…फिर कभी ऐसा दंगल देखा, ना सुना…
- 12 से 14 नवंबर 1999 तक भारतीय कुश्ती के सर्वकालिक गुरु श्रेष्ठ गुरु हनुमान की स्मृति में दंगल कराया गया था इसलिए उनके तमाम नामी शिष्यों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया
- इस दंगल के आयोजन का बीड़ा गुरु हनुमान के शिष्य राजू मजरी ने उठाया था
- देश के नामी कोच राजसिंह, महासिंह राव, रामफल, ज्ञान सिंह, अशोक कुमार, महाबली सतपाल आदि मानते हैं कि अधिकाधिक दंगलों के आयोजन से पहलवानों को प्रैक्टिस, पैसा, जीवन स्तर में सुधार मिलेगा और वे खुलकर लड़ेंगे देश के लिए पदक जीतेंगे
राजेंद्र सजवान
वर्ष 1999, नवंबर माह की एक सुबह एक आकर्षक और बलिष्ठ कद-काठी के युवक ने द्वार खटखटाया और छूटते ही कहा कि वह गुरु हनुमान के नाम से दंगल करवाना चाहता है। कुछ दिन पहले ही गुरु जी का एक सड़क दुर्घटना में देहांत हुआ था। बातचीत से पता चला कि राजू मजरी नाम का वह पहलवान युवक पीएंडटी में कार्यरत गुरु हनुमान का शिष्य है और मजरी गांव से है। उसे मीडिया से सहयोग चाहिए था। उसके प्रयासों के दम पर 12 से 14 नवंबर तक आयोजित हजारों की पुरस्कार राशि वाले दंगल को जमकर पब्लिसिटी भी मिली।
चूंकि दंगल का आयोजन भारत के सर्वकालिक गुरु श्रेष्ठ गुरु हनुमान के नाम पर था इसलिए उनके तमाम नामी शिष्यों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अखाड़े के नामवर पहलवान सुदेश, प्रेमनाथ, सतपाल, जगमिंदर, सुभाष, देश के जाने-माने कोचों राजसिंह, महासिंह राव के अलावा गुरु श्रेष्ठ मास्टर चंदगीराम, चांदरूप, खलीफा जसराम और देश भर की तमाम कुश्ती हस्तियों के साथ साथ सांसद साहिब सिंह वर्मा, सिने जगत से दारा सिंह और दीपिका भटनागर दंगल में आकर्षण का केंद्र रहे। बेशक, दंगल अपने आप में श्रेष्ठतम था। लेकिन सेमीफाइनल में चार श्रेष्ठ पहलवानों की मिलीभगत के कारण आयोजक नाराज थे। अंततः समझा-बुझाकर पुरस्कार राशि का बंटवारा हुआ।
बेशक, हजारों कुश्ती प्रेमियों की मौजूदगी में आयोजित दंगल को खूब सराहा गया। खासकर, राजू मजरी उनके भाइयों संजय और सुनील के योगदान की प्रशंसा कुश्ती के प्रख्यात पत्रकारों स्वर्गीय सुशील जैन, रोशन सेठी और अन्य द्वारा की गई। कुश्ती जानकारों की राय में ऐसा आयोजन फिर कभी नहीं हो पाया क्योंकि पहलवानों के मिली-भगत के खेल से रंग में भंग पड़ गया था। लेकिन यह सब खेल का पार्ट है। चिंता का विषय यह है कि जिस देश में कभी कुश्ती के मेले लगते थे वहां अब खामोशी क्यों है? क्यों मिट्टी और गद्दे के दंगल ठंडे पड़ गए हैं? यह शुभ लक्षण कदापि नहीं है।
देश के नामी कोच राजसिंह, महासिंह राव, रामफल, ज्ञान सिंह, अशोक कुमार, महाबली सतपाल आदि मानते हैं कि आज के दौर में हनुमान जैसे समर्पित गुरु और राजू मजरी जैसे निष्ठावान शिष्यों की बड़ी जरूरत है। उनके अनुसार, अधिकाधिक दंगलों के आयोजन से पहलवानों को प्रैक्टिस और पैसा मिलेगा। उनका जीवन स्तर सुधरेगा, वे खुलकर लड़ पाएंगे और पदक जीतकर देश का नाम रोशन करेंगे। तो फिर प्रॉब्लम कहां है? क्यों कुश्ती बंद कमरों में लड़ी जा रही है?