धर्म कई लेकिन राष्ट्रीय धर्म तो हॉकी ही है!
- 1975 की विश्व विजेता टीम के स्टार खिलाड़ी असलम शेर खान पूछे रहे हैं, “1931 में भोपाल में जन्में ओबेदुल्लाह खान गोल्ड कप हॉकी टूर्नामेंट के आयोजन पर रोक क्यों लगाई गई है?”
- असलम की चिंता का अशोक ध्यानचंद ने भी समर्थन किया है और दोनों ने भोपाल के नामी टूर्नामेंट के आयोजन में आ रही बाधा को हॉकी के लिए घातक बताया
राजेंद्र सजवान
आजादी के बाद देश के बंटवारे के साथ-साथ भारतीय हॉकी का विभाजन भी हुआ, जिसकी सजा दोनों देश आज तक भुगत रहे हैं। तब हिन्दू-मुस्लिम और हर धर्म के खिलाड़ी भारतीय हॉकी की शान थे। लेकिन आज आलम यह है कि भारत और पाकिस्तान से हॉकी बादशाहत का ताज छिन चुका है। कारण कई हैं लेकिन फिलहाल भारतीय हॉकी में आजादी पूर्व के एक बड़े हॉकी टूर्नामेंट की उपेक्षा की चर्चा है, जिसे लेकर 1975 की विश्व विजेता टीम के स्टार खिलाड़ी असलम शेर खान पूछे रहे हैं, “मंदिर हिन्दू का, मस्जिद मुसलमान की, गुरुद्वारा सिखों का और चर्च ईसाइयों का। सिर्फ हॉकी ही राष्ट्रीय खेल और राष्ट्रीय धर्म की पहचान रह गई है। यदि ऐसा है तो फिर 1931 में भोपाल में जन्में ओबेदुल्लाह खान गोल्ड कप हॉकी टूर्नामेंट के आयोजन पर रोक क्यों लगाई गई है?”
यह सवाल पूर्व केंद्रीय मंत्री और हॉकी ओलम्पियन असलम शेर खान ने पूछा है। राष्ट्रीय टीम में मध्यप्रदेश के खिलाड़ियों की संख्या लगातार घट रही है, जिसे लेकर असलम चिंतित है। उनकी चिंता का अशोक ध्यानचंद ने भी समर्थन किया है। हाल ही में दोनों खिलाड़ियों ने भोपाल के नामी टूर्नामेंट के आयोजन में आ रही बाधा को हॉकी के लिए घातक बताया। अशोक के अनुसार, भोपाल ने भारत को दर्जनों नामी खिलाड़ी दिए, जिनमें मेजर ध्यानचंद, रूप सिंह और असलम शेर खान के वालिद अहमद शेर खान जैसे नाम भी शामिल हैं। अहमद शेर भोपाल के पहले ओलम्पियन थे और 1936 के बर्लिन ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीतने वाली दद्दा ध्यानचंद की टीम में शामिल थे। तारीफ की बात यह है कि बर्लिन ओलम्पिक में खिताब जीतने वाली भारतीय टीम को भोपाल इलेवन ने हरा दिया था। अनुमान लगाया जा सकता है कि तब भोपाल की हॉकी कहा थी। इसलिए क्योंकि ओबेदुल्लाह हॉकी टूर्नामेंट तब भारतीय हॉकी की नर्सरी माना जाता था।
भारत की 1975 के विश्व कप जीत में बड़ी भूमिका निभाने वाले असलम शेर खान, अशोक ध्यानचंद और अन्य खिलाड़ियों की राय में भोपाल और मध्यप्रदेश की हॉकी को फिर से जिंदा करने की जरूरत है। इस दिशा में पहला कदम ऐतिहासिक टूर्नामेंट की शुरुआत हो सकता है। सभी खिलाड़ियों ने माना कि जो लोग टूर्नामेंट के आयोजन में बाधा बन रहे हैं उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि टूर्नामेंट के नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता। हॉकी के उत्थान में हिन्दू-मुसलमान और सभी धर्मों के खिलाड़ियों का योगदान इतिहास पुस्तिकाओं में दर्ज है।