- मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एआईएफएफ के अध्यक्ष कल्याण चौबे को आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार उत्तर प्रदेश को देश का ‘फुटबॉल हब’ बनाने के लिए दृढ़ संकल्प है
- योगी आदित्यनाथ ने तुरत-फुरत में 18 आधुनिक स्टेडियम बनाने और प्रत्येक ब्लॉक में एक फुटबॉल मैदान (कुल 827 आधुनिक मैदान) का निर्माण के आदेश जारी कर दिए
- लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में देश के नामी क्लबों मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच खेला गया मैच
- वहीं, दिल्ली की फुटबॉल को संचालित करने वाली डीएसए के पास अपना कोई कोई फुटबॉल ग्राउंड या स्टेडियम नहीं है
- दिल्ली फुटबॉल की पहचान डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम लगभग साल भर व्यस्त रहता है जहां फिलहाल स्टेडियम में तोड़फोड़ का काम चल रहा है
- अम्बेडकर स्टेडियम में कभी राजनीतिक दलों, कभी पुलिस ट्रेनिंग, कभी दंगल, तो कभी प्राइवेट पार्टियां होती हैं लेकिन डीएसए को ठेंगा दिखा दिया जाता है
- जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में फुटबॉल मैदान है जो कि डीएसए की पहुंच से बाहर है और अभ्यास मैदान पर दिल्ली की फुटबॉल खेली जाती है जबकि दिल्ली सरकार के स्टेडियम डीएसए को आसानी से नहीं मिल पाते
- फुटबॉल मैदानों की अनुपलब्धता के कारण स्थानीय लीग, आयु वर्ग के टूर्नामेंट और अन्य आयोजन समय पर नहीं हो पाते है जिनके लिए कम से कम 100 से अधिक मैदान चाहिए
राजेंद्र सजवान
लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में देश के नामी क्लबों मोहन बागान और ईस्ट बंगाल के बीच खेले गए मैच के बाद से उत्तर प्रदेश में फुटबॉल क्रांति का नया दौर शुरू हो सकता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के अध्यक्ष कल्याण चौबे को आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार प्रदेश को देश का ‘फुटबॉल हब’ बनाने के लिए दृढ़ संकल्प है। योगी आदित्यनाथ ने तुरत-फुरत में ही प्रदेश में 18 आधुनिक स्टेडियम बनाने और प्रत्येक ब्लॉक में एक फुटबॉल मैदान का निर्माण के आदेश जारी कर दिए। अर्थात् 827 आधुनिक मैदान बनाने के निर्देश जारी कर दिए हैं।
यदि सचमुच ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश को फुटबॉल प्रदेश बनने में समय नहीं लगेगा। लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में क्या चल रहा है? इसमें कोई दो राय नहीं है कि फुटबॉल गतिविधियां देर सवेर चल रही है लेकिन दिल्ली की फुटबॉल को संचालित करने वाली दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) के पास अपना कोई कोई फुटबॉल ग्राउंड या स्टेडियम नहीं है। ले-देकर फुटबॉल की पहचान के नाम पर डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम है, जो कि लगभग साल भर व्यस्त रहता है। फिलहाल स्टेडियम में तोड़फोड़ का काम चल रहा है। जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में फुटबॉल मैदान है जो कि डीएसए की पहुंच से बाहर है। एक अन्य अभ्यास के लिए बनाए गए मैदान पर दिल्ली की फुटबॉल खेली जाती है। दिल्ली सरकार के कुछ अन्य स्टेडियम भी हैं जो कि डीएसए को आसानी से नहीं मिल पाते। क्योंकि फुटबॉल मैदान नाकाफी हैं, इसलिए स्थानीय लीग, आयु वर्ग के टूर्नामेंट और अन्य आयोजन समय पर नहीं हो पाते है जिनके लिए कम से कम 100 से अधिक मैदान चाहिए।
सच तो यह है कि राजधानी दिल्ली की फुटबॉल का कारोबार चलाने वाली डीएसए ने कभी फुटबॉल स्टेडियम या मैदान बनाने को गंभीरता से लिया नहीं। डॉ. बीआर अम्बेडकर स्टेडियम का सालों से दोहन होता रहा है। उसे कभी राजनीतिक दल बुक कराते हैं तो कभी वहां पुलिस ट्रेनिंग होती है। गए सालों में यहीं पर दंगल आयोजित किए जाते रहे। आज आलम यह है कि स्टेडियम को प्राइवेट पार्टियां बुक करा लेती हैं लेकिन डीएसए को ठेंगा दिखा दिया जाता है।
भले ही सरकार किसी भी पार्टी की रही हो लेकिन किसी भी सरकार ने खेलों को गंभीरता से नहीं लिया। नतीजन दिल्ली हर खेल में फिसड्डी रह गई। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि अन्य इकाइयों की तरह डीएसए के पदाधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं। फुटबॉल को उन्होंने कभी पनपने नहीं दिया। डूरंड कप और कई बड़े आयोजन दिल्ली से छीन लिए गए। क्या यूपी से कोई सबक ले सकती है डीएसए और दिल्ली?