- हिमाचल प्रदेश फुटबॉल एसोसिएशन के सर्वेसर्वा दीपक शर्मा को इसलिए तुरत-फुरत सजा सुनाई गई, क्योंकि ये श्रीमान जी भारत के खेल मंत्री के प्रदेश से हैं और लोकसभा चुनाव व राज्य में उप-चुनाव सर पर हैं वर्ना एआईएफएफ शायद ही कभी अपने लाडले को कार्य समिति से बाहर का रास्ता दिखाती
- पहले भी बहुत सी महिला खिलाड़ियों के साथ अलग-अलग खेलों में शर्मनाक हरकतें हुई लेकिन ना तो उनकी फेडरेशन और ना ही खेल मंत्रालय ने ऐसी मुस्तैदी दिखाई
- खेल मंत्री अनुराग ठाकुर साधुवाद के पात्र हैं, हिमाचल के खिलाड़ियों का अपने नेता पर विश्वास मजबूत जरूर हुआ होगा लेकिन प्रदेश फुटबॉल से जुड़े बहुत से पूर्व खिलाड़ी और अधिकारी इतने से संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि शराबखोरी और गुंडई के साथ एसोसिएशन चलाने के आरोप दीपक शर्मा पर पहले भी लगते रहे हैं
- जब तक अध्यक्ष कल्याण चौबे अपना घर (फुटबॉल हाउस) व्यवस्थित नहीं कर लेते है, दीपक शर्मा जैसे तमाम असामाजिक तत्वों को निकाल बाहर नहीं है, तब तक फुटबॉल में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती है
राजेंद्र सजवान
ऐसा कदापि नहीं है कि कल्याण चौबे के अध्यक्ष बनने के बाद से ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) में भ्रष्टाचार, व्यभिचार और लूट-खसोट बढ़ी है। ऐसा पहले भी होता था और आने वाले सालों में भी फेडरेशन की जड़ों में बैठी बीमारी भारतीय फुटबॉल खिलाड़ियों और खेल के चाहने वालों को हैरान परेशान करती रहेगी।
ताजा घटनाक्रम पर सरसरी नजर डाली जाए तो हिमाचल प्रदेश फुटबॉल एसोसिएशन के सर्वेसर्वा दीपक शर्मा को इसलिए तुरत-फुरत सजा सुनाई गई, क्योंकि ये श्रीमान जी भारत के खेल मंत्री के प्रदेश से हैं और लोकसभा चुनाव व राज्य में उप-चुनाव सर पर हैं। वर्ना एआईएफएफ शायद ही कभी अपने लाडले को कार्य समिति से बाहर का रास्ता दिखाती। पहले भी बहुत सी महिला खिलाड़ियों के साथ अलग-अलग खेलों में शर्मनाक हरकतें हुई लेकिन ना तो उनकी फेडरेशन और ना ही खेल मंत्रालय ने ऐसी मुस्तैदी दिखाई।
फिलहाल, खेल मंत्री अनुराग ठाकुर साधुवाद के पात्र हैं, हिमाचल के खिलाड़ियों का अपने नेता पर विश्वास मजबूत जरूर हुआ होगा। लेकिन प्रदेश फुटबॉल से जुड़े बहुत से पूर्व खिलाड़ी और अधिकारी इतने से संतुष्ट नहीं हैं। शराबखोरी और गुंडई के साथ एसोसिएशन चलाने के आरोप दीपक शर्मा पर पहले भी लगते रहे हैं। पिछले कई सालों की उनकी हरकतों का पूरा चिट्ठा सार्वजनिक करने की मांग लगातार बढ़ रही है।
कुछ नाराज लोग तो यहां तक कह रहे हैं फेडरेशन कार्यसमिति से निकालकर दीपक शर्मा को सस्ते में छोड़ दिया गया है। जहां तक अध्यक्ष कल्याण चौबे की बात है तो अपने पूर्व महासचिव शाजी प्रभाकरण को आरोप लगाकर बाहर का रास्ता दिखाने के बाद से उनकी समस्याएं लगातार बढ़ी हैं। रोज ही कोई नया विवाद मुंह उठा लेता है। हर विवाद उनकी परेशानी बढ़ा रहा है। एआईएफएफ के विवादों की बात करें तो दासमुंशी और प्रफुल पटेल पर भी जमकर आरोप लगे लेकिन अनुभवी अधिकारियों ने अनुशासनहीनता और व्यभिचार के मामलों को चतुराई से दबाया और क्लीन चिट्ट दे दी गई। कल्याण चौबे के पास अनुभव की कमी है लेकिन उनके पास अच्छे एवं सुलझे हुए अधिकारियों का नहीं होना भी समस्या खड़ी कर रहा है। अर्थात जब तक वे अपना घर (फुटबॉल हाउस) व्यवस्थित नहीं कर लेते है, दीपक शर्मा जैसे तमाम असामाजिक तत्वों को निकाल बाहर नहीं है, तब तक फुटबॉल में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती है।