- हॉकी के जादूगर को ‘भारत रत्न’ देने की मांग सुनाई पड़ रही है और यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है
- जब लाख कोशिश के बाद भी सरकारें गूंगी-बहरी बनी रहीं तो अब प्रयासों को विराम दे दिया गया है
- ध्यानचंद के परम भक्त ओरछा के तारक पारकर ने अयोध्या के राम मंदिर में सीधे राम लल्ला के सामने अर्जी लगाने का फैसला किया है
- 68 साल के तारक झांसी में ध्यानचंद जी की समाधि से पैदल यात्रा शुरू करेंगे और 600 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर भगवान राम के दरबार में मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की फरियाद करेंगे
- ध्यानचंद के ओलम्पियन पुत्र अशोक कुमार का कहना है कि ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग करना न सिर्फ हॉकी को कमतर आंकने जैसा है अपितु उस हस्ती की अवहेलना भी है, जिसके सामने तानाशाह हिटलर भी नतमस्तक हुआ था
राजेंद्र सजवान
एक बार फिर 29 अगस्त लौट आया है। फिर मेजर ध्यानचंद को ‘भारत रत्न’ देने की मांग सुनाई पड़ रही है। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। तब से जब से भारत रत्न सम्मान देने का सिलसिला शुरू हुआ था लेकिन आज तक भारत और विश्व हॉकी के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी दद्दा ध्यानचंद को देश की सरकारों ने गंभीरता से नहीं लिया।
अनेकों मौकों पर, देश के महान ओलम्पियनों, बड़े खिलाड़ियों और हॉकी प्रेमियों ने हॉकी के जादूगर को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान देने की मांग की, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। धरना, प्रदर्शन के बाद भी तमाम प्रयास नक्कारखाने में तूती साबित हुए। जब लाख कोशिश के बाद भी सरकारें गूंगी-बहरी बनी रहीं तो अब प्रयासों को विराम दे दिया गया है। पूर्व चैम्पियनों और ध्यानचंद के चाहने वालों ने सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया है। खबर है कि ध्यानचंद के परम भक्त ओरछा के तारक पारकर ने अयोध्या के राम मंदिर में सीधे राम लल्ला के सामने अर्जी लगाने का फैसला किया है। 68 साल के तारक झांसी में ध्यानचंद जी की समाधि से पैदल यात्रा शुरू करेंगे और 600 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर भगवान राम के दरबार में मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की फरियाद करेंगे।
ध्यानचंद जी के सुपुत्र और महान ओलम्पियन अशोक कुमार के अनुसार दुनियाभर में उनके पिताजी ध्यानचंद की प्रतिमाएं लगी हैं, उन्हें पूजा जाता है। उनके नाम पर राष्ट्रीय खेल अवार्ड स्थापित हैं और अनेक स्टेडियमों का नामकरण किया गया है। लेकिन उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग करना न सिर्फ हॉकी को कमतर आंकने जैसा है अपितु उस हस्ती की अवहेलना भी है, जिसके सामने तानाशाह हिटलर भी नतमस्तक हुआ था।
उल्लेखनीय है कि सचिन तेंदुलकर भारत रत्न पाने वाले अकेले खिलाड़ी है, जो कि उन्हें बिना मांगे दे दिया गया। लेकिन ध्यानचंद के लिए पिछले 70 सालों में आवाज उठ रही है पर सरकारें गूंगी-बहरी बनी हुई हैं। अब सीधे राम लल्ला के दरबार में न्याय की गुहार लगाने का फैसला किया है। मध्य प्रदेश के तारक पारकर अकेले निकल पड़े हैं। उनका मानना है कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो राम लल्ला जरूर सुनेंगे। तारक समाजसेवी हैं और 1977 से ध्यानचंद परिवार से जुड़े हैं और समय-समय पर हॉकी और उसके जादूगर से जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं।