- आज यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों ने स्किल, स्टेमिना और स्ट्रेंथ के मामले में भारतीय खिलाड़ियों को बहुत पीछे छोड़ दिया है
- सच्चाई यह है कि भारतीय खिलाड़ी शेष विश्व के साथ नहीं चल पा रहे हैं
- उनका दमखम बांग्लादेश, नेपाल, अफगानिस्तान, म्यांमार जैसी कमजोर टीमों के सामने जवाब दे जाता है
- कुछ पूर्व खिलाड़ियों को लगता है कि भारतीय फुटबॉल यदि इसी रफ्तार से उल्टी चाल चलती रही तो अगले 50-60 सालों में भी एशियाड नहीं जीत पाएंगे और इतने ही साल विश्व कप खेलने में लग सकते हैं
- फुटबॉल फेडरेशन के पूर्व अध्यक्षों जियाउद्दीन और प्रियरंजन दास मुंशी के कार्यकाल में भले ही ज्यादा आगे नहीं बढ़े लेकिन प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल के चलते हुए पतन का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा
- देश के पूर्व खिलाड़ियों और फुटबॉल जानकारों को नहीं लगता है कि 21वीं सदी में भारत विश्व कप खेल पाएगा हां, कोई चमत्कार हुआ या फीफा को दया आ गई तो 150 करोड़ की आबादी वाले देश को भीख में वर्ल्ड कप आयोजन मिल सकता है
राजेंद्र सजवान
भारतीय फुटबॉल आज कहां खड़ी है, किसी से छिपा नहीं है। हालांकि साल दर साल, दशक दर दशक भारतीय फुटबॉल के कर्णधार सुधार का दम भरते हैं और वर्ल्ड कप खेलने की मंशा जाहिर करते हैं लेकिन पिछले कई सालों से हमारी फुटबॉल उल्टी चाल चलती नजर आ रही है। 50-60 के दशक में हम एशिया और कुछ हद तक विश्व फुटबॉल में ताकत बन कर उभरे थे। सौ सालों में हमारी खिलाड़ियों ने प्रगति की रफ्तार पकड़ ली थी लेकिन दो दशक बाद गिरावट का जो दौर शुरू हुआ थमने का नाम नहीं ले रहा है।
कुछ माह पहले हम वर्ल्ड कप क्वालीफायर में उतरे और नाकाम रहे। हालांकि रैफरियों पर आरोप लगाए गए लेकिन सच्चाई यह है कि हमारे खिलाड़ियों में विश्व स्तर पर कुछ कर दिखाने का माद्दा नहीं है। आज की फुटबॉल काफी बदल गई है और यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के देशों ने स्किल, स्टेमिना और स्ट्रेंथ के मामले में भारतीय खिलाड़ियों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सच्चाई यह है कि भारतीय खिलाड़ी शेष विश्व के साथ नहीं चल पा रहे हैं। उनका दमखम बांग्लादेश, नेपाल, अफगानिस्तान, म्यांमार जैसी कमजोर टीमों के सामने जवाब दे जाता है।
कुछ पूर्व खिलाड़ियों को लगता है कि भारतीय फुटबॉल यदि इस रफ्तार से उल्टी चाल चलती रही तो अगले 50-60 सालों में भी एशियाड नहीं जीत पाएंगे और इतने ही साल विश्व कप खेलने में लग सकते हैं। फुटबॉल फेडरेशन के पूर्व अध्यक्षों जियाउद्दीन और प्रियरंजन दास मुंशी के कार्यकाल में भले ही ज्यादा आगे नहीं बढ़े लेकिन प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल के चलते हुए पतन का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। देश के पूर्व खिलाड़ी और फुटबॉल जानकार तो पूरी तरह निराशा और हताशा से भरे हैं। उन्हें नहीं लगता है कि 21वीं सदी में भारत विश्व कप खेल पाएगा। हां, कोई चमत्कार हुआ या फीफा को दया आ गई तो 150 करोड़ की आबादी वाले देश को भीख में वर्ल्ड कप आयोजन मिल सकता है। बुरा जरूर लगता है लेकिन भारतीय फुटबॉल की हालत इतनी दयनीय हो चुकी है कि आम फुटबॉल प्रेमी ने आईएसएल, आई लीग, संतोष ट्रॉफी और अन्य अंतरराष्ट्रीय आयोजनों से नाता तोड़ लिया है। नतीजन स्टेडियम सूने पड़े हैं। क्योंकि कोई भी ऐरा गैरा हमें पीट जाता है इसलिए फुटबाल प्रेमियों ने यूरोप, लेटिन अमेरिका और सऊदी लीग की तरफ रुख कर लिया है।