- पहला पक्ष कह रहा है कि फिलहाल डीएसए का गोल्डन पीरियड चल रहा है, जिसमें स्कूल, कॉलेज, छोटे-बड़े क्लबों और अकादमियों के लिए प्रतिभा दिखाने और आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं और एक के बाद एक टूर्नामेंट खेले जा रहे हैं
- आलोचक कह रहे हैं कि ज्यादा फुटबॉल से तब तक कोई फायदा नहीं है जब तक क्वालिटी पर ध्यान नहीं दिया जाता और स्थानीय लीग में दिल्ली के अपने खिलाड़ी कहीं नजर नहीं आते
- यहां ग्रासरूट लेवल से लेकर प्रीमियर लीग आयोजनों में मणिपुर, मिजोरम, पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य प्रदेशों के खिलाड़ी बहुतायत में हैं
राजेंद्र सजवान
दिल्ली की फुटबॉल अपने सबसे अच्छे दौर से गुजर रही है। फुटबॉल गतिविधियों की संख्या और निरंतरता के आधार पर ऐसा कहा जा रहा है। लेकिन दूसरा पक्ष कह रहा है कि देश की राजधानी में खेल की आड़ में जो कुछ चल रहा है उसे फुटबॉल के लिए घातक कहना गलत नहीं होगा। पहला पक्ष कह रहा है कि फिलहाल दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) का गोल्डन पीरियड चल रहा है, जिसमें स्कूल, कॉलेज, छोटे-बड़े क्लबों और अकादमियों के लिए प्रतिभा दिखाने और आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। एक के बाद एक टूर्नामेंट खेले जा रहे हैं। हालांकि मैदान और स्टेडियम उपलब्ध नहीं है फिर भी गतिविधियां जारी हैं।
वहीं, आलोचक कह रहे हैं कि ज्यादा फुटबॉल से तब तक कोई फायदा नहीं है जब तक क्वालिटी पर ध्यान नहीं दिया जाता। उनके अनुसार स्थानीय लीग में दिल्ली के अपने खिलाड़ी कहीं नजर नहीं आते। भले ही देश भर में फुटबॉल गतिविधियां कुछ एक प्रदेशों के खिलाड़ियों तक सिमट कर रह गई हैं फिर भी स्थानीय खिलाड़ियों की मौजूदगी और उनकी प्रगति पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। जहां तक दिल्ली की बात है तो यहां ग्रासरूट लेवल से लेकर प्रीमियर लीग आयोजनों में मणिपुर, मिजोरम, पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य प्रदेशों के खिलाड़ी बहुतायत में हैं। पुरुष और महिला आयोजनों में दिल्ली के अपने खिलाड़ी खोजे नहीं मिल पर रहे हैं।
स्थानीय इकाई के अनुसार ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) के नियमों के तहत सभी क्लब विभिन्न प्रदेशों के खिलाड़ियों के पंजीकरण के लिए स्वतंत्र हैं। जहां तक दिल्ली की बात है तो यह स्वतंत्रता कुछ हद तक महंगी पड़ रही है। कुछ क्लबों पर खेल नियमों से खिलवाड़ के आरोप लग रहे हैं। कुछ एक मैच मिलीभगत और फिक्सिंग के आरोपों से घिरे हैं और उनकी जांच ठंडे बस्ते में पड़ी है। बीते सालों में भी कुछ क्लबों पर नियमों से खिलवाड़ के आरोप लगे लेकिन उन पर कोई कारवाई नहीं हुई। शायद इसलिए कि डीएसए के हमाम में नंगों की भरमार है। यदि फुटबॉल को बदनामी से बचाना है तो क्वालिटी के साथ-साथ नेक नीयत और ईमानदारी पर ध्यान देने की जरूरत है।