- सोशल मीडिया के कुछ जोकरों द्वारा यह हवा उड़ाई जा रही है कि आईओए अध्यक्ष पीटी उषा जल्दी ही खेल मंत्री बन सकती हैं
- उषा भारतीय एथलेटिक्स इतिहास की महानतम एथलीट रही हैं लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वह काबिल खेल अधिकारी, मंत्री या खेल मंत्री भी साबित हों
- क्योंकि उषा को भारतीय ओलम्पिक संघ के घमासान का दोषी करार दिया जा रहा है और उसे खेल मंत्री बनाया जाना कहां तक ठीक रहेगा, यह सवाल खड़ा होता है
राजेंद्र सजवान
सोशल मीडिया के कुछ जोकरों द्वारा यह हवा उड़ाई जा रही है कि आईओए अध्यक्ष पीटी उषा जल्दी ही खेल मंत्रालय का कार्यभार संभाल सकती हैं। बेशक, यह अफवाह हैरान करने वाली है, क्योंकि उषा जिस पद पर है उसकी गरिमा की रक्षा नहीं कर पा रही हैं। तो फिर कैसे मान लें कि वह कभी खेलमंत्री बनने का सपना भी देख सकती हैं?
“लेकिन इस देश में कुछ भी हो सकता है। जब 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स के घोषित, अघोषित भ्रष्ट भारतीय ओलम्पिक संघ और खेल महासंघों के लाडले बन सकते हैं, जेल की सजा काटने वाले देश के खेलों के भाग्य विधाता बने रह सकते हैं तो फिर पीटी उषा खेल मंत्री क्यों नहीं बन सकती?” एक पूर्व ओलम्पियन का यह सवाल मायने रखता है। यह भी कहा जा रहा है ‘मजाक अच्छा है दिल बहलाने के लिए’
इसमें कोई दो राय नहीं है कि उषा भारतीय एथलेटिक्स इतिहास की महानतम एथलीट रही हैं। यह जरूरी नहीं है कि वह काबिल खेल अधिकारी, मंत्री या खेल मंत्री भी साबित हों। जिस उषा को भारतीय ओलम्पिक संघ के घमासान का दोषी करार दिया जा रहा है उसे खेल मंत्री बनाया जाना कहां तक ठीक रहेगा, यह सवाल पक्ष-विपक्ष द्वारा पूछा जा सकता है। लेकिन फिलहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि आईओए का कायाकल्प कब और कैसे होगा?
देश के कुछ गतिहीन ओलम्पियन और पूर्व खिलाड़ी भारतीय खेलों की शीर्ष संस्था का तमाशा वर्षों से देख रहे हैं। पूर्व चैम्पियनों के अनुसार, आईओए के घोषित भ्रष्ट पदाधिकारी आज भी देश के खेलों के माई-बाप बने हुए हैं। अपराध साबित होने के बाद भी वे भारतीय खेलों के मसीहा कैसे बने हैं, यह बात समझ से परे है। जो लोग यह शोर मचा रहे हैं कि भारत को 2032 के युवा ओलम्पिक और 2036 के ओलम्पिक खेलों की मेजबानी मिल सकती है, उन्हें यह भी जान लेना चाहिए कि आईओए के दुराचरण के चलते खेल जगत में भारत की छवि बेहद खराब हो गई है। आलम यह है कि ज्यादातर खेल महासंघ संविधान विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। ऐसे में ओलम्पिक आयोजन की संभावना महज शिगूफा है और देश को भ्रमित किया जा रहा है।
देश के खेल जानकार, खेल प्रशासक, पूर्व चैम्पियन और खेल की गहरी समझ रखने वालों को नहीं लगता है कि ताजा विवाद का कोई स्वीकार्य हल निकल पाएगा। यह भी अंदेशा है कि कहीं अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी भारतीय इकाई पर लंबा प्रतिबंध लगा सकती है। ऐसे में सरकार खुद आगे बढ़कर गंभीर कदम उठाए तो भारतीय खेलों का मान-सम्मान बच सकता है।