- इस खेल को खेल मंत्रालय और आईओए से मान्यता प्राप्त नहीं है लेकिन देश में आयोजित हो रहे ‘खो-खो वर्ल्ड कप’ की धूम पूरे भारत में मची है
- इंदिरा गांधी स्टेडियम में होने वाले वर्ल्ड कप में तमाम बड़े-छोटे देश भाग लेने के लिए राजधानी दिल्ली में आ रहे हैं
- इस खो-खो फेडरेशन की बागडोर सुधांशु मित्तल के सधे हुए हाथ में आने के बाद से खो-खो का रंग-ढंग और कद बदल गया है
- उनकी वजह से खेल मंत्रालय, आईओए और संभवतया आम और खास, मंत्री, सांसद से लेकर प्रधानमंत्री ने भी खो-खो को गंभीरता से लिया है
- जो खो-खो कल तक पाई-पाई के लिए तरसता था आज करोड़ों में खेल रहा है, जिसमें फेडरेशन महासचिव एमएस त्यागी की भूमिका भी सराहनीय मानी जा रही है
राजेंद्र सजवान
हालांकि खो-खो फेडरेशन को खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) से मान्यता प्राप्त नहीं है लेकिन देश में आयोजित हो रहे ‘खो-खो वर्ल्ड कप’ की धूम देश भर में मची है। सच तो यह है कि दो साल पहले तक इस विशुद्ध भारतीय खेल की बड़ी हैसियत नहीं थी। हां, इतना जरूर है कि इस खेल को ग्रामीण भारतीय खेल के रूप में जाना पहचाना जाता रहा। तारीफ की बात यह है कि यह खेल सालों से भारतीय उपमहाद्वीप में खेला जाता रहा है, लेकिन इसे एशियाड और ओलम्पिक में शामिल किए जाने के प्रयास शायद ही कभी हुए हों। तो फिर खो-खो दुनिया भर में कैसे जाना पहचाना जाने लगा है? कैसे इस खेल का कद इतना बड़ा हो गया है कि राजधानी के इंदिरा गांधी स्टेडियम में होने वाले वर्ल्ड कप में तमाम बड़े-छोटे देश भाग लेने आ रहे हैं?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि क्रिकेट भारत का सबसे लोकप्रिय खेल है और हर बालक व बालिका की पहली पसंद क्रिकेट बन गया है। बाकी खेलों का नंबर बहुत बाद में आता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में खो-खो ने अंडरग्राउंड वर्क किया और अब यकायक बड़े उछाल के साथ क्रिकेट के बाद की कतार में आ खड़ा हुआ है। हाल फिलहाल इस खेल की मार्केटिंग भी क्रिकेट जैसी नजर आती है। इस खेल ने फुटबॉल, हॉकी, टेनिस, बैडमिंटन और कबड्डी को भी बहुत पीछे धकेल दिया है। खो-खो वर्ल्ड कप के पोस्टर, चर्चे और किस्से कहानियां गवाह हैं कि कैसे एक विशुद्ध भारतीय खेल अन्य भारतीय खेलों को हैरान कर रहा है।
लेकिन ऐसा कैसे हो गया? इसलिए क्योंकि इस खेल की बागडोर सुधांशु मित्तल के सधे हुए हाथ में है। बेशक, उनके अध्यक्ष बनने के बाद से खेल का रंग-ढंग और कद बदल गया है। खेल मंत्रालय, आईओए और संभवतया आम और खास, मंत्री, सांसद से लेकर प्रधानमंत्री ने भी खो-खो को गंभीरता से लिया है। जो खेल कल तक पाई-पाई के लिए तरसता था आज करोड़ों में खेल रहा है। इस खेल में फेडरेशन महासचिव एमएस त्यागी की भूमिका भी सराहनीय मानी जा रही है। लेकिन कब तक? कब तक खो-खो का जलवा बरकरार रह पाएगा?