दिल्ली फुटबाल लीग के चैम्पियन दिल्ली एफसी को बड़ी निराशा हाथ लगी है, जब उसकी पुरुष व महिला दोनों टीमें कड़े संघर्ष के बाद को फाइनल में हार गईं
लगातार तीसरी बड़ी हार झेलने वाली दिल्ली एफसी द्वारा पुरस्कार वितरण समारोह का बायकॉट
संवाददाता
फुटबाल दिल्ली फुटसाल लीग फाइनल में दिल्ली फुटबॉल लीग के चैम्पियन दिल्ली एफसी को बड़ी निराशा हाथ लगी है। नोएडा स्टेडियम में खेले गए फाइनल में भले ही दिल्ली एफसी की पुरुष और महिला टीमों ने फाइनल में प्रवेश किया लेकिन दोनों ही फाइनल्स में उसे हार का सामना करना पड़ा।
दो दिन पहले इसी टीम को दिल्ली प्रीमियर फुटबॉल लीग के निर्णायक मुकाबले में सुदेवा के युवा खिलाड़ियों ने तीन गोलों से परास्त किया था। ज़ाहिर है दिल्ली एफसी के दिन खराब चल रहे हैं।
फुटसाल के पुरुष वर्ग में गोल हंटरज़ एफसी और महिलाओं में सिग्नेचर एफसी की टीमों ने क्रमशः दिल्ली एफसी को टाई-ब्रेकर में परास्त किया। निर्धारित समय तक दोनों वर्गों के फाइनल्स मुकाबले 2-2 की बराबरी पर रहे| गोल हंटरज़ ने टाई ब्रेकर में 6-4 से और सिग्नेचर ने 5-4 से खिताब मैच जीता|
पुरुषों के फाइनल में गोल हंटरज़ ने डीएफसी पर अंत तक दबाव बनाए रखा और प्रतिद्वंद्वी टीम के अभय गुरंग और फहाद तैमूरी के गोलों का जवाब अंश गुप्ता और अभिराज विक्रम सिंह के गोलों से देकर मैच को टाई-ब्रेकर तक खींचा और जीता।
टाई ब्रेकर में विजेता के गोल अभिराज, अंश गुप्ता, आदित्य शर्मा और प्रणव शर्मा ने किए। डीएफसी के क्लिंटन और निखिल माली ही सही निशाना लगा पाए।
महिला वर्ग में भगवती चौहान और ज्योति ने सिग्नेचर के गोल बनाए तो विपक्षी के दोनों गोल तारा के नाम रहे। टाई ब्रेकर में कप्तान स्वाति रावत, ज्योति और अनुष्का ने विजेता सिग्नेचर के गोल किए जबकि कुसुम और रूचि ही दिल्ली एफसी के लिए गोल बना सकीं।
महिला फाइनल के चलते एक अप्रिय प्रसंग यह रहा कि उप-विजेता दिल्ली एफसी ने निर्धारित समय से अधिक समय तक मैच खिलाने का आरोप लगाया, जिसके चलते खासा बवाल मचा।
दिल्ली एफसी की दोनों ही टीमों ने पुरस्कार वितरण समारोह का बायकॉट कर विरोध व्यक्त किया, जो कि सीधे-सीधे अनुशासनहीनता का मामला बनता है। यह सब डीएसए के वरिष्ठ पदाधिकारियों और गणमान्य अतिथियों के सामने हुआ।
यह सही है कि डीएफसी देश के उदीयमान क्लबों में से एक है लेकिन नियम कानूनों से ऊपर कोई भी नहीं हो सकता। फुटबॉल प्रेमियों के अनुसार, डीएसए को चाहिए था कि पराजित क्लब के प्रोटेस्ट की जांच की जाए और वीडियो रिकार्डिंग को फिर से देखा जाए और जो भी दोषी हो उसे सजा भी दी जाए।
वरना अनुशासनहीनता के मामले बढ़ते जाएंगे और स्थानीय फुटबॉल फिर से मज़ाक बन सकती है।