क्यों पैरा खिलाड़ी हैं हमारे असली हीरो!

  • पेरिस ओलम्पिक में दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाले देश की बुरी फजीहत हुई थी क्योंकि एक भी भारतीय खिलाड़ी स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया लेकिन नीरज चोपड़ा के रजत और कांस्य पदकों ने थोड़ा बहुत लाज बचा ली
  • पैरा खिलाड़ी अवनि लेखरा ने 10 मीटर एयर राइफल में और नितेश कुमार ने पुरुष एकल बैडमिंटन में गोल्ड जीतकर पैरा खेलों की प्रतिष्ठा को सातवें आसमान तक पहुंचा दिया है और अब तक भारत पेरिस पैरालंपिक में 13 पदक जीत चुके हैं
  • वहीं, पेरिस ओलम्पिक से पहले सरकार, उसके खेल मंत्रालय, खेल प्राधिकरण और खेल महासंघ एवं खिलाड़ियों ने बड़े-बड़े दावे किए थे लेकिन पदक तालिका ने सिर्फ तमाम हवा बाजों की हवा निकाल दी

राजेंद्र सजवान

कुछ दिन पहले की बात है पेरिस ओलम्पिक में दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाले देश की बुरी फजीहत हुई थी। एक भी भारतीय खिलाड़ी स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया लेकिन नीरज चोपड़ा के रजत और कांस्य पदकों ने थोड़ा बहुत लाज बचा ली। सरकार, उसके खेल मंत्रालय, खेल प्राधिकरण और खेल महासंघ एवं खिलाड़ियों ने बड़े-बड़े दावे किए थे लेकिन पेरिस खेलों की पदक तालिका ने ना सिर्फ तमाम हवा बाजों को सन्न कर दिया। अपितु उन्हें यह भी सिखाया कि सिर्फ बड़बोलेपन से पदक नहीं जीते जाते।

 

  कुछ जिम्मेदार लोगों ने गैर-जिम्मेदाराना बयान दिए और डींगें हांकते हुए कहा कि भारत इस बार सबसे बड़ा दल भेज रहा है और 10 से 15 पदक तय है। पदक तालिका में बेहतर स्थान पाने की भी हुंकार भरी गई। कहां रहे बताने की जरूरत नहीं है। दूसरी तरफ पैरालंपिक में भाग लेने जा रहे खिलाड़ी, कोच, दल के वरिष्ठ पदाधिकारी बार-बार यही कहते रहे कि पहले से बेहतर करेंगे और खिलाड़ियों ने अपने श्रेष्ठ दिया तो 15 से 20 पदक पक्के हैं। देवेंद्र झांझरिया और दीपा मलिक जैसे चैम्पियन और शीर्ष पदाधिकारियों ने अपने पैरा खिलाड़ियों पर विश्वास व्यक्त किया लेकिन अत्याधिक आत्मविश्वास और घमंड को हावी नहीं होने दिया।

   इस लेख के लिखे जाने तक भारत के पैरा खिलाड़ी 13 पदक जीत चुके हैं और पदक लगातार बरस रहे हैं। अवनि लेखरा ने 10 मीटर एयर राइफल में और नितेश कुमार ने पुरुष एकल बैडमिंटन में गोल्ड जीतकर पैरा खेलों की प्रतिष्ठा को सातवें स्थान तक पहुंचा दिया है। भले ही पैरालंपिक को सामान्य खिलाड़ियों के खेलों की तरह पहचान नहीं मिल पाती लेकिन आज हमारे हीरो, हमारे चैंपियन और खिलाड़ियों के आदर्श अवनि व नितेश हैं। दिव्यांगता के बावजूद उन्होंने अपना दमखम और कौशल दिखाकर देश को गौरवान्वित किया है। उन्हें भले ही कमतर आंका जाता है, मीडिया ज्यादा ध्यान नहीं देता और उनके लिए सरकारों के पास प्रोत्साहन देने के कमतर अवसर हैं लेकिन अब वक्त आ गया है कि उन्हें भरपूर सुविधाएं दी जाएं और उनके हुनर को निखारने के लिए बहुत नीचे के स्तर से प्रयास किए जाएं।

   पैरा खिलाड़ियों में ज्यादातर ऐसे हैं, जो कि हादसों के शिकार हुए, गंभीर बीमारी के कारण शारीरिक विकलांगता से जूझना पड़ा लेकिन आज वे बढ़-चढ़कर देश का गौरव बढ़ा रहे हैं। तारीफ की बात यह है कि वे आम खिलाड़ियों की तरह बहानेबाजी से कोसों दूर हैं। बेशक, पदक जीतने वाले और असफल रहने वाले सभी हमारे हीरो हैं।

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