- पिछले कुछ महीनों में भारतीय खेलों का जो लेखा-जोखा रहा है, उसे देखकर नहीं लगता है कि भारतीय खेल आका, खिलाड़ी, खेल संघ और ओलम्पिक संघ गंभीर व तैयार हैं
- आईओए में घमासान चल रहा है और सत्ता के भूखे एक-दूसरे को लतियाने में लगे हैं इसलिए खेल संघों के लोभी, लालची और खेल माफिया देश के खेलों पर भारी पड़ रहे हैं
- नाडा-वाडा के पिछले कुछ महीनों के आंकड़ों के अनुसार, एक के बाद एक भारतीय खिलाड़ी डोपिंग में धरे जा रहे हैं, और सबसे ज्यादा खिलाड़ी अपने महान देश के हैं
- कुश्ती में डेढ़ साल दंगा-फसाद और आरोप-प्रत्यारोप में निकल गया और इस कारण कुछ बड़े नाम वाले पहलवान अपना श्रेष्ठ गंवा चुके हैं, तो बाकी एशियाई स्तर पर नाकाम हो रहे हैं
- पुरुष हॉकी टीम के लक्षण हर ओलम्पिक से पहले जैसे दिखाई पड़ रहे हैं, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के हाथों पिटाई उनकी ओलम्पिक तैयारी की पोल खोल रही है
- बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी, वेटलिफ्टिंग, हॉकी और अन्य खेलों भी हालात बदतर नजर आ रहे हैं
राजेंद्र सजवान
पेरिस ओलम्पिक के लिए बस चंद सप्ताह बचे हैं और दुनिया भर के खिलाड़ी अपनी अंतिम तैयारियों में जुटे हैं। हर चार साल में आने वाले खेलों के महाकुम्भ की गरिमा और महत्व हर कोई समझता है। पता नहीं भारतीय खेल आका, खिलाड़ी, खेल संघ और ओलम्पिक संघ कितना इसके लिए तैयार है। लेकिन पिछले कुछ महीनों में भारतीय खेलों ने जो अपयश कमाया है, उसे देखकर नहीं लगता है कि हमारे खिलाड़ी-अधिकारी गंभीर हैं।
भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) में घमासान चल रहा है और सत्ता के भूखे एक-दूसरे को लतियाने में लगे हैं। खेल संघों के लोभी, लालची और खेल माफिया देश के खेलों पर भारी पड़ रहे हैं। लेकिन इतने सब के बावजूद सत्ता के खेल में जुटी सरकार कह रही है कि पेरिस में भारतीय खिलाड़ी रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन करेंगे। दावा तो यह भी किया गया है कि सरकार भारत को खेल महाशक्ति बनाने के लिए कटिबद्ध है और कुछ सालों में भारतीय खिलाड़ी पूरी दुनिया में छा जाएंगे।
अब जरा भारतीय खिलाड़ियों, खेल आकाओं और ऊंची उड़ान भरने वालों की असलियत को कुछ उदाहरणों से समझने की कोशिश करते हैं।
पिछले कुछ महीनों में नाडा (राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी)-वाडा (वर्ल्ड एंटी-डोपिंग एजेंसी) के आंकड़ों पर सरसरी नजर डालें तो पता चलता है कि एक के बाद एक भारतीय खिलाड़ी डोपिंग में धरे जा रहे हैं, जिनमें कई बड़े नाम भी शामिल बताए जाते हैं। डोप टेस्ट में फेल होने वाले सबसे ज्यादा खिलाड़ी अपने महान देश के हैं। इतना ही नहीं, ओलम्पिक से पहले की लगभग निर्णायक तैयारी में हमारे खिलाड़ी लगातार फेल हो रहे हैं। कुश्ती में डेढ़ साल दंगा-फसाद और आरोप-प्रत्यारोप में निकल गया। लिहाजा, इस कारण कुछ बड़े नाम वाले पहलवान अपना श्रेष्ठ गंवा चुके हैं, तो बाकी एशियाई स्तर पर नाकाम हो रहे हैं। मुक्केबाजी में भी यह सब चल रहा है।
जहां तक देश के सबसे लोकप्रिय ओलम्पिक खेल की बात है तो हॉकी में महिला टीम नाकाम घोषित हो चुकी है और पुरुष टीम के लक्षण हर ओलम्पिक से पहले जैसे दिखाई पड़ रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के हाथों पिटाई उनकी ओलम्पिक तैयारी की पोल खोल रही है। हमारे सर्वकालीन श्रेष्ठ एथलीट नीरज चोपड़ा अपने भाले को 90 मीटर पार फेंकने का टारगेट बनाए हैं, जबकि उनके दो-तीन प्रतिद्वंद्वी 90 का आंकड़ा छू चुके हैं। खैर, नीरज कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी, वेटलिफ्टिंग, हॉकी और अन्य खेलों भी हालात बद से बदतर नजर आ रहे हैं।