कोच अश्विन शर्मा बोले, “पहले हमें संकोच होता था लेकिन अब फख्र होता है”

  • विश्व विजेता की टीमों कोचों अश्विन शर्मा (पुरुष), सुमित भाटिया (महिला) और मुन्नी जून (महिला) ने खो खो वर्ल्ड कप के आयोजन सपना बताया, जो सच हो गया
  • तीनों कोचों ने माना की आज से पहले उन सभी ने अपने जीवन में कभी नहीं सोचा था कि खो खो गली-कूचे से निकल कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऊंचाइयां छुएगा

अजय नैथानी

नई दिल्ली। “पहले खो खो भारत का गली-कूचे का खेल माना जाता था और हमें यह बताते हुए संकोच होता था कि हम खो खो कोच हैं लेकिन 2017 के बाद बहुत बदलाव आया है और अब हम फख्र के साथ कहने लगे हैं कि हम खो खो कोच हैं,” यह कहना था भारत की उस पुरुष टीम के कोच अश्विन शर्मा का, जिसने बीते रविवार को पहले खो खो वर्ल्ड कप का खिताब अपने नाम किया। राजधानी दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में संपन्न हुए इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट को अश्विन शर्मा ने भारत के इस स्वदेशी खेल का कायाकल्प करने वाला बताया। विश्व चैम्पियन महिला टीम के कोच सुमित भाटिया और मुन्नी जून ने भी अपने साथी अश्विन शर्मा से सहमति जताते हुए वर्ल्ड कप आयोजन और खिताबी कामयाबी को सपना बताया।   

   अश्विन शर्मा ने सोमवार को टूर्नामेंट के बाद मीडिया से एक मुलाकात के दौरान कहा, “लगभग सात साल से पहले तक खो खो ऐसे चल रहा था कि बस चल रहा था। आपको शायद ही मालूम होगा कि 1932 के बर्लिन ओलम्पिक गेम्स में खो खो का डेमोंस्ट्रेशन हुआ था लेकिन उसके बाद खो खो एक स्तर तक सीमित रहा। लेकिन जैसे ही 2017 में वर्तमान अध्यक्ष सुधांशु मित्तल व महासचिव एमएस त्यागी और उनकी टीम ने खो खो फेडरेशन ऑफ इंडिया (केकेएफआई) की कमान संभाली तो इस खेल का कायाकल्प होना शुरू हो गया।”  पुरुष टीम के कोच ने आगे कहा, “मैं पिछले पैंतालीस सालों से खो खो के साथ बतौर खिलाड़ी और कोच जुड़ा हुआ। हमने खो खो खेला है और बाद में खिलाड़ी तैयार किए हैं। लेकिन हमने ऐसा कभी सोचा नहीं था कि यह दिन हम को अपने जीवन में देखने को मिलेगा और खो खो का इस तरह कायाकल्प हो जाएगा। खो खो को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऊंचाइयों तक पहुंचता हुआ देखने का हमारा सपना पूरा हो गया।”

   इस खेल के कायाकल्प पर बात करते हुए उन्होंने आगे कहा, “खो खो के अंदर बहुत सारे बदलाव किए गए, जो इस खेल को आगे ले जाने में मददगार रहे। खेल में इन बदलावों को लेकर कुछ लोगों ने आलोचना जरूर की लेकिन अगर किसी खेल को प्रमोट करना है तो उसके अंदर बदलाव लाने पड़ते हैं। इन बदलाव के तहत अवधि, मैदान को छोटा किया गया और वजीर को इस खेल का हिस्सा बनाना सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ। इन बदलावों के साथ खेल का नया प्रारूप अल्टीमेट खो खो शुरू किया गया, जब इसे लोगों ने देखा तो सराहा। अगर यह टूर्नामेंट शुरू नहीं होता, तो खो खो आज यह मुकाम नहीं मिलता। इससे खेल प्रेमियों के अंदर जिज्ञासा पैदा हुई और वे इसे देखने के लिए उमड़ पड़े। अब खो खो 55 देशों में खेला जा रहा। इस खेल को प्रमोट करने के लिए हमने इन देशों में कोच भेजे और सेमिनार आयोजित किए। आज वर्ल्ड कप समाप्त हुआ है लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर ऐसे ही प्रयास जारी रहे तो निकट भविष्य में 110 देश खो खो खेलेंगे। यह खेल एशियाई में भी बढ़ेगा और ओलम्पिक में भी जाएगा।” अश्विन शर्मा ने कहा, “आज खो खो खेलना एक सफल करियर बन गया है, क्योंकि हमारे कप्तान प्रतीक को नौकरी मिली और अब प्रमोशन भी मिलने जा रहा है।”  

  महिला टीम की कोच मुन्न जून ने बताया, “बतौर खो खो खिलाड़ी जब हम खेला करते थे, तो आज जैसी सुविधा तो दूर पहचान मिलना भी बड़ी बात थी। यह वर्ल्ड कप एक सपने जैसा है, जिसके बारे में हमने आज से पहले अपनी जिंदगी में कभी सोचा नहीं था। वर्ल्ड कप के समापन समारोह में तो मेरी आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे।” महिला टीम के कोचों ने भी उम्मीद जताई कि खो खो भविष्य में एशियन गेम्स और ओलम्पिक खेलों का हिस्सा बनेगा।

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