- भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्लूएफआई) के चुनाव 21 दिसम्बर को होना तय हुए हैं
- बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और अन्य कई पहलवानों के ब्रजभूषण शरण सिंह पर लगे यौन शोषण के आरोप से भारतीय कुश्ती में सवालिया निशान लगा है
- हालांकि मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है लेकिन बेटियों को कुश्ती के अखाड़े में उतारने से पहले ज्यादतर माता-पिता हिचकिचाने लगे हैं
- अभिभावकों का मत है कि जब विनेश, साक्षी, संगीता, बजरंग जैसे नामी पहलवान गंदी राजनीति और यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं तो आम देशवासियों का डरना स्वभाविक है
राजेंद्र सजवान
देर से ही सही, बड़े नुकसान और भरपूर बदनामी के बाद भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्लूएफआई) के चुनाव 21 दिसम्बर को होना तय हैं। 11 अगस्त को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने पोलिंग से एक दिन पहले चुनाव पर रोक लगा दी थी। जैसा कि विदित है कि पहलवानों और पूर्व फेडरेशन अध्यक्ष ब्रजभूषण शरण सिंह के बीच मचे घमासान के चलते चुनाव प्रभावित हुआ और भारतीय कुश्ती को बहुत कुछ खोना पड़ा था।
ब्रजभूषण शरण सिंह अब फेडरेशन अध्यक्ष नहीं हैं और ना ही अब उनके लिए कोई मौका बचा है लेकिन इतना तय है कि उनका कोई करीबी ही अगला अध्यक्ष बनेगा, ऐसा अधिकांश का मानना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनाव के बाद भारतीय कुश्ती पहले सी रफ्तार पकड़ लेगी। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि पिछले कुछ महीनों में भारतीय कुश्ती ने जो कुछ खोया है उसकी कब तक भरपाई होगी भी या नहीं।
बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और अन्य कई पहलवानों के ब्रजभूषण शरण सिंह पर लगे यौन शोषण के आरोप से भारतीय कुश्ती में एक ऐसा सवालिया निशान लगा है, जिसकी भरपाई होने में वर्षों लग सकते हैं या कुश्ती को हमेशा शंका की नजर से देखा जाता रहेगा। हालांकि मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है लेकिन महिला पहलवानों के गंभीर आरोपों ने कुश्ती जगत में हड़कंप मचा दिया है। भले ही इस मामले में दूध का दूध होना संभव नहीं है लेकिन बेटियों को कुश्ती के अखाड़े में उतारने से पहले ज्यादतर माता-पिता हिचकिचाने लगे हैं। खुद अखाड़ा चलाने वाले गुरु-खलीफा कह रहे हैं कि अब पहले की तरह बेटियां पहलवानी को पहले खेल के रूप में नहीं अपना रही हैं। उनकी संख्या में गिरावट आई है।
बेशक, कुश्ती की उपलब्धियों में गिरावट आई है। खासकर, हरियाणा, यूपी, एमपी, महाराष्ट्र जैसे प्रदेशों के अभिभावक अपने बच्चों को अखाड़े जाने से रोकने लगे हैं। उनका मत है कि जब विनेश, साक्षी, संगीता, बजरंग जैसे नामी पहलवान गंदी राजनीति और यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं तो आम देशवासियों का डरना स्वभाविक है। लेकिन नई टीम यदि नए विश्वास और नए अनुशासन के साथ पहलवानों को अभयदान देती है तो कुश्ती में बहुत कुछ खोया हुआ वापसी पाया जा सकता है।