देवभूमि को फुटबॉल भूमि बनाने की चुनौती!

  • 38वें राष्ट्रीय खेलों में उत्तराखंड की फुटबॉल टीम के प्रदर्शन की सबसे ज्यादा चर्चा रही, क्योंकि इसे देखने के लिए रिकॉर्ड संख्या में दर्शक स्टेडियम पहुंचे
  • केरल, ओडिशा, गोवा, मणिपुर, असम, दिल्ली, सर्विसेज जैसी धुरंधर टीमों की उपस्थिति में मेजबान टीम का उप-विजेता बनना शानदार कहा जा सकता है
  • बड़ी बात यह है कि उत्तराखंड कभी संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप में भी बड़ी ताकत नहीं रहा और राष्ट्रीय खेलों में भी पहली बार पदक जीता है

राजेंद्र सजवान

अपनी मेजबानी में आयोजित 38वें राष्ट्रीय खेलों में यूं तो उत्तराखंड का ओवरऑल प्रदर्शन ठीक ठाक रहा लेकिन जिस खेल की सबसे ज्यादा चर्चा है, वो निसंदेह फुटबॉल ही हो सकता है,  जिसे देखने के लिए रिकॉर्ड संख्या में दर्शक स्टेडियम पहुंचे। भले ही मेजबान टीम को फाइनल में हार सामना करना पड़ा, लेकिन केरल, ओडिशा, गोवा, मणिपुर, असम, दिल्ली, सर्विसेज जैसी धुरंधर टीमों की उपस्थिति में उप-विजेता बनना शानदार  कहा जा सकता है।

   मेजबान की सबसे बड़ी उपलब्धि यह कही जा सकती है कि केरल के विरुद्ध फाइनल में उतरने और सिल्वर जीतने से पहले उसके खाते में कुछ खास नहीं था। उत्तराखंड कभी संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप में भी बड़ी ताकत नहीं रहा और राष्ट्रीय खेलों में भी पहली बार पदक जीता है। अर्थात आने वाला कल देवभूमि की फुटबॉल के लिए कड़ी चुनौती का रहेगा। ताजा प्रदर्शन को बनाए रखने और प्रदेश के सबसे लोकप्रिय खेल को फिर से ऊर्जावान बनाने के लिए शीर्ष फुटबॉल इकाई, सरकार, खिलाड़ियों और कोचों को नए सिरे से प्रयास करने होंगे। वर्ना आने वाली पीढ़ियां वर्तमान उपलब्धि को तीर तुक्का कहेंगी।

   यह ना भूलें कि मेजबान राज्य पर बाहरी खिलाड़ियों के दम पर पदक जीतने का इल्जाम लगा है जो कि  काफी हद तक  सही भी है। यह भी याद रखें कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है। खुद उत्तराखंड के फुटबॉलर और खेल से जुड़े लोग आरोप लगाते हैं कि प्रदेश की फुटबॉल माफिया चला रहा है, जहां कायदे-कानून नाम की चीज नहीं बची। नतीजन प्रतिभावान खिलाड़ी उत्तराखंड से भाग रहे हैं और दिल्ली और डेढ़ क़े अन्य क्लबों को सेवाएं दे रहे हैं l

   यही मौका है कि प्रदेश के सभी जिलों में फुटबॉल के लिए मैदान और साधन सुविधाएं जुटाई जाएं ताकि प्रतिभाओं को अपने घर पर अपने प्रदेश के लिए खेलने का मौका नसीब हो सके। लेकिन सबसे पहला कदम बाहरी प्रदेशों के छद्म और बहरूपियों को निकाल बाहर करने का उठे। वर्ना राष्ट्रीय खेलों की उपलब्धि पर हमेशा उंगली उठती रहेगी! क्लब फुटबॉल को फिर से जिंदा करने और स्कूल-कॉलेज में फुटबॉल को एक अनिवार्य विषय (खेल) के रूप में पढ़ाने-सिखाने से उत्तराखंड फुटबॉल में बड़ी ताकत बन सकता है।

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