- 22 सितम्बर को होने वाली डीएसए की एजीएम में अध्यक्ष अनुज गुप्ता के पद पर बने रहने या फिर नहीं रहने का फैसला होगा
- दिल्ली के फुटबॉल हलकों में तनाव है और गुटबाजी एवं आरोप-प्रत्यारोप का दौर जोर-शोर से चल रहा है और पिछले एक महीने से चल रहे हुड़दंग के कारण बॉल कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गया है लिहाजा नतीजन अनुज गुप्ता और असंतुष्टों के बीच शक्ति परीक्षण तक की नौबत आ गई है।
- कयास लगाया जा रहा है कि अनुज गुप्ता अपने पद पर बने रह सकते हैं बशर्ते वह अपनी कार्य प्रणाली में सुधार करें और अपने इर्द-गिर्द मंडराने वाले चाटुकारों और मौकापरस्तों को स्थानीय फुटबॉल का शोषण करने से रोंके
- फुटबॉल बचाओ अभियान वरिष्ठ उपाध्यक्ष शराफतउल्ला, नरेंद्र भाटिया और मगन सिंह पटवाल जैसे अनुभवी प्रशासक चला रहे हैं, जिन्होंने अपने अनुभव और नेक सोच से अधिकतर असंतुष्टों को ना सिर्फ शांत किया है, अपितु उन्हें डीएसए के हित में फिर से एक राय बनाने के लिए विवश भी कर दिया है
राजेंद्र सजवान
फुटबॉल बचेगी या फुस्स होगी, यह सवाल पिछले कुछ दिनों से दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) के पदाधिकारियों फुटबॉल क्लबों और खिलाड़ियों के बीच गहरी चिंता का विषय बना हुआ है। 22 सितम्बर को होने वाली एजीएम में स्थानीय इकाई के अध्यक्ष अनुज गुप्ता के पद पर बने रहने या पद मुक्त होने का फैसला सुनाया जाना है। जाहिर है कि फुटबॉल हलकों में तनाव है और गुटबाजी एवं आरोप-प्रत्यारोप का दौर जोर-शोर से चल रहा है। इस बीच दिल्ली की फुटबॉल से सरोकार रखने वालों के लिए बड़ी खुशखबरी आई है जिसे लेकर यह कयास लगाया जा रहा है कि अनुज गुप्ता अपने पद पर बने रह सकते हैं। बशर्ते, ‘वह अपनी कार्य प्रणाली में सुधार करें और अपने इर्द-गिर्द मंडराने वाले चाटुकारों और मौकापरस्तों को स्थानीय फुटबॉल का शोषण करने से रोंके।’
पिछले एक महीने से स्थानीय फुटबॉल में हुड़दंग मचा है बॉल कोर्ट-कचहरी तक पहुंच गई है। नतीजन अनुज गुप्ता और असंतुष्टों के बीच शक्ति परीक्षण तक की नौबत आ गई है। लेकिन अच्छी बात यह है कि डीएसए के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने असंतुष्टों और आरोप लगाने वालों से एक बार फिर से सोचने समझने का आग्रह किया है। फुटबॉल बचाओ अभियान का नेतृत्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष शराफतउल्ला कर रहे हैं, जिन्होंने अपने अनुभव और नेक सोच से अधिकतर असंतुष्टों को ना सिर्फ शांत किया है, अपितु उन्हें डीएसए के हित में फिर से एक राय बनाने के लिए विवश भी कर दिया है। उनके साथ नरेंद्र भाटिया और मगन सिंह पटवाल जैसे अनुभवी प्रशासकों का सहयोग भी काम करता नजर आ रहा है। कोषाध्यक्ष लियाकत अली, हाफीज, रिजवान-उल-हक और अन्य सीनियर चाहते हैं कि फैसले हाउस की एक राय और बहुमत के आधार पर हों। अधिकतर इसलिए खफा हैं क्योंकि चंद लोग दिल्ली की फुटबॉल का शोषण कर रहे हैं। इसलिए क्योंकि उन्हें अध्यक्ष का करीबी होने का लाभ मिल रहा है, ऐसा उन पर आरोप लगाया गया है।
कुल मिलाकर एजीएम शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होने का संकेत मिला है। जिस घमासान की आशंका थी, वो फिलहाल थम गया लगता है, क्योंकि इधर-उधर के सभी कार्यकारिणी सदस्य दिल्ली की फुटबॉल को बचाने के लिए एक राय हो सकते हैं, भले ही एकजुट ना हों। यदि ऐसा हुआ तो दिल्ली की फुटबॉल एक और बवंडर से बच जाएगी। सालों पहले इस प्रकार की गुटबाजी ने डीएसए और दिल्ली की फुटबॉल के दो फाड़ कर दिए थे, जिसके गवाह खुद शराफत उल्ला, एनके भाटिया, मगन पटवाल, हेमचंद, शंकरलाल जैसे दिग्गज रहे हैं। उनकी भूमिका और दूरदृष्टि भी यदि डीएसए के काम नहीं आई तो दिल्ली की फुटबॉल की बर्बादी तय समझें।