राजेंद्र सजवान
पेरिस रवाना होने से पहले तक भारतीय हॉकी टीम के सीनियर खिलाड़ी, कप्तान और हॉकी इंडिया के शीर्ष अधिकारी हुंकार भर रहे थे कि भारत टोक्यो में जीते पदक का रंग बदलने जा रहा है। कप्तान और कुछ पूर्व खिलाड़ी गोल्ड से कम की बात नहीं कर रहे थे लेकिन न्यूजीलैंड और अर्जेंटीना के खिलाफ जैसा प्रदर्शन देखने को मिला उसे लेकर भारतीय हॉकी प्रेमियों की चिंता बढ़ गई है। कुछ एक आलोचक और समालोचक तो यहां तक कहने लगे हैं कि पेरिस ओलम्पिक खेलने गई टीम में दम नहीं है। हालांकि फिलहाल भारत को अपने पूल बी की सबसे कमजोर टीमों के खिलाफ शुरुआत मिली लेकिन न्यूजीलैंड और अर्जेंटीना के विरुद्ध खेले गए मैचों में कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने लाज बचाने वाले गोल दागे।
भले ही कप्तान ने क्रमश: पेनल्टी स्ट्रोक और पेनल्टी कॉर्नर पर अंतिम मिनट में गोल किए लेकिन कप्तान ने अर्जेंटीना के खिलाफ दस में से मात्र एक पेनल्टी कॉर्नर पर गोल जमाकर दिखा दिया है कि अब भारतीय हॉकी में पेनल्टी कॉर्नर पर गोल करने वाले कलाकार नहीं रहे। सिर्फ पेनल्टी कॉर्नर ही नहीं, रक्षा पंक्ति और मध्य पंक्ति का लचर प्रदर्शन प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों को बार-बार घुसपैठ का मौका दे रहा है। फॉरवर्ड लाइन का हाल यह है कि गोल निकल नहीं पा रहे हैं और गलत पास तो जैसे सबसे बड़ी बीमारी है। नतीजन अनुभवी गोलकीपर श्रीजेश पर दबाव बढ़ रहा है। ऐसे में टोक्यो में जीता कांस्य पदक बरकरार रख पाना भी मुश्किल लग रहा है। हरमनप्रीत, मनप्रीत और हार्दिक का लचर प्रदर्शन चिंता का विषय है और सुनने में आया है कि टीम प्रबंधन, कोच और कप्तान अब अपने ग्रुप में जैसे-तैसे तीसरा स्थान पाने का टारगेट लेकर चल निकले हैं ताकि दूसरे ग्रुप की मजबूत टीमों हॉलैंड और जर्मनी से बचा जा सके।
भारत के लिए बड़ी चुनौती ऑस्ट्रेलिया और बेल्जियम से निपटने की है। ऐसा नहीं है कि भारतीय खिलाड़ी वापसी नहीं कर सकते। सालों की ट्रेनिंग के बाद उन्होंने दबाव को काटना जरूर सीखा होगा। लेकिन सबसे पहले अपनी कमजोरियों पर ध्यान देने की जरूरत है। सिर्फ ख्याली पुलाव और ऊंचे करने से ओलम्पिक पदक नहीं जीता जा सकता है। उम्मीद है कि हमारे खिलाड़ी बुरे वक्त से उबर कर शानदार वापसी करेंगे। और हां, कप्तान होने का मतलब यह नहीं कि पेनल्टी कॉर्नर मारने हर बार आप ही जाएंगे। कुछ बदलाव किया जा सकता है।