डॉ. बत्रा को गुस्सा क्यों आता है?

  • अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन (एफआईएच) के पहले भारतीय अध्यक्ष नरेंद्र कुमार बत्रा ने हाल ही में एक तथ्य परक बयान देकर भारतीय हॉकी की उलटी गिनती का अंदेशा व्यक्त किया है
  • डॉ. बत्रा ने भारतीय हॉकी टीमों की वर्तमान रैंकिंग पर सवाल खड़ा करते हुए पूछा है कि आखिर क्यों पुरुष टीम रैंकिंग में तीसरे से छठे स्थान पर और महिला टीम छठे से नौवें स्थान पर लुढ़क गई है, जो कि पिछले दस सालों में सबसे खराब रैंकिंग है
  • इस गिरावट को उन्होंने सीधे-सीधे भारतीय हॉकी का पतन बताया है, जिसके लिए उन्होंने हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की और उनके पहलवान सचिव भोलानाथ को जिम्मेदार बताया है

राजेंद्र सजवान

अंतरराष्ट्रीय हॉकी फेडरेशन (एफआईएच) के पहले भारतीय अध्यक्ष नरेंद्र कुमार बत्रा भले ही अब भारतीय हॉकी के शीर्ष पद पर नहीं है लेकिन हॉकी की गहरी समझ रखने वाले बत्रा ने हाल ही में एक तथ्य परक बयान देकर भारतीय हॉकी की उलटी गिनती का अंदेशा व्यक्त किया है। हॉकी इंडिया और इंडियन ओलम्पिक एसोसिएशन (आईओए) के शीर्ष पद पर रहे डॉ. बत्रा को लगता है कि भारतीय हॉकी सही दिशा में आगे बढ़ने की बजाय उलटी चाल चल रही है। नतीजन भारतीय पुरुष एवं महिला टीमों ने आगे बढ़ने की बजाय पीछे हटना शुरू कर दिया है।

   डॉ. बत्रा ने भारतीय हॉकी टीमों की वर्तमान रैंकिंग पर सवाल खड़ा करते हुए पूछा है कि आखिर क्यों पुरुष टीम रैंकिंग में तीसरे से छठे स्थान पर और महिला टीम छठे से नौवें स्थान पर लुढ़क गई है, जो कि पिछले दस सालों में सबसे खराब रैंकिंग है। इस गिरावट को उन्होंने सीधे-सीधे भारतीय हॉकी का पतन बताया है, जिसके लिए उन्होंने हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की और उनके पहलवान सचिव भोलानाथ को जिम्मेदार बताया है। इतना ही नहीं उन्होंने अपने एक संदेश में यह भी कहा है कि जब कोच का चयन जातिगत आधार पर और कप्तान प्रशासक के प्रदेश का चुना जाएगा तो हॉकी की दुर्गति तय है।

   इसमें कोई दो राय नहीं है कि डॉ. बत्रा भारतीय खेलों और हॉकी की बेहतर समझ रखते हैं। केपीएस गिल जैसे दमदार प्रशासक को हॉकी से बेदखल करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही। हालांकि पिछले कुछ सालों में उन्हें भी कठिन समय गुजारना पड़ा लेकिन आईओए और हॉकी इंडिया को सलाह देने और उनकी त्रुटियों में अवगत कराने का कोई मौका नहीं चूकते।

 

  बेशक भारतीय हॉकी साल दर साल नीचे गिर रही है जिसके लिए अंतर कलह और गंदी राजनीति को जिम्मेदार माना जा रहा है। एशियाड, एशियन चैम्पियनशिप और ओलम्पिक क्वालीफायर में महिला टीम के दयनीय प्रदर्शन का नतीजा है कि महिलाएं ओलम्पिक खेलने का खो चुकी हैं। पुरुष टीम ओलम्पिक में खेलेगी लेकिन उसके प्रदर्शन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। सविता पूनिया के स्थान पर सलीमा टेटे को महिला टीम की कमान सौंपने पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। लेकिन सलीमा टेटे को कप्तान कप्तान बनाए जाने और हरेंद्र की वापसी पर सवाल खड़े करना जल्दबाजी होगी। उन्हें कुछ मौके तो मिलने ही चाहिए।

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