क्रिकेट राष्ट्र हैं, खेल राष्ट्र नहीं बन सकते!
राजेंद्र सजवान
भले ही देश की सरकार खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण और तमाम सरकारी एवं गैर-सरकारी खेल संस्थाएं झूठ बोलकर और फर्जी आंकड़े पेश कर भारतीय खेलों की तरक्की प्रगति की वाह-वाह लूटें-लुटाएं लेकिन ओलम्पिक खेलों पर सरसरी नजर डालने पर पता चलता है कि 2028 के ओलम्पिक खेलों के लिए हमारी तैयारियां सिर्फ कागजों में चल रही हैं। पूर्व खिलाड़ी, खेल जानकार और विशेषज्ञों की रिपोर्ट देखें तो अगले ओलम्पिक में हालात पेरिस ओलम्पिक से भी बदतर हो सकते हैं। यही कारण है कि ओलम्पिक मेजबानी का दावा करने वाले देश के खेल आकाओं की बयानबाजी पर कोई भी भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है। सवाल यह पैदा होता है कि एक तरफ तो हम देश को खेल राष्ट्र बनाने का दम भर रहे हैं तो दूसरी तरफ आलम यह हैं कि आम अभिभावक अपने बेटे-बेटियों को खेल मैदानों से दूर ही रखना पसंद करते हैं। उनका मकसद अपनी भावी पीढ़ी को उच्च शिक्षा दिलाना और आत्मनिर्भर बनाने का है। यही कारण है कि आज के दौर में ‘पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होंगे खराब’ वाली कहावत ने रफ्तार पकड़ ली है।
देश के युवा जान गए हैं कि एक तो पढ़ाई का बोझ ऊपर से तमाम खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार, व्यविचार और धांधली के चलते खेल को करियर बनाना आसान नहीं है। यही कारण है कि यदि खेला जा रहा तो एकमात्र क्रिकेट। एक सर्वे से पता चला है कि देश भर के स्कूल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं में से मात्र आठ से दस फीसदी खेलों में रुचि रखते हैं। उनमें से सत्तर फीसदी क्रिकेट अपना लेते हैं, बाकी के तीस फीसदी हॉकी, फुटबाल, बैडमिंटन, कबड्डी, खो-खो, तैराकी, एथलेटिक, जिम्नास्टिक, वेटलिफ्टिंग वॉलीबॉल, बास्केटबॉल, तीरंदाजी आदि खेलों में बंट जाते हैं। तारीफ की बात यह है कि पिछले कुछ सालों से महिला क्रिकेट भी बाकी खेलों से आगे निकल गई है।
बेशक, देश की सरकारें खेल को करियर के रूप में लेने का आह्वान कर रही हैं लेकिन अपना देश खेल राष्ट्र नहीं, क्रिकेट राष्ट्र बन चुका है। यूं भी कह सकते हैं कि देश क्रिकेट के शिकंजे में फंस गया है। यह सही है कि क्रिकेट ने अपने दम पर जगह बनाई है और बाकी खेल लूट-खसोट और नाकारा अधिकारियों के चंगुल में फंस कर बर्बाद हुए हैं। देखने में आया है कि 51 लाख की आबादी वाले देश विभिन्न खेलों में विश्व और ओलम्पिक रिकॉर्ड बना रहे हैं, चैंपियन बन रहे हैं लेकिन 151 करोड़ की आबादी वाले देश के पास एक भी ओलम्पिक चैंपियन नहीं है। हालांकि बहुत कम लड़कियां खेलों को अपना रही हैं लेकिन कुछ एक खेलों को छोड़ बाकी में महिला खिलाड़ियों की संख्या बहुत कम है।