कुश्ती अब राजनीति के अखाड़े में, चित होने का डर!

  • पूर्व फेडरेशन अध्यक्ष और सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर लगे यौन शोषण के आरोपों की जांच हो सकता है कि अब ठंडे बस्ते में बंद हो जाए, क्योंकि आरोप लगाने वाले विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया ने कांग्रेस  का दामन थाम लिया है
  • पता नहीं बृजभूषण कितने दूध के धुले हैं लेकिन उन्होंने विनेश, साक्षी मलिक और बजरंग की अगुआई में चलाए गए आंदोलन को काफी पहले कांग्रेस प्रायोजित करार दिया था

राजेंद्र सजवान

पिछले दो साल में भारतीय महिला पहलवानों के साथ जो कुछ हुआ उसकी देश-विदेश में घोर निंदा हो चुकी है। पूर्व फेडरेशन अध्यक्ष और सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर लगे यौन शोषण के आरोपों की जांच चल रही है और हो सकता है कि यह जांच अब ठंडे बस्ते में बंद हो जाए, क्योंकि आरोप लगाने वाले विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया ने कांग्रेस  का दामन थाम लिया है। पता नहीं बृजभूषण कितने दूध के धुले हैं लेकिन उन्होंने विनेश, साक्षी मलिक और बजरंग की अगुआई में चलाए गए आंदोलन को काफी पहले कांग्रेस प्रायोजित करार दिया था।

   अब चूंकि विनेश कांग्रेस  से चुनाव लड़ रही है और बजरंग को किसान कांग्रेस  कमेटी का वर्किंग चेयरमैन बनाया गया है तो बृजभूषण के आरोपों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। लेकिन यह भी सच है कि पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण के पार्टी और कुश्ती फेडरेशन के पद पर रहते पहलवानों को कठिन समय गुजारना पड़ा था। विनेश और बजरंग ने सीधे-सीधे सरकार पर आरोप लगाया था कि अपनी पार्टी  की छवि बचाने के लिए उन्हें हैरान-परेशान किया जा रहा है। लेकिन जब विनेश ओलम्पिक पदक के करीब पहुंचकर 100 ग्राम अधिक वजन होने के कारण फाइनल नहीं लड़ पाई तो खुद प्रधानमंत्री ने भी उसे ढाढस बंधाया और देश की बहादुर बेटी कहा था । उस पर करोड़ों की बरसात का आश्वासन भी दिया गया। लेकिन अब वही बहादुर और लड़ाकी बेटी कांग्रेस से चुनाव लड़ रही है। जाहिर है बहुत सी चीजें उलट-पलट जाएंगी। एक पार्टी विनेश की मर्दानगी का बखान करेगी तो विपक्ष उस पर कीचड़ उछालने का कोई भी मौका नहीं छोड़ने वाला। इस दलगत राजनीति में कुश्ती की लड़ाई हास्यास्पद बन जाए तो हैरानी नहीं होने वाली।

   सही मायने में विनेश, बजरंग और साक्षी ही बृजभूषण के विरुद्ध लड़ रहे थे, जिनमें विनेश और बजरंग ने राजनीति के अखाड़े में शरण ली जबकि साक्षी अब भी भारतीय रेलवे की अधिकारी है। इस तिकड़ी ने महिला पहलवानों के हक की लड़ाई जारी रखने का प्रण किया है। लेकिन एक वर्ग आरोप लगा रहा है कि पहलवानों की लड़ाई लड़ने वालों का असली मकसद पूरा हो गया है। उन्हें अखाड़े से राजनीति के अखाड़े में कूदने का रास्ता चाहिए था, जो कि उन्हें मिल चुका है। फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन इतना तय है कि जंतर-मंतर का धरना प्रदर्शन अब विशुद्ध राजनीति में घुसपैठ करने जा रहा है। देखना यह होगा कि कुश्ती का भला होगा या चारों खाने चित होगी।

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