जबकि दिल्ली के अपने खिलाड़ी रिजर्व बेंच में बैठकर तालियां बजा रहे हैं
  • दिल्ली एफसी के पदाधिकारी बीएस मेहरा ने अपनी एसोसिएशन से जानना चाहा है कि दिल्ली की फुटबॉल में उसके अपने खिलाड़ी कहां है और दिल्ली की फुटबॉल नोएडा के संचालित क्यों हो रही है
  • सवाल यह भी पैदा होता है कि डीएसए ने नोएडा के क्लबों को दिल्ली से बाहर के रजिस्ट्रेशन के आधार पर अपने बेड़े में कैसे शामिल किया

राजेंद्र सजवान

दिल्ली की फुटबॉल व्यस्त है, मस्त है। व्यस्त इसलिए क्योंकि हर सप्ताह या महीने में कोई न कोई आयोजन हो रहा है। स्कूल, कॉलेज और संस्थानों एवं क्लबों के खिलाड़ी जमकर खेल रहे हैं। डीएसए प्रीमियर लीग, सीनियर डिवीजन लीग, ‘ए’ और ‘बी’ डिवीजन लीग के अलावा संस्थानिक एवं अन्य आयोजन हो रहे हैं। दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) के पदाधिकारी और फुटबॉल दिल्ली की टीम को एक पल की फुर्सत नहीं है। बेशक, बहुत कुछ हो रहा है लेकिन दिल्ली के खिलाड़ी कहां हैं?

   यह सवाल कुछ विरोधाभासी जरूर है लेकिन यही सत्य है। इसलिए क्योंकि अधिकारी दिल्ली के, क्लब दिल्ली के, मैदान और तमाम व्यवस्थाएं भी राजधानी की स्थानीय इकाई की लेकिन दिल्ली की फुटबॉल में उसके अपने खिलाड़ी कहां हैं? अर्थात देश की राजधानी में सालों साल से रहने वाले, नौकरी पेशा करने वाले और राशन कार्ड व आधार कार्ड धारकों के बच्चे दिल्ली की फुटबॉल में कहां हैं? यह सवाल स्थानीय फुटबॉल में गरमा गया है। दिल्ली एफसी के पदाधिकारी बीएस मेहरा ने अपनी एसोसिएशन से जानना चाहा है कि दिल्ली की फुटबॉल में उसके अपने खिलाड़ी कहां है? मेहरा के अनुसार दिल्ली की फुटबॉल नोएडा के संचालित क्यों हो रही है?

   बेशक, मेहरा और उनकी जैसी सोच रखने वाले अधिकारियों की चिंता वाजिब है और इस फोड़े को नासूर बनने से पहले ही बड़े इलाज की जरूरत है। मेहरा के साथ बहुत से कार्यकारिणी सदस्यों, पदाधिकारियों और पूर्व खिलाड़ियों ने भी आवाज उठाई है। सवाल यह पैदा होता है कि डीएसए ने नोएडा के क्लबों को दिल्ली से बाहर के रजिस्ट्रेशन के आधार पर अपने बेड़े में कैसे शामिल किया? कहीं न कहीं कोई चूक हुई है लेकिन यथास्थिति को जस की तस बनाए हुए कोई हल तो निकालना ही पड़ेगा। जो हो गया सो हो गया।

   लेकिन समस्या सिर्फ नोएडा या यूपी की नहीं है। दिल्ली के छोटे-बड़े क्लब नॉर्थईस्ट, कोलकाता, उत्तराखंड, हरियाणा, यूपी, पंजाब आदि प्रदेशों के खिलाड़ियों की शरणगाह बन चुके हैं। नतीजन विवाद, झगड़े-फसाद, मारपीट हो रही है और यहां तक आरोप लगाए जा रहे हैं कि बाहरी खिलाड़ी और कोच मिलीभगत की फुटबॉल खेल रहे हैं और दिल्ली के अपने खिलाड़ी रिजर्व बेंच में बैठकर तालियां बजा रहे हैं।

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