दावा ओलम्पिक आयोजन का: एथलेटिक्स, जिम्नास्टिक और तैराकी में गहराई तक डूबे हैं

  • भारत को ओलम्पिक मेजबान का दावा ठोकने से पहले तीन प्रमुख खेलों एथलेटिक्स, तैराकी और जिम्नास्टिक में अपनी हैसियत का जायजा लेना जरूर है
  • ऐसा इसलिए क्योंकि ये तीन ऐसे खेल हैं, जिनमें पदकों की बरसात होती है और जो देश इन खेलों में अधिकाधिक पदक जीत पाते हैं, पदक तालिका में उनका स्थान ऊंचाई पर होता है
  • इन तीन खेलों की कसौटी पर भारतीय प्रदर्शन को परखें तो एथलेटिक्स में नीरज चोपड़ा को छोड़ एक भी भारतीय एथलीट ओलम्पिक पदक नहीं जीत पाया है
  • तैराकी की तरह जिम्नास्टिक में भी हम ‘जीरो’ से ऊपर नहीं उठ पाए है, लेकिन गंदी राजनीति के चलते इन खेलों में अर्जुन और द्रोणाचार्य अवार्डों की बंदर बांट जारी है

राजेंद्र सजवान

भारतीय खेल आका, सरकार और आईओए यदि सचमुच ओलम्पिक आयोजन का दावा पेश करना चाहते हैं तो सबसे पहले तीन प्रमुख खेलों एथलेटिक्स, तैराकी और जिम्नास्टिक में अपनी हैसियत का जायजा लेना जरूर है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये तीन ऐसे खेल हैं, जिनमें पदकों की बरसात होती है और जो देश इन खेलों में अधिकाधिक पदक जीत पाते हैं, पदक तालिका में उनका स्थान ऊंचाई पर होता है।  

   इन तीन खेलों की कसौटी पर भारतीय प्रदर्शन को परखें तो एथलेटिक्स में नीरज चोपड़ा को छोड़ एक भी भारतीय एथलीट ओलम्पिक पदक नहीं जीत पाया है। भले ही मिल्खा सिंह और पीटी उषा के चौथे नंबर के प्रदर्शन पर हम इतराते रहे लेकिन सालों साल कहीं कोई सुधार दिखाई नहीं दिया। अंतत: नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलम्पिक में शानदार थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता तो भारतीय एथलेटिक्स ने चैन की सांस ली होगी। एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के शीर्ष अधिकारियों ने पेरिस ओलम्पिक में एक से अधिक पदक जीतने के दावे जरूर किए लेकिन नीरज पहले सा करिश्मा नहीं कर पाया। पाकिस्तानी थ्रोअर अशरफ नदीम उस पर बहुत भारी पड़ा, जिसका असर पदक तालिका पर भी देखा गया। भारी भरकम एथलेटिक्स दल बेहद खराब प्रदर्शन के साथ वापस लौटा।

   जहां तक तैराकी की बात है तो खजान सिंह, माना पटेल, शमशेर खान, आरती शाह, वीरधवल खाड़े, साजन प्रकाश और कुछ अन्य तैराकों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व जरूर किया लेकिन उनमें से ज्यादातर अपना श्रेष्ठ भी नहीं दे पाए। पेरिस ओलम्पिक में मात्र एक तैराक धिनिधी डिजेंगू ने भारत का प्रतिनिधित्व किया लेकिन यह 14 वर्षीय तैराक पाला छूकर लौट आई। लेकिन जिम्नास्टिक में एक भी भारतीय जिम्नास्ट ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाया।

   रियो ओलम्पिक तक भारतीय जिम्नास्टिक की पहचान महज गुटबाजी और आरोपों-प्रत्यारोपों की तरह थी। भारतीय तैराकी महासंघ की तरह जिम्नास्टिक फेडरेशन को भी कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने अपनी जागीर बना रखा था। लेकिन रियो ओलम्पिक 2016 में दीपा करमाकर को चौथा स्थान मिला। हालांकि वह ओलम्पिक और एशियाड में कोई पदक नहीं जीत पाई लेकिन डोप टेस्ट में पकड़े जाने पर खास चर्चित रही। आशीष कुमार, अरुणा रेड्डी, श्याम लाल, मंटू देबनाथ, प्रणति नायक आदि ने बेहद दयनीय प्रदर्शन के बावजूद राष्ट्रीय खेल अवार्ड पाए। अर्थात् तैराकी की तरह जिम्नास्टिक में भी हम ‘जीरो’ से ऊपर नहीं उठ पाए है, लेकिन गंदी राजनीति के चलते इन खेलों में अर्जुन और द्रोणाचार्य अवार्डों की बंदर बांट जारी है। अब आप ही बताएं कि हम खेल महाशक्ति बन पाएंगे?

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *