- दिल्ली ने जीती स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप
- प. बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, कर्नाटक आदि की मौजूदगी में राजधानी दिल्ली का खिताब जीतना न सिर्फ भविष्य की उम्मीद जगाता है अपितु यह भी दर्शाता है कि दिल्ली की फुटबॉल सही दिशा में आगे बढ़ रही है
- हो सकता है कि कुछ लोगों को स्थानीय फुटबॉल के सही दिशा में बढ़ने वाली बात पर आपत्ति हो, क्योंकि टीम के अधिकतर खिलाड़ियों की परवरिश दिल्ली से बाहर नॉर्थ ईस्ट या अन्य कहीं हुई है
- लेकिन यह ना भूलें कि विजेता टीम के ज्यादातर खिलाड़ी दिल्ली की अकादमी से निकल कर आगे बढ़े और आज दिल्ली का नाम रोशन कर रहे हैं
- दिल्ली के फुटबॉल आकाओं को चाहिए कि अपने दम पर अपने प्रयासों से ऐसे चैम्पियन तैयार करें जिन पर किसी को उंगली उठाने का मौका न मिले
राजेंद्र सजवान
पहली बार आयोजित 20 साल तक के खिलाड़ियों की स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप में दिल्ली की खिताबी जीत को अभूतपूर्व कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि राष्ट्रीय फुटबॉल मानचित्र पर दिल्ली कभी भी बड़ा नाम नहीं रहा। हां, एक बार संतोष ट्रॉफी जरूर जीती थी। पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मिजोरम, कर्नाटक आदि की मौजूदगी में देश की राजधानी के खिलाड़ियों का खिताब जीतना न सिर्फ भविष्य की उम्मीद जगाता है अपितु यह भी दर्शाता है कि दिल्ली की फुटबॉल सही दिशा में आगे बढ़ रही है।
हो सकता है कि कुछ लोगों को स्थानीय फुटबॉल के सही दिशा में बढ़ने वाली बात पर आपत्ति हो। इसलिए क्योंकि विजेता टीम के अधिकांश खिलाड़ी दिल्ली के नहीं हैं, क्योंकि इनकी परवरिश दिल्ली से बाहर नॉर्थ ईस्ट या अन्य कहीं हुई है। हो सकता है उन्होंने फुटबॉल का पहला सबक दिल्ली से पहले नॉर्थईस्ट में सीखा हो। लेकिन यह ना भूलें कि विजेता टीम के ज्यादातर खिलाड़ी दिल्ली की अकादमी से निकल कर आगे बढ़े और आज दिल्ली का नाम रोशन कर रहे हैं।
बेशक, टीम के चयन को लेकर बहुत कुछ कहा सुना गया। आरोप लगाया गया कि एक क्लब के खिलाड़ियों को बिना ट्रायल के राज्य टीम में चुना गया। उनकी आड़ में कुछ अवसरवादी भी अवसर को भुनाने में सफल रहे। खैर, मौका अब आरोप-प्रत्यारोप लगाने और टीम की जीत पर उंगली उठाने का नहीं है। विजेता टीम के सभी खिलाड़ी और अधिकारी साधुवाद के पात्र हैं। उनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम होगी। इस टीम ने दिल्ली की फुटबॉल का कद बहुत ऊंचा उठा दिया है। जरूरत इस बात की है कि चैम्पियन के ओहदे को बनाए रखा जाए, जोकि आसान नहीं होगा।
फुटबॉल जगत पर सरसरी नजर डालें तो अधिकांश सितारा खिलाड़ी इसी आयु वर्ग से निकल कर नाम-सम्मान पाने में सफल रहे है। दिल्ली की फुटबॉल के लिए एक अच्छी बात यह मानी जा रही है कि ऊपर के आयु वर्गों और संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के लिए दमदार टीम तैयार हो गई है। लेकिन दिल्ली के कुछ फुटबॉल जानकार, क्लब अधिकारी और खिलाड़ी कुछ और सोच रखते हैं। उन्हें अपनी टीम की जीत हजम नहीं हो पा रही।
अंत भला सब भला, आपने यह कहावत तो सुनी होगी। टीम जीत गई और देश भर की फुटबॉल में दिल्ली का नाम बड़े आदर सम्मान के साथ लिया जा रहा है। अब दिल्ली के फुटबॉल आकाओं को चाहिए कि अपने दम पर अपने प्रयासों से ऐसे चैम्पियन तैयार करें जिन पर किसी को उंगली उठाने का मौका न मिले। जिस दिन हम अपने दम पर अपने खिलाड़ी पैदा कर लेंगे उस दिन दिल्ली देश की ‘फुटबॉल राजधानी’ बन जाएगी।