- डीएसए अपनी फुटबॉल के प्रचार-प्रसार में जरा भी रुचि नहीं है, क्योंकि चाहे संतोष ट्रॉफी, अंडर-20, अंडर-17, 15 या 14 के आयोजन ही क्यों ना हो खिलाड़ियों, कोचों, टीमों के साथ जाने वाले पदाधिकारियों के नाम मीडिया को नहीं भेजे जाते हैं
- डीएसए से जुड़े क्लब अधिकारी, आम अभिभावक व खिलाड़ी हैरान-परेशान हैं और पूरे मीडिया को दोष देते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए चुने जाने वाले खिलाड़ियों के नाम डीएसए द्वारा गुप्त रखे जाते हैं
- मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी, मिलीभगत और टीमों के चयन में जमकर धांधली मचाने वाले मीडिया के करीब जाना ही नहीं चाहते हैं, ताकि उनकी पोल न खुल सके
राजेंद्र सजवान
इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में मीडिया क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों की खबर नहीं ले रहा। खासकर, राज्य और राष्ट्रीय आयोजनों को प्रिंट मीडिया ने भाव देना छोड़ दिया है, जिसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं। नतीजन, मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी, मिलीभगत और टीमों के चयन में जमकर धांधली मची है और कहीं कोई कार्रवाई सुनने-देखने को नहीं मिलती। लेकिन सिर्फ मीडिया को दोष देना और भला-बुरा कहना भी ठीक नहीं है। सच्चाई यह है कि देश के बड़े-छोटे खेल महासंघ और उनकी राज्य इकाइयां मीडिया से खुद ही दूरी बनाने चाहते हैं, ताकि उनकी करतूतों की पोल ना खुल जाए।
दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल में यूरो लीग, विभिन्न अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की खबरें जोर-शोर से छपती हैं लेकिन राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय आयोजनों को इसलिए जगह नहीं मिल पाती है, क्योंकि देश में फुटबॉल की खरीद फरोख्त और धांधली मचाने वाले मीडिया के करीब जाना ही नहीं चाहते हैं। दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) का उदाहरण सामने है। राष्ट्रीय आयोजनों में दिल्ली की टीमें शानदार प्रदर्शन कर रही हैं लेकिन फुटबॉल प्रेमियों को खबर तक नहीं लग पाती। इसलिए क्योंकि दिल्ली की फुटबॉल चलाने वालों को अपनी फुटबॉल के प्रचार-प्रसार में जरा भी रुचि नहीं है।
चाहे संतोष ट्रॉफी, अंडर-20, अंडर-17, 15 या 14 के आयोजन ही क्यों ना हो खिलाड़ियों, कोचों, टीमों के साथ जाने वाले पदाधिकारियों के नाम मीडिया को नहीं भेजे जाते हैं। डीएसए से जुड़े क्लब अधिकारी, आम अभिभावक और खिलाड़ी हैरान-परेशान हैं। वे पूरे मीडिया को दोष देते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए चुने जाने वाले खिलाड़ियों के नाम डीएसए द्वारा गुप्त रखे जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि चोर दरवाजे से चयन समिति अपने लाड़लों का चयन करा सके। यह भी आरोप लगाया जाता रहा है कि खरीद फरोख्त से खिलाड़ियों को चुना जाता है। यह सर्वविदित है कि डीएसए गुटबाजी की शिकार है। प्रतिद्वंद्वी गुट कहता है कि चार-छह कार्यकारिणी सदस्य पुरुष और महिला टीमों के चयन से जुड़े हैं। टीम में कौन-कौन खिलाड़ी है, किसी को कानों-कान खबर नहीं लगती है। हालांकि यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ समय से सब कुछ गुपचुप हो रहा है।