- खेल का स्तर गिरने का एक बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि लगभग सभी क्लबों के खिलाड़ी स्कूल, कॉलेज, संस्थानिक-डिपार्टमेंटल की पहली प्राथमिकता कॉलेज और विभागीय आयोजन है
- डीएसए की प्लानिंग फेल हुई है क्योंकि एक साथ प्रीमियर लीग, यूथ लीग और अंडर-17 जैसे आयोजन कराने से प्रबंधन गड़बड़ाया है
- ऐसा क्यों हो रहा है, यह तो क्लब, दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) के पदाधिकारी और कार्यकारिणी ही बेहतर बता सकते हैं लेकिन खिलाड़ियों के स्तर में गिरावट की हर तरफ चर्चा है
राजेंद्र सजवान
वर्तमान में देश की राजधानी में जारी डीएसए प्रीमियर लीग का दूसरा संस्करण लगभग आधा सफर तय कर चुका है। जैसा कि विदित है, पिछले संस्करण में नवगठित वाटिका एफसी ने खिताब जीता था और गढ़वाल हीरोज दूसरे स्थान पर रही थी। हालांकि दोनों टीमों का प्रदर्शन फिलहाल ठीक-ठाक चल रहा है, लेकिन दूसरी प्रीमियर लीग पर सरसरी नजर डालें, तो फुटबॉल का स्तर बुरी तरह से गिरा है। ऐसा क्यों हो रहा है, यह तो क्लब, दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) के पदाधिकारी और कार्यकारिणी ही बेहतर बता सकते हैं। लेकिन खिलाड़ियों के स्तर में गिरावट की हर तरफ चर्चा है।
दिल्ली प्रीमियर लीग का पहला चरण समाप्त होने को है लेकिन फुटबॉल प्रेमी स्टेडियम का रुख नहीं कर रहे हैं। मुट्ठी भर लोग ही मैच देखने आते हैं। इस संवाददाता ने जब कुछ एक से बात की तो उनकी पहली शिकायत यह थी कि खेल का स्तर बुरी तरह गिरा है। कोई भी क्लब अपना श्रेष्ठ नहीं दे पा रहा है। कारण कई हैं लेकिन काना-फूसी से पता चला है कि मैच फिक्स हो रहे हैं और खिलाड़ी व कोच सट्टेबाजों के इशारे पर नाच रहे हैं। लेकिन बिना किसी प्रमाण के आरोप लगाना सही नहीं है।
खेल का स्तर गिरने का एक बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि लगभग सभी क्लबों के खिलाड़ी स्कूल, कॉलेज, संस्थानिक-डिपार्टमेंटल और अन्य आयोजनों में व्यस्त चल रहे हैं। उनकी पहली प्राथमिकता कॉलेज और विभागीय आयोजन हैं। जाहिर है कि डीएसए की प्लानिंग फेल हुई है। एक साथ प्रीमियर लीग, यूथ लीग और अंडर-17 जैसे आयोजन कराने से हालात बदतर हुए हैं और प्रबंधन गड़बड़ा गया है।
जहां तक खेल के स्तर की बात है, ज्यादातर क्लब बाहरी खिलाड़ियों के दम पर खड़े हैं, जिनका स्तर बेहद घटिया है। बाहर से खिलाड़ियों की आधिकारिक खरीद फरोख्त पर भी उंगलियां उठ रही हैं। लगभग चार-पांच क्लब ऐसे हैं, जिनका प्रदर्शन हमेशा शक के घेरे में रहा है। खीज उतारने के लिए रेफरी-लाइनमैन को गालियां देने का चलन भी बढ़ा है। सच्चाई यह है कि रेफरी अपनी जगह सही है। क्लब अधिकारी, खिलाड़ी और नालायक कोच असली गुनहगार हैं। यह तय है कि लीग का पहला चरण पूरा होने तक कई क्लब दम तोड़ देंगे, क्योंकि अनफिट खिलाड़ियों की संख्या बढ़ रही है। यह सुगबुगाहट भी चल रही है कि कुछ क्लब जादू-टोने, टोटके और तंत्र-मंत्र का सहारा ले रहे हैं, जो कि दिल्ली की फुटबॉल की पुरानी बीमारी है।