बाहरी और विदेशी फुटबॉलर दिल्ली प्रीमियर लीग विजेता वाटिका एफसी और महिला प्रीमियर लीग चैम्पियन हॉप्स एफसी तथा दोनों वर्गों की उप-विजेता गढ़वाल एफसी की कामयाबी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं
लेकिन कुछ क्लबों और बाहर खिलाड़ियों पर उंगली उठ रही है और उन पर सट्टेबाजी और मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं
फुटबॉल दिल्ली को भी इस बारे में शिकायतें मिली हैं जिन पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है
क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
दिल्ली की फुटबॉल में बाहरी खिलाड़ियों की तादाद लगातार बढ़ रही है, जिनमें न सिर्फ अन्य राज्यों के खिलाड़ी भाग ले रहे हैं अपितु विदेशी खिलाड़ी भी लगभग सभी क्लबों में देखे जा सकते हैं। बेशक, यह स्थानीय फुटबॉल के लिए शुभ लक्षण है और निसंदेह दिल्ली की फुटबॉल में सराहनीय बदलाव भी देखने को मिल रहा है। पिछले चार-पांच सालों में ज्यादातर क्लब बाहरी खिलाड़ियों को अपनी टीम का हिस्सा बनाने में सफल रहे हैं, जिनमें महिला क्लब भी शामिल हैं। लेकिन बाहरी खिलाड़ियों की घुसपैठ को शक की नजर से देखने वाले भी बढ़ रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि कुछ मैच फिक्स हैं और बाहरी एवम् विदेशी खिलाड़ी सट्टेबाजों के संपर्क में हैं।
कुछ सप्ताह पूर्व खेली गई पहली दिल्ली प्रीमियर लीग का खिताब जीतने वाली वाटिका एफसी में अधिकांश खिलाड़ी दिल्ली और आस- पास के प्रदेशों से हैं लेकिन महिला प्रीमियर लीग की विजेता हॉप्स एफसी की अधिकांश खिलाडी हरियाणा से हैं, जिनमें से कुछ एक भारतीय राष्ट्रीय टीम का हिस्सा भी हैं।
गढ़वाल एफसी पुरुष और महिला दोनों ही वर्गों की उप-विजेता है, जिसको इस मुकाम तक पहुंचाने में सिक्किम, मिजोरम, उत्तराखंड, बंगाल, असम, हरियाणा, यूपी आदि प्रदेशों के फुटबॉलरों का बड़ा योगदान रहा है। शीर्ष टीमों में शामिल दिल्ली एफसी, सुदेवा एफसी, रॉयल रेंजर्स, रेंजर्स, फ्रेंड्स यूनाइटेड, हिंदुस्तान एफसी, उत्तराखंड और सीनियर डिवीजन के क्लबों के ज्यादातर खिलाड़ी दिल्ली से बाहर के हैं।
क्यों रहस्य बने बंगाल के खिलाड़ी…
सिटी एफसी, अहबाब, शास्त्री, यंग मैन आदि के पुरुष एवं महिला खिलाड़ी ज्यादातर पश्चिम बंगाल और नार्थ ईस्ट के प्रदेशों से हैं, जो कि मीलों का सफर तय करके देश की राजधानी में खेलने आते हैं। हालांकि बंगाल के खिलाड़ियों से बने सजे क्लब पुरुष वर्ग में बड़ी सफलता अर्जित नहीं कर पाए हैं लेकिन महिला लीग में अहबाब एफसी ने खिताब जीत कर नार्थ ईस्ट की खिलाड़ियों की श्रेष्ठता के दर्शन कराए हैं।
फुटबॉल जानकारों की मानें तो बंगाल के खिलाड़ी दिल्ली लीग में इसलिए कम सफल हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर ‘खेप’ से जुड़े हैं, जो कि छोटे मैदानों के एकदिनी इनामी आयोजनों में भाग लेते हैं और ठीक-ठाक पैसा कमा लेते हैं। लेकिन कुछ क्लबों और खिलाड़ियों पर उंगली उठ रही है।
उन पर सट्टेबाजी और मिलीभगत के आरोप लग रहे हैं। बाकायदा स्थानीय इकाई को भी इस बारे में शिकायतें मिली हैं जिन पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। खासकर, बंगाल के खिलाड़ियों से बनी टीमें निशाने पर हैं।
अफ्रीकी खिलाड़ियों की बहुतायत के मायने-
कुछ क्लब अधिकारियों के अनुसार, खेप फुटबाल में सबसे ज्यादा पैसा अफ्रीकी खिलाड़ी कमा रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर नाईजीरिया से हैं। इनमें से अनेक खिलाड़ी दिल्ली के क्लबों की जीत में भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। आम बांग्ला एवं अन्य खिलाड़ियों की तुलना में अफ्रीकी खिलाड़ी इसलिए ज्यादा असरदार हैं क्योंकि वे दमखम और कदकाठी के मामले में स्थानीय खिलाड़ियों पर भारी पड़ते हैं। दिल्ली एफसी, वाटिका, रॉयल रेंजर्स, गढ़वाल और कई अन्य क्लबों के अफ्रीकी खिलाड़ी अपनी टीमों के स्टार आंके जाते हैं। लेकिन कुछ एक पर शक की सुई लटकी है।
बेशक, बाहरी खिलाड़ियों की भागीदारी से दिल्ली की फुटबॉल को बड़ी पहचान मिली है और देश की फुटबॉल में दिल्ली का कद ऊंचा हुआ है। लेकिन तारीफ के काबिल वे क्लब अधिकारी हैं जो कि बाहरी खिलाड़ियों को अपने दम पर दिल्ली के खेल मैदानों पर उतार रहे हैं। लेकिन यदि उनकी मंशा कुछ और है तो तेज रफ्तार दौड़ती दिल्ली की फुटबॉल धड़ाम से गिर भी सकती है।