क्योंकि बाकी खेल जीत का जश्न मनाना भूल गए हैं!
राजेंद्र सजवान
आरसीबी के आईपीएल खिताब जीतने का जश्न किस प्रकार शोक सभा में डूब गया देश के अधिकतर क्रिकेट और खेल प्रेमी जानते हैं। सरकारी आंकड़े में 11 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। चालीस के लगभग घायल हुए। आमतौर पर खेल मैदानों में मैचों के चलते दो गुटों झगड़े और स्टेडियम के ढहने के कारण बहुत सी मौत हुई है लेकिन किसी क्रिकेट टीम की विक्ट्री परेड में हुए हादसे का यह पहला बड़ा मामला है। हालांकि विजेता टीम प्रबंधन और बीसीसीआई ने अब तक कोई अधिकारिक बयान जारी नहीं किया है लेकिन यह घटनाक्रम बताता है कि देश में क्रिकेट का नशा किस प्रकार सिर चढ़ कर बोल रहा है लेकिन अन्य खेलों में आलम यह है कि स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में स्टेडियम खाली पड़े रहते हैं और जीत का जश्न सड़कों तक नहीं पहुंच पाता।
भारतीय ओलम्पिक खेलों पर सरसरी नजर डाले तो 1970-80 तक फुटबॉल देश का सबसे लोकप्रिय खेल था। राजधानी के डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम में खेले जाने वाले डूरंड और डीसीएम कप के मुकाबलों में हजारों फुटबॉल प्रेमी खेल का लुत्फ उठाते थे। इसी प्रकार का दृश्य कोलकाता, पंजाब और दक्षिण भारत के स्टेडियमों में भी देखने को मिलता था। मोहन बागान, ईस्ट बंगाल, मोहम्मडन स्पोर्टिंग, लीडर्स क्लब जालंधर, जेसीटी, गोरखा ब्रिगेड और दर्जन भर अन्य क्लबों के मुकाबलों को हजारों लोग देखते थे। इसी प्रकार हॉकी में भी दिल्ली, पंजाब और कुछ अन्य प्रदेशों के स्टेडियमों में हजारों की भीड़ जुटती थी। लेकिन आज किसी भी खेल में ऐसे दृश्य नजर नहीं आते हैं।
बेशक, क्रिकेट ने पिछले पचास सालों में बहुत तरक्की की है। इसी अनुपात में अन्य खेलों का ग्राफ तेजी से गिरा है। क्रिकेट लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ता हुआ शिखर तक पहुंचा है। दूसरी तरफ बाकी दिन पर दिन बर्बाद हुए हैं। सबसे बुरा हाल फुटबॉल का है। हाल ही में हांगकांग के विरुद्ध खेले गए मुकाबले में मेजबान टीम का स्टेडियम खचाखच भरा था। संभवतया भारतीय टीम की आधी हवा अत्याधुनिक स्टेडियम और चमकदार ड्रेस में मौजूद फुटबॉल प्रेमियों की उपस्थिति देखकर निकल गई होगी। देश के तमाम राज्यों की स्थानीय लीग में स्टेडियम सूने पड़े रहते हैं। संतोष ट्रॉफी, आईएसएल और आई लीग को देखने कोई नहीं आता। तो फिर भगदड़ या किसी दुर्घटना का सवाल ही पैदा नहीं होता।