- दिल्ली सॉकर एसोसिएशन द्वारा किए तमाम सुधारों के बावजूद फुटबॉल मैदान और स्टेडियम का उपलब्धता नहीं होना बहुत बड़ी कमी नजर आ रही है
- डीएसए की गतिविधियां राजधानी दिल्ली के डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, ईस्ट विनोद नगर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स चलती है लेकिन इनमें से किसी भी मैदान का मालिकाना हक उसके पास नहीं है लिहाजा उसे दूसरों पर मोहताज रहना पड़ता है
- कभी यही अम्बेडकर स्टेडियम दिल्ली की फुटबॉल का गढ़ था और डीएसएम कप, डूरंड कप, सुब्रतो मुखर्जी कप के अलावा दर्जनों अन्य टूर्नामेंट इस स्टेडियम में खेले जाते थे
- लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाने के कारण डीएसए की गतिविधियां गड़बड़ा गई हैं और खासकर, अम्बेडकर स्टेडियम डीएसए के हाथ से फिसलता नजर आ रहा है
- डीएसए के पूर्व अधिकारियों और महत्वपूर्ण पदों पर रहे नरेंद्र कुमार भाटिया, हेमचंद और मगन सिंह पटवाल के अनुसार, यह स्टेडियम व अन्य मैदान इसलिए नहीं मिल पा रहे हैं, क्योंकि डीएसए अपने भीतरघात के चलते शायद अपने कर्तव्यों और दायित्वों को भूल गई है
राजेंद्र सजवान
दिल्ली की फुटबॉल आज वैसी नहीं रही, जैसी दस-बीस साल पहले हुआ करती थी। बेशक, गतिविधियां बढ़ रही है, महिला खिलाड़ी भी बड़ी तादाद में मैदान पर उतर आई हैं। क्लबों की संख्या दोगुनी-चौगुनी हो गई है। डीएसए का स्टाफ बढ़ा है तो पैसा भी बढ़ रहा है लेकिन तमाम सुधारों के बावजूद भी यदि कहीं कोई कमी नजर आ रही है तो वो है फुटबॉल मैदान और स्टेडियम की अनुपलब्धता।
हालांकि डीएसए की गतिविधियां राजधानी दिल्ली के डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, ईस्ट विनोद नगर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और लड़कियों की फुटबॉल जानकी देवी महाविद्यालय में आयोजित की जाती रही है लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाने के कारण डीएसए की गतिविधियां गड़बड़ा गई हैं। खासकर, डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम डीएसए के हाथ से फिसलता नजर आ रहा है। कभी यही स्टेडियम दिल्ली की फुटबॉल का गढ़ था और डीएसएम कप, डूरंड कप, सुब्रतो मुखर्जी कप के अलावा दर्जनों अन्य फुटबॉल टूर्नामेंट इस स्टेडियम में खेले जाते थे। लेकिन अब डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम किश्तों में क्यों मिल रहा है और बाकी मैदान डीएसए की पकड़ से बाहर क्यों हो रहे हैं?
इस बारे में डीएसए के पूर्व अधिकारियों और महत्वपूर्ण पदों पर रहे नरेंद्र कुमार भाटिया, हेमचंद और मगन सिंह पटवाल की राय मायने रखती है, जो कि स्थानीय इकाई के महत्वपूर्ण पदों पर रहे और आज भी फुटबॉल से जुड़े हैं। हेमचंद, भाटिया और पटवाल कहते हैं कि डॉ. अम्बेडकर स्टेडियम कभी उनकी जेब में था, साल भर डीएसए की गतिविधियां चलती थी। इसलिए क्योंकि तब उनकी छोटी सी टीम बड़ी मजबूत थी। दिल्ली सरकार, नेता और विधायक उन्हें समर्थन देते थे। पूर्व अध्यक्ष जुनेजा, सूद, सुभाष चोपड़ा, देवराज, नासिर अली, अब्दुल अजीज, वीएस चौहान, शंकर लाल आदि अधिकारी चौबीसों घंटे फुटबॉल के हित के लिए तैयार रहते थे।
हेमचंद के अनुसार, तब स्टेडियम हमारी गिरफ्त में था और सस्ते दामों पर उपलब्ध था। भाटिया बताते हैं कि उनकी छोटी सी टीम बड़े-बड़े काम कर गुजरती थी लेकिन आज पैसा और संसाधन बढ़ने के बावजूद डीएसए अनुशासनहीनता, गुटबाजी और हिंसा का शिकार है। मगन सिंह पटवाल कहते हैं कि तब छोटे-बड़े का लिहाज था, टीम वर्क और भाई-चारे से तमाम काम होते थे। आज स्टाफ बढ़ा है लेकिन फुटबॉल की लोकप्रियता घटी है जो स्टेडियम डीएसए की बपौती था उसकी बोली लगने लगी है।
इस कामयाब तिकड़ी के अनुसार, अन्य स्टेडियम या मैदान इसलिए नहीं मिल पा रहे हैं, क्योंकि डीएसए अपने भीतरघात के चलते शायद अपने कर्तव्यों और दायित्वों को भूल गई है। यदि एकजुट नहीं रहे और हिंसा व अनुशासनहीनता का तोड़ नहीं निकाला गया तो फुटबॉल की खैर नहीं।