खेल मंत्रालय का कैसा खेल, तारीख पर तारीख या कोई साजिश!

खेल मंत्रालय से बुलावा आता है, पहलवान दौड़े-दौड़े जाते हैं लेकिन आश्वासन के साथ खाली हाथ लौट आते हैं

पहलवानों के धरना-प्रदर्शन के तीन दिन बीत जाने के बाद भी हल नहीं निकल पाया है

ऐसा लग रहा है कि पहलवानों के साथ जैसे कोई लुका-छिपी का खेल चल रहा हो

देश का मीडिया भी पहलवानों की तरह डटा हुआ है, जिसे बस ‘एक्सक्लूसिव’ खबर चाहिए

राजेंद्र सजवान

राजधानी दिल्ली के विख्यात प्रदर्शन स्थल जंतर-मंतर पर डटे नामी-गिरामी पहलवानों का आंदोलन किस दिशा में जा रहा है, यह उनके धरना-प्रदर्शन के तीन दिन बीत जाने के बाद भी तय नहीं हो पाया है। खेल मंत्रालय से बुलावा आता है, पहलवान दौड़े-दौड़े जाते हैं और आश्वासन के साथ खाली हाथ लौट आते हैं। कहीं से कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पा रहा। लगता है जैसे कोई लुका-छिपी का खेल चल रहा हो।

 

  बेशक, कुश्ती फेडरेशन अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह के विरुद्ध आवाजें थमी नहीं है। बस एक यही ‘प्लस प्वाइंट’ है कि देश का मीडिया भी पहलवानों की तरह डटा हुआ है। नीली, पीली, सफेद और केसरिया पगड़ी वाले कैमरों के सामने अपना कुश्ती ज्ञान बांट रहे हैं फिर चाहे उन्हें कुश्ती का क,ख,ग भी नहीं आता हो। हर कोई सुर्खियां चुरा रहा है। कहीं ना कहीं छोटे-बड़े चैनल उन्हें मुंह लगा रहे हैं। उनकी भी मजबूरी है। उनके मुखियाओं ने ‘एक्सक्लूसिव’ लाने का फरमान जारी किया  है। तीन दिन बीत जाने के बाद भी यदि कुछ निकल कर आया है तो वह यह है कि तारीख पर तारीख बदल रही है और देश के धुरंधर पहलवान जहां खड़े थे वहां से आगे नहीं बढ़ पाए हैं। इसलिए, क्योंकि इच्छा शक्ति की कमी है।

   यदि ऐसा नहीं है तो भला सरकार से कौन बच सकता है। सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती। उसके दांव पर बड़े-बड़े चित हो जाते हैं लेकिन फेडरेशन अध्यक्ष खेल मंत्रालय के साथ जैसे पहलवानी कर रहे हैं। कभी-कभी तो लगता है जैसे ‘नूरा कुश्ती’ चल रही है और देश का सम्मान बढ़ाने वाले और ढेरों पदक जीतने वाले पहलवानों को आत्मघाती दांव खेलने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

  

आम पहलवानों और मीडिया कर्मियों को यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर खेल मंत्रालय और कुश्ती फेडरेशन के बीच तालमेल क्यों नहीं बैठ पा रहा? क्यों पहलवानों को भगा-भगा कर मारा जा रहा है? यह खबर भी है कि भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) को अंपायर बनाया जा रहा है। लेकिन किसलिए? आईओए को यह अधिकार कहां से मिल गया?  और भी कई तरह के बेतुके सवाल पूछे जा रहे हैं और प्रयोग भी किए जा रहे हैं। कुल मिला कर धूल में लट्ठ चल रहे हैं और बेचारे पहलवान न्याय की प्रतीक्षा में अपना मूल्यवान समय बर्बाद कर रहे हैं। चूंकि वे आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुके हैं इसलिए अपनी एकजुटता को बनाए रख पा रहे हैं।

   हालांकि देश के नामी पहलवान अध्यक्ष के विरुद्ध खड़े हैं और हर हाल में अध्यक्ष महोदय का इस्तीफा चाहते हैं लेकिन यह भी खबर है कि उन्हें भटकाने की साजिश भी रची जा रही है। यदि सचमुच ऐसा है तो भारतीय खेल जगत के सबसे बड़े आंदोलन पर बुरा असर पड़ सकता है। कोई भी पीछे हटा तो कसूरवार अपने मकसद में कामयाब हो सकते हैं, जो कि भारतीय कुश्ती और तमाम खेलों के लिए अशुभ संकेत हो सकता है।

  

यह भी सच है कि पहलवानों के इस अनोखे आंदोलन को फेल करने के लिए कुछ टीमें भी लगातार काम कर रही हैं। हालांकि फिलहाल अवसरवादी अपनी साजिश में विफल रहे है लेकिन कब तक? आखिर कब तक, हमारे चैम्पियन पहलवान कड़ाके की ठंड में टीवी कैमरों की छत्र-छाया में सुरक्षित रह पाएंगे। डर इस बात का भी है कि गंदी और दलगत राजनीति इस आंदोलन की हवा न निकाल दे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *